लव एस्ट्रोलॉजी के बारे में 10 बातें जो आप नहीं जानते
By: Future Point | 17-Jan-2019
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प्रेम जीवन की सबसे अद्भुत अनुभूति है। प्रेम व्यक्ति को उत्साह, जोश और जीने की वजह देता है। प्रत्येक व्यक्ति जीवन में कभी न कभी प्रेम में होता है। प्रेम के पंखों पर सवार दो व्यक्ति जब एक दूसरे के साथ आगे का सारा जीवन व्यतीत करने का निर्णय कर लेते हैं तो उनका यह सोचना लाजमी है कि क्या यह रिश्ता विवाह सूत्र में बंध पाएगा। किसी ने सच ही कहा है कि सच्चे प्रेम की मंजिल विवाह है।
प्रेम केवल प्रेमी और प्रेमिका में ही नहीं होता बल्कि आज हम समाज में प्रेम के अनेक रुप अपने आसपास देखते हैं, एक माता का अपने पुत्र से प्रेम हो सकता है। शिष्य का अपने गुरु से आदरभावयुक्त प्रेम हो सकता है। मीरा का प्रेम भक्तिपूर्ण था तो, राधा के स्नेह में निश्चलता थी, एक भक्त का अपने ईष्ट से, अपने आराध्य से प्रेम हो सकता है। प्रेम के कई रुप हमारे आसपास बिखरे हुए हैं, जिन्हें पनपते, उभरते, विकसित होते हम देखते हैं। प्रेम के इन्हीं रुपों में हम देखते हैं कि कुछ को अपना प्रेम प्राप्त हो जाता है, और कुछ के हिस्से में केवल विफलता आती है।
जब इस तरह की स्थिति सामने आती है तो मन-मस्तिष्क में यही सवाल सामने आता है कि ऐसा क्यों होता हैं? दो प्रेमियों का प्रेम विवाह प्रणय का रुप ले पाएगा या नहीं यह एक योग्य ज्योतिषी अपनी ज्योतिष विद्या के द्वारा जान सकता है। भविष्य में प्रेमी-प्रेमिका का रिश्ता कितना सुखद रहेगा और यह रिश्ता कहां तक जाएगा, इसके लिए ज्योतिष विद्या का सहारा लेना लाभदायक सिद्ध हो सकता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की स्थिति, युति, योग, दशा और गोचर से यह जाना जा सकता है कि अमुक व्यक्ति को उसका प्रेम मिलेगा या नहीं। आज हम आपको यह बताने जा रहे हैं कि जन्मपत्री के कौन से योग प्रेम विवाह के सूचक होते है-
प्रेम विवाह से संबंधित भाव
पंचम भाव को प्रेम का भाव कहा जाता है। पंचम भाव प्रेम की व्याख्या करता है। इस भाव पर शुभ ग्रहों का शुभ प्रभाव प्रेम प्राप्ति के योगों को प्रबलता देता है। पंचम भाव का विवाह भाव अर्थात सप्तम भाव से संबंध प्रेम के रिश्तों को विवाह में बदलने की संभावनाएं देता है। पंचम से पंचम भाव भवात भावम सिद्धांत के अनुसार नवम भाव का विश्लेषण भी किया जाता है। इसके अतिरिक्त इच्छा पूर्ति का भाव एकादश भाव है, किसी व्यक्ति की कोई इच्छा पूर्ण होगी या नहीं होगी, इसके लिए एकादश भाव का सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है।
इसके साथ ही जन्म कुंडली का दूसरा भाव परिवार का भाव है, परिवार भाव से पंचम का संबंध प्रेम को विवाह में बदलने का मार्ग सहज करता है। द्वादश भाव शयन भाव है। पंचम भाव के स्वामी का द्वादश भाव के स्वामी से युति, दृष्टि और स्थिति संबंध बनना प्रेम विवाह के योग बनाता है।
प्रेम से संबंधित ग्रह
ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को प्रेम का कारक ग्रह कहा गया है। शुक्र ग्रह का सप्तम भाव को देखना, शुभ ग्रहों से दृष्ट होना प्रेम रिश्तों के लिए अतिशुभ माना जाता है। स्त्री कुंड्लियों में प्रेम के कारक ग्रह के लिए मंगल ग्रह का विश्लेषण किया जाता है। सहज रुप से शुक्र और मंगल दोनों का विचार कर लेना चाहिए।
प्रेम विवाह के ज्योतिषीय योग
प्रेम विवाह के लिए पंचम भाव, सप्तम भाव और इन दोनों भावों के स्वामियों का संबंध और शुक्र एवं मंगल की स्थिति देखी जाती है। इसके अतिरिक्त इन ग्रहों की दशा और संबंधित ग्रहों का गोचर भी देखा जाता है। भाव, ग्रह, कारक, दशा और गोचर का संबंध बनने पर प्रेम वैवाहिक बंधन में बंधता है। इसके विपरीत जब इनमें से किसी पर भी अशुभ या पाप प्रभाव हों तो प्रेम संबंधों में तनाव, बिखराव या दरार आती हैं। कई बार ऐसे में प्रेम संबंध विवाह का रुप लेते लेते रह जाता है। 5वें भाव के स्वामी, 7वें भाव के स्वामी, 9वें भाव के स्वामी और लग्न भाव के स्वामी का आपसी संबंध प्रेम विवाह का मार्ग खोलता हैं परन्तु इन पर किसी भी तरह का अशुभ प्रभाव विवाह पश्चात परेशानियों का कारण बनता है।
- प्रेम परिवार की सहमति से होगा या परिवार के सहमति नहीं मिल पायेगी, इसके लिए उपरोक्त भावों में नवम भाव विचारणीय है। नवम भाव यह बताता है कि विवाह को पारिवारिक, समाजिक सहमति मिलेगी या नहीं। विवाह धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार होगा या नहीं। इस भाव पर राहु/केतु का प्रभाव गैरजातीय विवाह और गैरपारम्परिक विवाह देता है।
- जन्मपत्री में शुक्र और चंद्र की युति भी प्रेम विवाह की सूचक होती है। यह योग यदि त्रिक भावों में बन रहा हो तो प्रेम विवाह तय होने में दिक्कतें भी अवश्य आती है।
- विवाह और वैवाहिक जीवन के लिए जन्मपत्री के अतिरिक्त नवमांश कुंड्ली का विश्लेषण भी करना चाहिए। नवमांश कुंडली सप्तम भाव का विस्तृत रुप है। नवमांश कुंड्ली से प्रेम विवाह की संभावनाएं व्यक्त होती है।
- पंचम भाव में राहु/केतु की स्थिति प्रेम विवाह सुनिश्चित करता है।
- पंचमेश सप्तमेश का राशि परिवर्तन योग होना, प्रेम विवाह करा सकता है।
- लग्न भाव के स्वामी और सप्तम भाव के स्वामी का आपस में राशि परिवर्तन होना भी प्रेम विवाह देता है।
प्रेम विवाह हेतु उपाय
गुरुवार के दिन बृहस्पति देव का पीली वस्तुओं से दर्शन-पूजन करना, पीली वस्तुएं देव को अर्पित करना प्रेम विवाह का अचूक उपाय है। यह उपाय लगातार 16 गुरुवार करें।
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