करें वास्तु के कुछ आसान उपाय और आप हमेशा रहेंगे परीक्षा मे अव्वल
By: Future Point | 18-Apr-2019
Views : 9883
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यक्ति को मुश्किलों, बाधाओं और परिक्षाओं का सामना करना पड़ता है। छात्र जीवन में परीक्षाओं की संख्या सामान्य से अधिक रहती है। कई बार छात्र बहुत अधिक मेहनत करता है, परन्तु फिर भी उसे अपनी योग्यतानुसार परिणाम प्राप्त नहीं हो पाते है। इस स्थिति में बालक के अभिभावक परेशान रहते हैं कि क्या कारण है कि बच्चे को योग्यता अनुसार अंक प्राप्त क्यों नहीं हो रहे है। इसका कारण वह्र के वास्तु दोष में छुपा होता है। यह वास्तु दोष घर और व्यावसायिक स्थल कहीं भी हो सकता है। शैक्षिक जीवन से ही बालक के भविष्य की दिशा तय होती है। बालक वयस्क होकर क्या बनेंगा यह यदि समय रहते ही निर्धारित कर लिया जाए तो आगे जाकर जातक का करियर शिक्षा क्षेत्र से जुड़ा होता है। बहुत प्रयास करने पर भी यदि शिक्षा अध्ययन सही नहीं हो पा रहा हो तो एक बार वास्तु शास्त्री से अपने घर और व्यावसायिक स्थल का निरीक्षण करा लेना चाहिए।
वास्तु सम्मत अध्ययन कक्ष का निर्माण कराया जाए तो छात्र का पढ़ाई में मन लगता है, एकाग्रता बढ़ती हैं और परिणाम भी अनुकूल आते है। किसी भी बालक का भविष्य उसकी शिक्षा दीक्षा पर निर्भर करता है। शिक्षा दीक्षा में किसी भी -प्रकार की कमी भविष्य में बालक की सफलता को बाधित करती है और बालक योग्य होकर भी कुछ बन नहीं पाता है। इस प्रकार की स्थिति से बचने के लिए माता-पिता को बालकों के अध्ययन कक्ष की साज सज्जा कराते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए। इससे बालकों की शैक्षिक सफलता उत्तम और सहज प्राप्त होगी। थोड़ी मेहनत में अच्छे अंक प्राप्त करने में वास्तु शास्त्र बेहतर परिणाम दे सकता है।
वास्तु शास्त्र यह कहता है कि पूर्व-उत्तर जिसे ईशान कोण के नाम से भी जाना जाता है। यह दिशा अध्ययन कार्यों के लिए विशेष रुप से शुभ मानी जाती है। अनुभव में यह पाया गया है जब भी वास्तु नियमों को अनदेखा कर अध्ययन किया जाता है तो कोई न कोई समस्या सामने आती ही है। वास्तु दोष युक्त स्थान में पढ़ाई करने वाले छात्रों का मन पढ़ाई में कम लगता है और एकाग्रत बार बार भंग होती रहती है। परीक्षा में टाप करने की इच्छा रखने वाले छात्रों के लिए आवश्यक है कि बालक जिस स्थान पर बैठकर पढ़ाई करता है, वह स्थान वास्तु नियमों को ध्यान में रखकर बनाया गया है।
- वास्तु शास्त्र के अनुसार ईशान कोण में यदि अध्ययन कक्ष ना हो तो पूर्व दिशा के स्थान में भी पढ़ाई करना श्रेयस्कर रहता है। यदि यह भी संभव न हो पाए तो पढ़ाई करते समय बालक का मुंह उत्तर पूर्व दिशा या ईशान दिशा की ओर होना चाहिए।
- इसी तरह यदि घर का निर्माण पहले हो चुका हो और अब उसमें सुधार की गुंजाईश ना हो, और पढ़ाई का कमरा पश्चिम दिशा में हो तो, पढ़ाई करते समय बालक का मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। यह माना जाता है कि इस दिशा से आने वाली सकारात्मक ऊर्जा शिक्षा अध्ययन के पक्ष से बहुत शुभ होती है। ईशान कोण और पूर्वी दिशा दोनों में अध्ययन कार्य किया जा सकता है। इन दोनों दिशाओं से आने वाली शुभ ऊर्जा जीवन को ऊर्जायुक्त बनाती है और एकाग्रता को बेहतर करती है।
- अध्ययन कक्ष बनाने के लिए ईशान कोण, पूर्वी दिशा और उत्तर दिशा के अतिरिक्त पश्चिम दिशा का प्रयोग भी किया जा सकता है। यहां सबसे उत्तम विकल्प ईशान कोण, पूर्वी दिशा, तत्पश्चात उत्तर दिशा और अंत में पश्चिम दिशा का भाव का प्रयोग करना चाहिए। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि भूलकर भी नैर्ऋत्य व आग्नेय दिशा में अध्ययन कार्य नहीं करना चाहिए।
- अध्ययन करते समय बालक की पीठ कभी भी दरवाजे की ओर नहीं होनी चाहिए।
- अध्ययन करने वाले बालक की अध्ययन व्यवस्था कभी भी किसी बीम के नीचे नहीं होनी चाहिए। इससे ध्यान भंग होता है।
- छात्रों के अध्ययन और शयन के लिए भी यही दिशाएं शुभ और अनुकूल रहेंगी। संभव हो तो बालक के अध्ययन कक्ष में ही छात्र का बेडरुम बनाया जा सकता है।
- अध्ययन कक्ष का दरवाजा ईशान दिशा, उत्तरी दिशा या पूर्वी दिशा अथवा पश्चिम दिशा में दरवाजा हो सकता है। इसके विपरीत आग्नेय, दक्षिण या उत्तर वायव्य में अध्ययन कक्ष होना सही नहीं माना जाता है।
- अध्ययन रुम में खिड़की होना शुभ माना गया है। यह खिड़की पूर्व या पश्चिम या उत्तर की दिशा में सही मानी गई है। खिड़की का दक्षिण दिशा में होना प्रतिकूल फलदायक माना गया है।
- शयन कक्ष में छात्रों को अध्ययन करते समय सिर सदैव दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर ही होना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोना उत्तम माना गया है, और इससे स्वास्थ्य बेहतर होता ह। साथ ही पश्चिम दिशा में सिरहाना करके सोने से अध्ययन कार्यों में छात्रों की रुचि बनी रहती है।
- ईशान कोण में ईश्वर का चित्र, अध्ययन मेज और पीने की व्यवस्था रख सकते है।
- किताबों की अलमारी दक्षिण पश्चिम दिशा में रखी जा सकती है। इसके लिए यह स्थान सबसे बेहतर माना गया है। वास्तु शास्त्र के अनुसार कभी भी नैर्ऋत्य व वायव्य दिशा में पुस्तकालय नहीं होना चाहिए। यह माना जाता है कि नैर्ऋत्य व वायव्य दिशा में बुक रैक्स होने से छात्रों की पढ़ाई में रुचि कम रहती है और पुस्तकें चोरी होने का भी भय भी रहता है।
- अध्ययन करने के बाद किताबों को खुला हुआ ना छोड़े। इससे नकारात्मक ऊर्जा जन्म लेती है और छात्रों के स्वास्थ्य के लिए भी उत्तम नहीं रहता है।
ज्योतिष आचार्या रेखा कल्पदेव
कुंडली विशेषज्ञ और प्रश्न शास्त्री
ज्योतिष आचार्या रेखा कल्पदेव पिछले 15 वर्षों से सटीक ज्योतिषीय फलादेश और घटना काल निर्धारण करने में महारत रखती है. कई प्रसिद्ध वेबसाईटस के लिए रेखा ज्योतिष परामर्श कार्य कर चुकी हैं। आचार्या रेखा एक बेहतरीन लेखिका भी हैं। इनके लिखे लेख कई बड़ी वेबसाईट, ई पत्रिकाओं और विश्व की सबसे चर्चित ज्योतिषीय पत्रिका फ्यूचर समाचार में शोधारित लेख एवं भविष्यकथन के कॉलम नियमित रुप से प्रकाशित होते रहते हैं। जीवन की स्थिति, आय, करियर, नौकरी, प्रेम जीवन, वैवाहिक जीवन, व्यापार, विदेशी यात्रा, ऋण और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, धन, बच्चे, शिक्षा, विवाह, कानूनी विवाद, धार्मिक मान्यताओं और सर्जरी सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं को फलादेश के माध्यम से हल करने में विशेषज्ञता रखती हैं।