मौनी अमावस्या 2021 के शुभ मुहूर्त, महत्व और मौन व्रत का माहात्म्य | Future Point

मौनी अमावस्या 2021 के शुभ मुहूर्त, महत्व और मौन व्रत का माहात्म्य

By: Future Point | 18-Jan-2021
Views : 4492मौनी अमावस्या 2021 के शुभ मुहूर्त, महत्व और मौन व्रत का माहात्म्य

हिंदू धर्म ग्रंथों में माघ के महीने को बहुत पवित्र माना गया है। इस मास को स्नान-दानादि के लिये बहुत ही शुभ माना जाता है। लेकिन माघ मास के ठीक मध्य में अमावस्या के दिन का तो बहुत विशेष महत्व माना जाता है। दरअसल मान्यता यह है कि इस दिन पवित्र नदी और मां का दर्जा रखने वाली गंगा मैया का जल अमृत बन जाता है। 

इसलिए माघ स्नान के लिये माघी अमावस्या यानि मौनी अमावस्या को बहुत ही शुभ और खास बताया है। फ्यूचर पंचांग के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं। इस दिन मनुष्य को मौन रहना चाहिए और गंगा, यमुना या अन्य पवित्र नदियों, जलाशय अथवा कुंड में स्नान करना चाहिए। 

धार्मिक मान्यता के अनुसार मुनि शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई है। इसलिए इस दिन मौन रहकर व्रत करने वाले व्यक्ति को मुनि पद की प्राप्ति होती है। माघ मास में होने वाले स्नान का सबसे महत्वपूर्ण पर्व अमावस्या ही है। इस दिन स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। फ्यूचर पंचांग के अनुसार वर्ष 2021 में मौनी अमावस्या का यह त्यौहार फरवरी 11 को बृहस्पतिवार के दिन है। जो कई मायनों में शुभ है।

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 2021 मौनी अमावस्या तिथि व मुहूर्त -

मौनी अमावस्या बृहस्पतिवार, फरवरी 11, 2021

अमावस्या तिथि प्रारम्भ -11 फरवरी  2021 को दोपहर 13 बजकर 08 मिनट से

अमावस्या तिथि समाप्त -12 फरवरी  2021 को मध्य रात्रि 00 बजकर 35 मिनट तक

मौनी अमावस्या का महत्व -

मौनी अमावस्या पर मौन रहने का विशेष महत्व बताया गया है। ऋषि-मुनि, साधु-संत सभी प्राचीन समय से कहते आ रहे हैं कि मन पर नियंत्रण रखना चाहिए। मन बहुत तेज गति से दौड़ता है, यदि मन के अनुसार चलते रहें तो यह हानिकारक भी हो सकता है। इसलिए अपने मन रूपी घोड़े की लगाम को हमेशा कस कर रखना चाहिए। 

मौनी अमावस्या भी यही संदेश देती है कि इस दिन मौन व्रत धारण कर मन को संयमित किया जाये। मन ही मन ईश्वर के नाम का स्मरण किया जाये उनका जाप किया जाये। यह एक प्रकार से मन को साधने की यौगिक क्रिया भी है। मान्यता यह भी है कि यदि किसी के लिए मौन रहना संभव न हो तो वह अपने विचारों में किसी भी प्रकार की मलिनता न आने दे, किसी के प्रति कोई कटुवचन न निकले तो भी मौनी अमावस्या का व्रत उसके लिए सफल होता है। 

सच्चे मन से भगवान विष्णु व भगवान शिव की पूजा भी इस दिन करनी चाहिए। शास्त्रों में इस दिन दान-पुण्य करने के महत्व को बहुत ही अधिक फलदायी बताया है। तीर्थराज प्रयाग में स्नान किया जाये तो कहना ही क्या, अन्यथा गंगा मैया का जल जहां भी हो वह तीर्थ के समान ही हो जाता है। पहले मन में धर कर गंगा मैया का ध्यान, स्वच्छ जल में गंगाजल की कुछ बूंदें डाल कर स्नान करें। 

इस दिन मौन व्रत रखकर मन को संयम में रखने का विधान बताया गया है। इस दिन भगवान विष्णु और शिव दोनों की पूजा का विधान है। इस दिन मनु ऋषि का जन्म भी माना जाता है। इसलिए भी इस अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। मकर राशि में सूर्य तथा चंद्रमा का योग इसी दिन होता है अत: इस अमावस्या का महत्व और बढ़ जाता है।

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मौनी अमावस्या कैसे करें व्रत-

व्रत उपवास के लिए सबसे पहली और अहम जरूरत होती है तन मन का स्वच्छ होना, अपने तन मन की बाह्य और आंतरिक स्वच्छता, निर्मलता के लिये ही इस दिन मौन व्रत रखा जाता है व दिन भर प्रभु का नाम मन ही मन सुमिरन किया जाता है। साथ ही प्रात:काल पवित्र तीर्थ स्थलों पर स्नान किया जाता है। 

स्नान के बाद तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला, वस्त्रादि किसी गरीब ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को दान दिया जाता है। मान्यता है कि इस दिन पितरों का तर्पण करने से भी उन्हें शांति मिलती है।

मौनी अमावस्या व्रत और धार्मिक कर्म -

हिन्दू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है। माघ अमावस्या के दिन किये जाने वाले धार्मिक कर्म, व्रत और नियम इस प्रकार हैं-

मौनी अमावस्या के दिन व्यक्ति को अपने सामर्थ्य के अनुसार दान, पुण्य तथा जाप करने चाहिए। यदि किसी व्यक्ति की सामर्थ्य त्रिवेणी के संगम अथवा अन्य किसी तीर्थ स्थान पर जाने की नहीं है, तब उसे अपने घर में ही प्रात: काल उठकर दैनिक कर्मों से निवृत होकर स्नान आदि करना चाहिए अथवा घर के समीप किसी भी नदी या नहर में स्नान कर सकते हैं।

पुराणों के अनुसार इस दिन सभी नदियों का जल गंगाजल के समान हो जाता है। स्नान करते हुए मौन धारण करें और जाप करने तक मौन व्रत का पालन करें।

मौनी अमावस्या के दिन प्रातःकाल स्नान नदी, सरोवर या पवित्र कुंड में स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए।

इस दिन पवित्र नदियों व तीर्थ स्थलों में स्नान करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति नदियों तीर्थ स्थलों पर नहीं जा सके वह अपने निवास स्थान पर जल में थोड़ा गंगाजल मिला कर मुखी तीर्थ स्थानों का स्मरण करते हुए स्नान करें, तो उसे भी मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

इस दिन व्रत रखकर जहां तक संभव हो मौन रहना चाहिए। गरीब व भूखे व्यक्ति को भोजन अवश्य कराएं।

अनाज, वस्त्र, तिल, आंवला, कंबल, पलंग, घी और गौ शाला में गाय के लिए भोजन का दान करें।

यदि आप आर्थिक रूप से संपन्न हैं तो गौ दान, स्वर्ण दान या भूमि दान भी कर सकते हैं।

इस दिन व्यक्ति प्रण करें कि वह झूठ, छल-कपट आदि की बातें नहीं करेंगे। इस दिन से व्यक्ति को सभी बेकार की बातों से दूर रहकर अपने मन को सबल बनाने की कोशिश करनी चाहिए। इससे मन शांत रहता है और शांत मन शरीर को सबल बनाता है।

व्यक्ति को इस दिन ब्रह्म देव तथा गायत्री का जाप अथवा पाठ करना चाहिए। मंत्रोच्चारण के साथ अथवा श्रद्धा-भक्ति के साथ दान करना चाहिए।

गाय, स्वर्ण, छाता, वस्त्र, बिस्तर तथा अन्य उपयोगी वस्तुएं अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करनी चाहिए।

हर अमावस्या की भांति माघ अमावस्या पर भी पितरों को याद करना चाहिए। इस दिन पितरों का तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।