मौनी अमावस्या 2024, तिथि, कब, कैसे मनाये?
By: Acharya Rekha Kalpdev | 02-Jan-2024
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Mauni Amavasya 2024: मौनी अमावस्या मौन शब्द का विस्तार है। मौन न केवल वाणी का मौन है, बल्कि मौन आतंरिक भी होता है, जहाँ विचारों में गतिशीलता न हो, जहाँ मन में कोई विचार न आये। जब शब्द और विचार दोनों शांत हो जाए तो उसे ही वास्तविक मौन कहा जाएगा। मौनी अमावस्या पर शब्द और विचारों दोनों पर नियंत्रण रखकर व्रत किया जाता है। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के मध्य की अवधि में भोजन का त्याग कर, मध्याह्न काल में पितरों का स्मरण, पूजन किया जाता है। कुत्ते और कौए के लिए भी भोग निकाला जाता है।
ईश्वरीय ऊर्जा को पाने की कौन सी विधि सरल है ?
आतंरिक मौन सबसे बड़ा मौन है। जब व्यक्ति सोचना छोड़ दे। कोई विचार मन के दरवाजे पर दस्तक न दे। वही मौन की परम अवस्था है। ध्यान, साधना करने से आतंरिक मौन करना संभव है। बाह्य और आतंरिक मौन साधने से मन स्थिर होता है, एकाग्रता बढ़ती है, मानसिक कृत्यों पर नियंत्रण आता है। वास्तव में मौन की ऊर्जा से मानसिक रूप से ईश्वर से सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है। ईश्वर से संपर्क करने का यह एक सरल साधन है।
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मौनी अमावस्या वर्ष 2024 में कब, 09 फरवरी को या 10 फरवरी को - जानें
Mauni Amavasya Date In 2024: पितृ पूजन और अंतस पर नियंत्रण का पर्व भी मौनी अमावस्या को कहा जा सकता है। 9 फरवरी 2024, शुक्रवार के दिन साल 2024 में मौनी अमावस्या का पुण्य पर्व मनाया जाएगा। अमावस्या का दिन पितरों को समर्पित दिन माना जाता है। अमावस्या तिथि पर विशेष रूप से पितरों की पूजा की जाती है। अमावस्या तिथि पर चन्द्रमा के दर्शन नहीं होते है और वैदिक ज्योतिष में चन्द्रमा मन का कारक ग्रह है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार माह के तीस दोनों को 15-15 दिनों के दो पक्षों में बांटा गया है। एक पक्ष को कृष्ण पक्ष और दूसरे पक्ष को शुक्ल पक्ष का नाम दिया गया है। जिस पक्ष में कृष्ण पक्ष का अंत होता है वह तिथि अमावस्या तिथि कहलाती है और इसके विपरीत जिस पक्ष में शुक्ल पक्ष समाप्त होता है वह तिथि पूर्णिमा कहलाती है। दो माह मिलकर चंद्र माह कहलाते है।
मौनी अमावस्या पर मौन व्रत क्यों रखा जाता है?
मौनी शब्द मौन शब्द से बना है। मौन का अर्थ है वाणी और मन से स्थिर रहना। मौनी अमावस्या पर मौन रहकर व्रत करने का विधान है। मुख्य रूप से अमावस्या पितृ पूजन से सम्बंधित है। अमावस्या तिथि पर पितरों को याद कर उनके लिए भोग निकाला जाता है। मौनी अमावस्या पर केवल व्रत, उपवास रखना ही इस दिन की शुभता को सार्थक नहीं करता है। बल्कि इस दिन अंतस में भी मौन होना चाहिए। किसी के लिए कोई गलत विचार, भावना मन में ना आये, तभी इस दिन का उपवास पूर्ण होता है। परब्रह्म परमात्मा से आने वाली ऊर्जा की तरंगों को मौन, ध्यान या साधना अवस्था में ही सुना जा सकता है। जिस प्रकार रात्रि में शांति होने से रेडियो तरंगे स्पष्ट आती है, इसके विपरीत दिन के समय में वाणी प्रदूषण अधिक होने से रेडियो स्टेशन सेट नहीं हो पाते है। उसी प्रकार मन शांत हो, विचार स्थिर हो तो हम ईश्वर की वाणी को अधिक स्पष्ट सुन और समझ पाते है।
अमावस्याएं कितने प्रकार की है – अमावस्याओं के नाम
प्रत्येक माह में एक अमावस्या आती है। बारह माह में 12 अमावस्याएं आती है। इन 12 अमावस्याओं में से कुछ अमावस्याओं को विशेष माना जाता है। सोमवार के दिन आने वाली अमावस्या सोमवती अमावस्या कहलाती है। मंगलवार के दिन आने वाली अमावस्या भौमवती अमावस्या के नाम से जानी जाती है। माघ माह में आने वाली अमावस्या मौनी अमावस्या, शनिवार के दिन आने वाली अमावस्या शनैश्चरी अमावस्या कही जाती है। अश्विन माह में आने वाली अमावस्या सर्वपितृ अमावस्या कही जाती है। सावन मास में पड़ने वाली अमावस्या को हरियाली अमावस्या कहते है। कार्तिक मास की अमावस्या दीपावली पर्व होने के कारण सबसे काली अमावस्या मानी जाती है। भाद्रपद मास में पड़ने वाली अमावस्या कुशग्रहणी अमावस्या कहलाती है।
अमावस्या तिथि पर क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए?
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार झाड़ू खरीदने के लिए त्रयोदशी तिथि का प्रयोग करना चाहिए और अमावस्या तिथि पर झाड़ू खरीदने से बचना चाहिए। ऐसा माना जाता है की इस दिन झाड़ू खरीदने से धन की देवी लक्ष्मी जी अप्रसन्न होती है, जिसके करना धन, लाभ बाधित होता है।
अमावस्या पर पितृ पूजन किस समय करना चाहिए?
अमावस्या पर पितृ पूजन का समय दोपहर का उपयुक्त माना गया है। दोपहर बारह बजे के बाद पितरों के लिए भोग बनाकर पितरों को भोग ग्रहण करने के लिए आमंत्रित करना चाहिए। पितरों को भोग देने के बाद ब्राह्मण को भोजन और दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए।