नवरात्री के दूसरे दिन इस प्रकार कीजिये देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा आराधना।
By: Future Point | 28-Aug-2019
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मां दुर्गा की नव शक्ति का दूसरा स्वरूप देवी ब्रह्मचारिणी जी का है, यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है और मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है अतः इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।
देवी ब्रह्मचारिणी के स्वरूप का महत्व-
नवरात्र का दूसरा दिन माता ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है, माता ब्रह्मचारिणी माँ दुर्गा का दूसरा रूप हैं, ऐसा कहा जाता है कि जब माता पार्वती अविवाहित थीं तब उनको ब्रह्मचारिणी के रूप में जाना जाता था, यदि माँ के इस रूप का वर्णन करें तो वे श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं और उनके एक हाथ में कमण्डल और दूसरे हाथ में जपमाला है, देवी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय है, जो भक्त माता के इस रूप की आराधना करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है, और इस दिन का विशेष रंग नीला है जो शांति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक होता है, ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली, देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।
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देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व-
साक्षात ब्रह्म स्वरूप वाली देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से मनुष्य के सुखों में वृद्धि होती है और साथ ही वह व्यक्ति रोग मुक्त रहता है, उसके जीवन की समस्त बाधाएं दूर होती है और उसे किसी भी चीज़ का भय नहीं रहता है।
भव्य है देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप-
नौ दुर्गा में ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय व अत्यंत भव्य है, इनके दाहिने हाथ में जप की माला व बाएं हाथ में कमंडल रहता है, साधक यदि भगवती के इस स्वरूप की आराधना करता है तो उसमें तप करने की शक्ति, त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य में वृद्धि होती है, और जीवन के कठिन से कठिन संघर्ष में वह विचलित नहीं होता है, भगवती ब्रह्मचारिणी की कृपा से उसे सदैव विजय प्राप्त होती है, शक्ति पूजन की दृष्टि से ब्रह्मचारिणी दुर्गा की उपासना का खास महत्व है, देवी की महिमा का बखान इस मंत्र में है- ‘ब्रह्मम चारयितुं शील यास्या: सा ब्रह्मचारिणी अर्थात जो देवी सच्चिदानंदमय ब्रह्म स्वरूप को प्राप्त करने वाले स्वभाव की हो, वह मूर्ति ब्रह्मचारिणी की है।
देवी ब्रह्मचारिणी के स्वरूप की कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी, इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया, एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया, कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे, तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं, इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए, कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं, पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया, कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया, देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की, यह तुम्हीं से ही संभव थी, तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे, अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।
इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए, मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है, दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है।
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देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि-
- देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें और प्रार्थना करते हुए निचे लिखा मंत्र बोलें।
- ध्यान मंत्र-
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
इसके बाद देवी को पंचामृत स्नान कराएं, फिर अलग-अलग तरह के फूल,अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें।
इसके पश्चात देवी को सफेद और सुगंधित फूल चढ़ाएं, इसके अलावा कमल का फूल भी देवी मां को चढ़ाएं और इन मंत्रों से प्रार्थना करें।
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
इसके पश्चात देवी मां को प्रसाद चढ़ाएं और आचमन करवाएं।
प्रसाद के बाद पान सुपारी भेंट करें और प्रदक्षिणा करें यानी 3 बार अपनी ही जगह खड़े होकर घूमें।
प्रदक्षिणा के बाद घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें।
इन सबके बाद क्षमा प्रार्थना करें और प्रसाद बांट दें।
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