नारद जी - तीनों लोकों, तीनों युगों के सूचना मंत्री
By: Acharya Rekha Kalpdev | 09-Apr-2024
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सृष्टि के जन्म के साथ ही सनातन हिन्दू धर्म का उद्भव हुआ। सनातन धर्म से प्राच्य अन्य कोई धर्म और संस्कृति नहीं है। जिसमें अनेकोनेक धर्मग्रंथों, शास्त्रों, पुराण, उपनिषदों और चार वेदों की रचना हुई। आज के समय में पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा गया है। लोकतंत्र की रक्षा और प्रजातंत्र को बचाने का दायित्व पत्रकारों का है। आज विश्व में पत्रकारिता का मूल स्वरुप बदल चुका है। सारा संसार संचार तकनीकों के कारण एक दूसरे के निकट आ चुका है। आज सारा विश्व एक छोटे गांव के समान करीब आ चुका है। समय के साथ पत्रकारिता का महत्त्व और भी बढ़ गया है। आज का युग आधुनिक संचार प्रणालियों का दिन है।
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नारद जी जयंती कब है? नारद जयंती कथा, महत्त्व
नारद जी की जयंती वर्ष 2024 में 24 मई, शुक्रवार की रहेगी। नारद जी की जयंती ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन मनाई जाती है। इस दिन प्रतिपदा तिथि का प्रारम्भ सांयकाल 19:25 से शुरू हो रही है, और इसका समापन अगले दिन 18:58 सायंकाल में हो रहा है। नारद जयंती के दिन प्रात: सूर्योदय से पहले उठकर, स्वच्छ वस्त्र पहनकर, विष्णु जी और नारद जी की पूजा करने का विधि विधान है। नारद जी और श्री विष्णु जी की कृपा पाने के लिए इस दिन व्रत-उपवास भी किया जाता है। सारा दिन व्रत उपवास कर सायंकाल में विष्णु जी और नारद जी को चन्दन तिलक, तुलसी पत्र, धूप, दीप और फूल के साथ साथ भोग अर्पित किया जाता है।
नारद जी - सृष्टि के प्रथम पत्रकार
एक समय था जब संचार का कोई साधन उपलब्ध नहीं था, उस युग में ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को को सृष्टि के सबसे पहले पत्रकार का जन्म हुआ। जिन्हें उनके माता-पिता ने नारद नाम दिया। नारद जी की महिमा का गुणगान तीनों लोकों-देवलोक, असुरलोक और इहलोक में रहा है। नारायण नारायण नारद जी के अंतर्मन में समाया हुआ था। नारद जी का उल्लेख सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग दिनों तीनों में रहा है। तीनों ही युगों में नारद जी का प्रमाण मिलता है। नारद जी ब्रह्मा जी के पुत्र है, उन्हें देव ऋषि का पद प्राप्त है। उनके द्वारा 84 भक्ति सूत्रों की रचना की गई। स्वामी विवेकानंद जी और अन्य अनेक देव महऋषियों ने नारद जी के द्वारा लिखे भक्ति सूत्र पर व्यक्तव्य कहे और लिखें।
शुभ धर्म कार्यों में भगवान शिव के पुत्र गणेश जी प्रथम पूज्य है। उसी प्रकार संचार पत्रिकारिता के क्षेत्र में नारद जी की पूजा सर्वप्रथम की जाती है। नारद जी का यह एक विशेष गुण रहा है कि वो कहीं भी, किसी भी स्थान, किसी भी युग में अपनी योग शक्ति से पहुँच जाते है, और उस समय चल रही चर्चा में अपनी सलाह दे देते थे। निस्वार्थ भाव से समस्या का हल देना, उनका प्रथम गुण था। अन्य देवी देवताओं की तरह नारद जी का अपना कोई महल, लोक या रहने का स्थान विशेष नहीं है। वो तीनों लोकों में प्रवास पर रहते थे, निरंतर गमन करते रहने उनके स्वभाव में था। नारद जी अपने समय में संचार का सबसे लोकप्रिय, प्रसिद्द और एकमात्र साधन थे। वो निस्वार्थ, निशुल्क सभी सूचनाओं को इधर से उधर पहुंचाते थे और सर्व हितेषी होकर सबके कल्याण की भावना से काम करते थे। योग शक्ति, ध्यान शक्ति या अपनी साधना के बल पर उन्हें जन्मजात सूचना प्राप्त करने का गुण प्राप्त था।
नारद जी - तीनों लोकों, तीनों युगों के सूचना मंत्री
प्रसिद्द और प्रामाणिक ग्रन्थ नारद पुराण में नदियों की महिमा, तीर्थों की महिमा, योग, वर्णव्यवस्था, श्राद्ध और 6 वेदांगों और 18 पुराणों का प्रारंभिक परिचय दिया गया है। नारद स्मृति नामक ग्रन्थ में व्यवहारिक विषयों की व्याख्या की गई है। सबसे प्राच्य पत्रकार नारद जी द्वारा रचित 84 भक्ति सूत्र में पत्रकारिता के सूक्ष्म और वृहद् सूत्रों की जानकारी दी गई है। पत्रकारिता के सारे नियम, सिद्धांत भक्ति सूत्र में दिए गए है। नारद जी द्वारा रचित भक्ति सूत्र में वर्णित है कि पत्रकारिता जाति, वर्ग, वर्ण, धर्म, धन, कुल और कार्य के अनुसार भेद नहीं करना चाहिए।
तीनों लोकों में सूचनाओं और समाचार का प्रचार प्रसार करने का कार्य नारद जी के दायित्व के अंतर्गत है। संचार संवाहक का कार्य नारद जी इस संसार में तीनों युगों से सबसे उत्तम प्रकार से कर रहे है। कुछ प्रसंगों में ऐसा जरूर लगा की नारद जी कलह और चुगली का कार्य कर रहे है। नारद जी को दिव्य और सृष्टि के प्रथम पत्रकार का पद प्राप्त है। पितामह भीष्म जी ने भी उनके कार्यों और उनके व्यक्तित्व की बहुत प्रशंसा की और कहा कि नारद जी आदर्श और अनुकरणीय व्यक्तित्व है।
नारद जी द्वारा रचित ग्रन्थ
महर्षि बाल्मीकि जी ने रामायण और व्यास जी ने महाभारत कि रचना देवऋषि नारद जी की प्रेरणा से ही की गई। नारद जी निपुण, योग्य और प्रभावी संदेशवाहक थे। 84 भक्ति सूत्र में भक्ति और ईश्वर प्राप्ति का मार्ग दर्शाया गया है। नारद जी ब्रह्मा जी के पुत्र, विष्णु जी के आराधक, और देवी पार्वती जी के गुरु है, देव गुरु बृहस्पति उनके शिष्य है। देवर्षि नारद पर नारद पुराण, नारद स्मृति, नारद और भक्ति सूत्र आदि रचनाएँ है। नारद जी श्रेष्ठ दार्शनिक, संगीतज्ञ और योगी रहे है। नारद जी ने ५ ग्रन्थ नारद पुराण, नीरद स्मृति, नारद पंचरात्र, नारद भक्ति सूत्र और नारद श्रुति की रचना की। उनकी रचनाओं का यह संसार सदैव ऋणी रहेगा। नारद जी देवताओं और दानवों दोनों में समान रूप से लोकप्रिय और प्रसिद्द थे। नारद जी ने ही वीणा नामक संगीत वाद्य यंत्र का आविष्कार किया, जो माता सरस्वती जी का प्रमुख वाद्य यन्त्र है। संचार प्रचार प्रसार कार्य के अतिरिक्त नारद जी संगीत शास्त्र के ज्ञाता भी थे। नारद जी एक अच्छे वक्ता, श्रोता और संवाहक थे।
नारद जी परम ज्ञान, परम संत
नारद जी संगीत के ज्ञानी, अनेक कलाओं और विद्याओं के जानकर थे। वेदों के जानकर, योगनिष्ठ, औषधि विज्ञानं के जानकर, भक्ति ज्ञान के ज्ञाता, श्रुति स्मृति, इतिहास, पुराण, व्याकरण, वेदों के ६ अंगों का जानकर, खगोल, भूगोल, ज्योतिष और वैदिक गणित जैसे विषयों में विशेषग्यता रखते थे। देवताओं के ऋषि होने के कारण उनका नाम देवऋषि था। देव गुरु बृहस्पति के अलावा ऋषि व्यास, बाल्मीकि जी, शुकदेव जी का गुरु नारद जी को कहा जाता है। नारद जी को अमरता का वरदान प्राप्त थे। उन्होंने त्रिकालदर्शी भी कहा जाता है, क्योंकि वो हर युग की जानकारी रखते थे।
महाभारत ग्रन्थ में नारद जी की महिमा
नारद जी ने लोककल्याण की भावना से सत्कर्म मार्ग से भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया। देवलोक और दानव लोक में जो लोकप्रियता नारद जी को मिली वो इससे पूर्व और इसके बाद अन्य किसी ऋषि को नहीं मिली।एक देवऋषि में जो गुण, लक्षण होने चाहिए, वो सभी नारद जी में पूर्ण रूप से देखी जा सकती है। महाभारत ग्रन्थ में नारदजी वेद, पुराण, उपनिषद के ज्ञाता,सुर असुर पूज्य, त्रिकालदर्शी, गये, न्याय, धर्म, ६ वेदांगों के तत्वज्ञ, संगीतज्ञ, श्रेष्ठ वक्ता, नीतिज्ञ, कवि, देवी देवी पार्वती, बृहस्पति देव, धुर्व और प्रह्लाद जैसे शिष्यों के गुरु, चारों परमार्थ के ज्ञाता, योगबल से तीनों की सूचनाओं और समाचार को जाने में समर्थ, सांख्य, योग के विशेषज्ञ, कर्तव्यों के जानकर, शास्त्रों में प्रवीण, सद्गुणों, सदाचार का आधार, आनंद स्वरुप, परम् ज्ञानी, सर्वविद्या निपुण, सदैव चलायमान हैं।
नारद जी ज्योतिष-संगीत और कला के मर्मज्ञ
मूल नारदपुराण में 25000 श्लोक थे, आज 22000 श्लोकों वाला नारदपुराण ग्रन्थ उपलब्ध है। जिसमें 750 श्लोक सिर्फ वैदिक ज्योतिष पर है। इन 750 श्लोकों में सिद्धांत, होरा और संहिता ज्योतिष की व्याख्या की गई है। इन्हीं के नारद सहिंता ग्रंथ में भी ज्योतिष शास्त्र के सभी विषयों का विस्तार से वर्णन दिया गया है। देवर्षि नाराज जी भक्ति- ज्योतिष दोनों विषयों में पारंगत थे।
नारद जी - देवी-देवताओं के विवाह सलाहकार
नारद जी की सलाह और प्रयास से ही देवी पार्वती जी का विवाह भगवान् शिव के साथ हुआ। लक्ष्मी जी का विवाह विष्णु जी के साथ हुआ। उर्वसी का विवाह पुरुरवा के साथ कराया, जालंधर का वध भगवान् शिव के हाथ कराया, कंस को आकाशवाणी की जानकारी दी, व्यास जी को श्रीमद भगवत लिखने के लिए प्रेरित किया। भक्त प्रह्लाद और भक्त ध्रुव को भक्ति मार्ग दिखाया, सभी देवी देवताओं, किन्नरों, नाग, गंधर्वों, दानवों को सलाह, मार्गदर्शन देकर कर्तव्याभिमुख किया। कई बार नारद जी के सलाह और सूचना देवी देवताओं और दानवों में मतभेद का कारण भी बनी।
नारद जी - पिता से ही मिला श्राप
देव पुराणों में देवऋषि नारद जी को ब्रह्मा जी के मानस पुत्र का स्थान प्राप्त है। विष्णु भक्ति का वीणा बजाकर तीनों लोक में ईश्वर का गुणगान करते थे। ब्रह्मा जी ने अपने मानस पुत्र से कई बार सृष्टि कार्यों में योगदान दें और विवाह करने के लिए कहा, परन्तु देवऋषि नाराज जी विष्णु जी की भक्ति में अत्यधिक लीन थे, अत: उन्होंने मना कर दिया। इस पर ब्रह्मा जी ने नाराज होकर इन्हें दो घडी से अधिक एक स्थान पर न टिकने और आजीवन अविवाहित रहने का श्राप दे दिया।
नारद जी का नाम नारद कैसे पड़ा
नारद जी के जन्म के समय तेज वर्षा हो रही थी। जन्म समय पर वर्षो होने के कारण इन्हें जल अर्थात नार, पर नारायण पड़ा। एक अन्य प्रसंग के अनुसार ब्रह्मा जी के कंठ से उत्पन्न होने के कारण भी इनका नाम नारद है। नारद जी भगवान विष्णु जी के परम भक्त है। भगवतगीता में भगवान श्री कृष्ण जी स्पष्ट कहा कि देवऋषियों में मैं नारद हूँ। महापुराण के अनुसार भगवान ने ही तीसरे अवतार के रूप में नारद जी ने ही जन्म लिया।
नारद जी के जन्म सम्बंधित कथा
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जब ब्रह्मा जी सृष्टि का निर्माण कार्य कर रहे थे, उस समयावधि में उनके चार पुत्रों का जन्म हुआ। युवा होने पर उनमें से तीन साधना के लिए वनों में चले गए। और चारों पुत्रों में नारद सबसे बड़े और सबसे अधिक चंचल थे। ब्रह्मा जी की आज्ञा थी की वो तपस्या में न जाए, विवाह कर घर बसाये और सृष्टि निर्माण में योगदान दें। इसके लिए नारद जी ने मना कर दिया। ब्रह्मा जी ने उन्हें कहा की तुम अपनी जिम्मेदारियों से भागते हो, जाओ सदैव भागते ही रहो। तब से लेकर प्रत्येक युग, तीनों लोकों में नारद जी नारायण नारायण कहते हुए भटक रहे है। दो घडी से अधिक कहीं टिकते ही नहीं। धर्म शास्त्रों में नारद जी को ईश्वर का मन की संज्ञा दी गई है। तीनों लोकों में प्रतिष्ठा प्राप्त देवऋषि नारद जी भूत, वर्तमान और भविष्य की जानकारी रखने के कारण त्रिकालदर्शी भी रहे। कठोर तपस्या कर इन्होने देव ऋषि का स्थान प्राप्त किया। देव ऋषि नारद जी को गर्भावस्था में ही ज्ञान प्राप्त हो चुका था।
आज के समय में नारद कौन है?
आज गूगल, विकिपीडिया, यूट्यूब, सोशल मीडिया सब जगह ज्ञान मुफ्त बंट रहा है। सब ज्ञान ही ज्ञान है। कलयुग में हर इंसान गुरु बना हुआ है। गुरु ही गुरु चारों और है, चेला कोई है ही नहीं। परहित सरस कुशल बहुतेरे की उक्ति सार्थक हो रही है। आज सब गुरु बन ज्ञान दे रहे है, यहाँ वहां ज्ञान बाँट रहे हैं। आज सोसाइल मीडिया अकाउंट पर एक सवाल डालने पर हमें सैंकड़ों जवाब मिल जाते है। हर और ज्ञान बरस रहा है। ज्ञान लेने वालों की कमी हैं, देने वालों की कोई कमी नहीं है। कलयुग के इन सब गुरुओं को नारद जी तो नहीं कहा जा सकता, परन्तु इन्हें कलयुगी नारद तो कहा ही जा सकता है। नारद जी को हर विषय का पूर्ण ज्ञान था, तभी उन्हें देवऋषि का पद प्राप्त था, परन्तु आज सब अधकचरा ज्ञान परोस रहे है। अपने अनुभव, अपने ज्ञान और अपनी समझ से सब अपने विचार बांटे रहे है। ज्ञान देने का वेग एक नशा बन चुका है। आज के इंसान की यही वृत्ति से हर और ज्ञान गंगा बन रही है।
नारद जी में लाभ गुण थे, हर विषय के पूर्ण ज्ञाता नारद जी थे, पर उनमें बात को पचाने का गुण नहीं था। यहाँ वहां जो लोग सवालों का जवाब दे रहे है, क्या उन्हें इसके लिए वेतन मिल रहा है, नहीं, वो सब अपने अंदर के ज्ञान को फ़ैलाने के लिए लालायित है। ऐसे में यही समझ आता है कि लोग ज्ञान को पचा नहीं पा रहे है। ज्ञान बाँटने की यही वृत्ति कई बार अज्ञानी को मान दिला रही है, कई ज्ञानियों का ज्ञान दूसरों के नाम से बांटा जा रहा है। सत्य से अवगत कराने का कार्य नारद जी करते रहे। आज सत्य नदारद है, झूठ परोसा जा रहा है। आज ज्ञानी मौन है, अज्ञानी चारों और ज्ञान बाँट रहे है। मौन और मुनि शब्द दोनों एक दूसरे के पूरक है। इसलिए नारद जी मुनि कहलाये।
तीनों युगों, तीनों कालों में त्रिकालदृष्टा नारद जी ज्ञान ग्रहण कर, ज्ञान बांटते रहे। आज नारद एक नाम न होकर एक अवस्था, विचारधारा, वृत्ति हो गया है। नारद जी ब्रह्मा जी के मानस पुत्र है, और आज ज्ञान बाँटने की वृत्ति ही नारद है। वास्तविक ज्ञान सदैव सत्य का प्रचार प्रसार कार्य करता है, भक्ति को समर्पित रहता है। ज्ञान भौतिक न होकर सत्य और धर्म से जुड़ा होना चाहिए, समर्पित होना चाहिए। सत्य और भक्ति के अभाव में ज्ञान भौतिक होकर व्यर्थ हो जाता है।
हम सब के अंदर एक नारद जी बैठे है, हम सब भी नारद जी तरह ब्राह्मण जी के मानस पुत्र है। हम सब के परमपिता ब्रह्मा जी है, इसलिए हम सब भी नारद ही है। अंतर इतना है की हम अपना ज्ञान सत्य और धर्म सेवा में न लगा कर अपने अंदर के भार को सोशल मीडिया में कहीं छोड़ देना चाहते है, उतार फेंक देना चाहते है। ब्रह्मा जी की संतान होने पर हम अपने ज्ञान को भक्ति और सत्य से नहीं जोड़ पा रहे है, क्योंकि नारद जी की तरह हमारे ज्ञान से नारायण, नारायण नहीं जुड़ा है। ईश्वर नहीं जुड़ा है, इसलिए हमारा ज्ञान खोखला ज्ञान है।
व्यावहारिक ज्ञान तो वैज्ञानिकों और तकनीकी जानकारों के पास भी बहुत है, पर वो रुखा है, उसमें ईश्वर नाम का रस नहीं मिला है। स्कूल, कॉलेज में दिया जा रहा ज्ञान रुखा, व्यवहारिक ज्ञान है, सत्य-भक्ति और रस का ज्ञान गुरुकुल व्यवस्था में था। नारद जी संगीत, ज्योतिष, वेद पुराण, वास्तु, नृत्य कला, धर्म, मोक्ष के ज्ञाता, हाथ ने वीणा अर्थात सर्वगुण सम्पन्न ज्ञान। यह सात्विक ज्ञान ही है, यह नारद ही है जो हमारे और आपके माध्यम से जगह-जगह घूमकर दुखी संसार को आनंदित कर रहा है।