नवरात्रि का सातवां दिवस – माँ कालरात्रि की कथा एवं पूजा विधि ।
By: Future Point | 04-Apr-2019
Views : 8675
नवरात्रि के सातवें दिन माँ दुर्गा के स्वरूप् देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है. माना जाता है कि कालरात्रि के इस रूप से सभी भूत, राक्षस, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है. माँ कालरात्रि के उपासको को अग्नि भय, जल भय, जंतु भय, शत्रु भय, रात्रि भय आदि कभी नही होते हैं. माँ कालरात्रि की कृपा से भक्त सर्वथा भय से मुक्त हो जाता है. माँ कालरात्रि के स्वरूप् विग्रह को अपने ह्रदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से उपासना करनी चाहिए, यम, नियम, संयम का भक्तो को पूर्ण पालन करना चाहिए. मन, वचन, काया की पवित्रता रखनी चाहिए.
माँ कालरात्रि का रंग काला होने के कारण इन्हें कालरात्रि कहा गया. माँ कालरात्रि की आराधना करने से दुष्टो का नाश होता है और सभी ग्रह बाधाएँ दूर हो जाती हैं. शास्त्रो के अनुसार बुरी शक्तियो से पृथ्वी को बचाने और पाप को फैलने से रोकने के लिए माँ दुर्गा जी ने अपने तेज से अपने इस स्वरूप् को उत्पन्न किया था. माँ कालरात्रि की पूजा शुभ फलदायी होने के कारण इन्हें शुभंकारी भी कहा गया है।
माँ कालरात्रि की कथा –
पुराणों के अनुसार दैत्य शुम्भ निशुम्भ और रक्तबीज ने तीनो लोकों में हाहाकार मचा रखा था इससे चिंतित होकर सभी देवता गण शिव जी के पास गए, शिव जी ने देवी पार्वती से राक्षसो का वध कर अपने भक्तो की रक्षा करने को कहा, शिव जी की बात मानकर देवी पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुम्भ निशुम्भ का वध कर दिया, मगर जैसे ही माँ दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न होने लगे ये देख कर माँ दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया इसके बाद जब माँ दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को देवी कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सब का गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।
देवी कालरात्रि का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है और इनके बाल बिखरे हुए हैं और इनके गले में नर मुंड की माला है, माँ कालरात्रि के चार हाथ हैं जिसमे से इनके एक हाथ में कटार और एक हाथ में लोहे का कांटा धारण किया हुआ है इसके अलावा इनके दो हाथ वर मुद्रा व अभय मुद्रा में हैं. माँ कालरात्रि के तीन नेत्र हैं तथा इनके श्वास से अग्नि निकलती है, माँ कालरात्रि का वाहन गर्दभ (गधा) है।
माँ कालरात्रि की पूजा विधि –
नवग्रह, दशदिक्याल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए इसके बाद माँ कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए
- सर्वप्रथम कलश व उसमे उपस्थित देवी देवता की पूजा करें
- इसके बाद माँ कालरात्रि की पूजा विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर माँ कालरात्रि को इस मन्त्र का जप करते हुए प्रणाम करें ॐ कालरात्र्यै देव्यै नमः ।।
- इसके पश्चात् स्टील के दिये में तिल के तेल का दीपक जलाएं, लोहबान से धूप करें, काजल से तिलक करें, नीला फूल चढ़ाएं
- माँ कालरात्रि को गुड़ अति प्रिय है इसलिए इनकी पूजा में गुड़ का भोग लगाएं
- माँ कालरात्रि की पूजा करते समय इस मन्त्र का जप करें ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी । दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।। जय त्वं देवि चामुण्डे जय भुतार्ति हरिणी । जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तुते ।।
माँ कालरात्रि का बीज मन्त्र –
ॐ ऐं हीँ क्लीं चामुण्डायै विच्चे इस मन्त्र का जाप तीन, सात या ग्यारह माला करना चाहिए ।
माँ कालरात्रि का ध्यान मन्त्र -
करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥
दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम॥
महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥
माँ कालरात्रि का स्त्रोत पाठ -
हीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥