क्या कुंडली मिलान से सच मे कुछ फायदे होते हैं? जाने
By: Future Point | 06-Feb-2019
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धर्म शास्त्रों में विवाह को सात जन्मों का अटूट रिश्ता कहा गया है। इसलिए प्राय: विवाह करने से पूर्व अनेक रस्मों रिवाज और कुंडली मिलान की प्रक्रियाएं की जाती है। रिश्ता चाहे एक जन्म का हो या सात जन्म का उसका स्थिर और स्नेहपूर्ण होना आवश्यक है। आधुनिक समय में भारतीय संस्कृति भी पश्चिमी सभ्यता की होड़ में आज विवाह कल तलाक के नयी विचारधारा का पालन कर रही है। शायद यह सच हो की जोड़ियां स्वर्ग में बनती है लेकिन उन्हें हम सभी ने टूटते बिखरते देखा है।
आज के समय में तलाक के केस बढ़ते ही जा रहे है। रिश्ता टूटने का कारण भले ही कुछ भी रहा हो परन्तु विवाह टूटने का दर्द निश्चित रूप से दोनों पक्षों को होता है। विवाह तय होने से पहले कुंडली मिलान विवाह को सफल बनाने का एक छोटा सा प्रयास होता है। वैवाहिक जीवन को सफल बनाने में एक योग्य ज्योतिषी की भूमिका अहम् होती है। एक ज्योतिषी बहुत प्रयास करता है की कुंडली मिलान करते समय भावी वर-वधु दोनों की कुंडलियों के ज्योतिषीय योगों का भी विश्लेषण कर यह सुनिश्चित करता है की आने वाली नयी लाइफ दोनों के लिए सुखद हो।
कुंडली मिलान करते समय विशेष रूप से आठ प्रकार के गुणों का मिलान किया जाता है। जिसे कूट मिलान के नाम से जानते है। इन आठ मिलानों को मुख्य रूप से 36 गुण दिए जाते है। 36 में से 18 गुण मिलना विवाह करने के लिए उपयुक्त माना जाता है। कुंडली मिलान के अलावा दोनों जन्मपत्रियों के परिवार से जुड़ें सभी भावों का भी अध्ययन किया जाता है। इसमें दूसरा भाव जिसे कुटुंब भाव के नाम से जाना जाता है। पांचवा भाव जिसे संतान भाव का नाम दिया गया है। सातवां भाव जिसे विवाह भाव कहते है, ग्यारहवां भाव व्यक्ति की इच्छा पूर्ति का भाव है। इस भाव का विचार किये बिना कोई भी विश्लेषण पूरा नहीं होता है, इसके अतिरिक्त बारहवें भाव जिसे ज्योतिष शास्त्र में शयन भाव कहा गया है। उपरोक्त सभी भावों के द्वारा भावी वर वधु दोनों के भावी जीवन का अनुमान लगाया जाता है।
वैवाहिक जीवन को सुखमय और सफल बनाने में कुंडली मिलान के साथ साथ जन्म पत्री के अन्य योग भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। कुंडली मिलान में वर-कन्या दोनों की आपसी सामंजस्य, मित्रता, स्वभाव, जाति और पारिवारिक वृद्धि की संभावनाएं देखी जाती है। विवाह को सफल बनाने में ये सभी तत्व अपना अलग अलग महत्व रखते है।
कुंडली मिलान के आठ मापदंडों से भावी वर वधु दोनों की सामंजस्यता को सूक्ष्मता से जाना जा सकता है। मंगलदोष को भी वैवाहिक सफलता और असफलता के पक्ष से देखा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि कुंडली में मंगल लग्न, चुतर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो मंगल दोष कहा जाता है। यह दोनों दोनों कुंडलियों में होना शुभ और किसी एक कुंडली में होना अशुभ माना जाता है। विवाह भाव पर शनि राहु या दोनों का प्रभाव भी वैवाहिक जीवन की शुभता में कमी कर असफलता की संभावनाएं बनता है।
संक्षेप में कुंडली मिलान करते समय दोनों कुंडलियों के नक्षत्रों का पारस्परिक अध्ययन किया जाता है। इससे दोनों की कुंडलियां एक दूसरे की शुभता की शुभता को बढ़ाने वाली और अशुभता को कम करने वाली बनाकर पूरक कुंडलियां बन जाती है। कुंडली मिलान की प्रक्रिया करते समय भावी वर-वधू दोनों की ग्रहमैत्री का परस्पर मिलान किया जाता है। दोनों के नक्षत्रों की नाड़ियों में भिन्नता -समानता देखी जाती है। नाडी दोष को गुण मिलान में सबसे अधिक महत्व दिया जाता है। इसकी तुलना में तारा, वैश्य, ग्रहमैत्री, भकूट और योनि को अधिक महत्व नहीं दिया जाता है।
इसके साथ ही भकूट मिलान किया जाता है, जिसमें मुख्य रूप से नव-पंचम, द्विद्वादश और षडाष्टक योग देखा जाता है। दोष होने पर दोष का परिहार देखा जाता है। आठ कूटों में से नाड़ी मिलान और भकूट मिलान न मिलने पर सामान्यता विवाह न करने की सलाह दी जाती है। इन दोषों को होने पर वैवाहिक जीवन में सुखों की कमी भी देखी गयी है। सर्वविदित है की भारत वर्ष में सभी धर्मों, जातियों और क्षेत्रों में कुंडली मिलान को महत्त्व नहीं दिया जाता है।
यह माना जाता है की आठ कूटों में से यदि दो या दो से आधिक् कूट न मिल रहे हो तो विवाह के बाद संतान प्राप्ति में दिक्कतें आना, आर्थिक स्थिति प्रभावित होना। जैसी परेशानियां सामने आती है। ज्योतिष शास्त्र यहां तक भी कहता है की इस स्थिति में वर-वधू दोनों में से एक की आयु में कमी के योग भी बनते है। कुंडली मिलान करना निश्चित रूप वैवाहिक जीवन की सफलता असफलता को निर्धारित कर सकता है। परन्तु यहां ध्यान देने योग्य बात यह है की कुंडली मिलान के अतिरिक्त ज्योतिषी को कुंडली के अन्य योगों का भी बारीकी से अध्ययन करना चाहिए। जल्दबाजी में किसी भी प्रकार का निर्णय नहीं लेना चाहिए और जहां तक संभव हो कुंडली किसी योग्य ज्योतिषी को ही दिखानी चाहिए।