कजरी कजली तीज महत्व कथा पूजा विधि
By: Future Point | 20-Aug-2018
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सालभर में हिंदू धर्म में अनेक त्योहार एवं व्रत करने का विधान है और इन्हीं व्रतों में से एक है कजरी तीज का व्रत। हर साल भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कमरी तीज का त्योहार मनाया जाता है।
आइए जानते हैं इस त्योहार के महत्व और पूजन विधि के बारे में।
कितनी बार आते हैं तीज के त्योहार
आपको बता दें कि सालभर में तीज का त्योहार एवं व्रत साल में चार बार आता है। अखा तीज, हरियाली तीज, कजली तीज और हरतालिका तीज।
कजली तीज 2018
हर साल भादो के महीने में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजली तीज का व्रत किया जाता है और इस बार ये व्रत 29 अगस्त, 2018 को है। विवाहित स्त्रियों के लिए ये व्रत बहुत महत्व रखता है।
कजली तीज का महत्व
इस दौरान आकाश में घुमड़ती काली घटाओं के कारण ही इस त्योहार का नाम कजली अथवा कजरी तीज रखा गया है। इस पर्व के बारे में मान्यता है कि भगवान शिव और मां गौरी की इस दिन पूजा करने से हर सुहागिन स्त्री को अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है।
कजली तीज व्रत के लाभ
अगर किसी विवाहित स्त्री का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं है या उसकी अपने पति के साथ अनबन रहती है या उसे अपने पति का प्रेम नहीं मिल पा रहा है तो उस स्त्री को कजली तीज का व्रत रखना चाहिए। इस व्रत को करने से दांपत्य जीवन सुखमय बनता है और रिश्ते में प्रेम बढ़ता है। कुंवारी कन्याएं भी इस व्रत को कर सकती हैं। उन्हें ये व्रत करने से उत्तम एवं मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।
शादीशुदा लोगों के लिए है महत्वपूर्ण त्योहार
तीज का ये त्योहार शादीशुदा लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत करने के लिए तीज का व्रत रखा जाता है। हर सुहागिन स्त्री के लिए इस व्रत को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन पत्नी अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं।
कैसे मनाते हैं कजली तीज
हमारे देश के हर राज्य और प्रांत में प्रत्येक त्योहार को अपने तरीके से मनााया जाता है। यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों में अलग-अलग तरह से कजली तीज मनाई जाती है।
उत्तर प्रदेश और बिहार में लोग नाव पर चढ़कर कजली गीत गाते हैा। बनारस और मिर्जा्रपुर में इस त्योहार को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। वे तीज के गानों को वर्षागीत के साथ गाते हैं।
राजस्थान के बूंदी शहर में इस त्योहार का रंग ही कुछ और होता है। भादो के तीसरे दिन यहां कजली तीज मनाई जाती है। इस मौके पर यहां पारंपरिक नृत्य होता है और ऊंट एवं हाथी की सवारी की जाती है। दूर-दूर से लोग बूंदी में कजली तीज का त्योहार देखने आते हैं।
कजली तीज की पूजन विधि
कजली तीज के कुछ दिन पूर्व विवाहित स्त्रियां नदी में स्नान करने जाती हैं और वहां से मिट्टी अपने घर लेकर आती हैं। इस मिट्टी का पिंड बनाकर उसमें जौ बोया जाता है और इसमें से कुछ समय बाद पौधा निकलकर आता है। महिलाएं अपने भाई और बड़ों के कान पर इन पौधों को रखकर सौभाग्यवती का आशीर्वाद लेती हैं।
कजली तीज से एक दिन पहले रात को जागकर लोक गीत गाए जाते हैं और कजरी खेली जाती है। अगले दिन कजली तीज पर पूरा दिन उपवास रखा जाता है और इसके बाद शाम को जौ, गेहूं, चावल, सत्तू, घी, गुड़ और मेवे से बने पकवान चंद्रमा को अर्पित किए जाते हैं और फिर स्वयं व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन मिट्टी से शिव और मां पार्वती की मूर्ति बनाकर भी उनकी पूजा की जाती है।
कजली तीज व्रत कथा
एक गांव में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। जब भाद्रपद के महीने में कजली तीज का त्योहार आया तो उस ब्राह्मण में तीज माता का व्रत रखा। ब्राह्मण को व्रत खोलने के लिए चने के सत्तू की आवश्यकता थी। तीज माता ने ब्राह्मण से कहा कि तुम चाहे कैसे भी करो किंतु मुझे तीज के दिन सत्तू का भोग लगाओ। रात्रि के समय ब्राह्मण सत्तू के लिए सीधा साहूकार के पास गया। उसने वहां चने की दाल, घी, शक्कर सवा किलो तोला और चलता बना। शोर सुनकर साहूकार की नींद खुल गई और उसने चोर जानकर ब्राह्मण को पकड़ लिया।
ब्राह्मण ने कहा कि वो चोर नहीं है। उसकी पत्नी ने तीज माता का व्रत रखा था और उसके पारण के लिए ही वो ये सब ले जा रहा है। साहूकार ने जब ब्राह्मण की तलाशी ली तो उसे उसके पास से सत्तू के अलावा और कुछ नहीं मिला। साहूकार ने ब्राह्मण की पत्नी को अपनी मुंह बोली बीन बना लिया और उसके लिए गहने, रुपए, मेहंदी और धन भेजा।
हिंदू धर्म में वैवाहिक और पारिवारिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए स्त्रियों के हेतु अनेक व्रत बनाए गए हैं जिनमें से एक कजली तीज भी है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से स्त्रियों को अपने जीवन में सभी सुखों की प्राप्ति होती है और मृत्यु के बाद शिवलोक में स्थान मिलता है। इसके साथ ही उन्हें सुख-शांति, सौभाग्य, समृद्धि, धर्म एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है।