ज्योतिष द्वारा जानें क्या आपकी कुंडली में है, उच्च शिक्षा के योग?
By: Future Point | 24-May-2022
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आजकल हर माता-पिता चाहते हैं कि हमारी संतान उच्च शिक्षा प्राप्त करे और कुल का नाम रोशन करे। बच्चे को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए माता-पिता हर उपाय करते हैं, परंतु संतान की कुंडली में उच्च शिक्षा का योग न होने के कारण वे बार-बार असफल होते हैं। हमारे शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है कि ‘विद्या धनं सर्व धनं प्रधानं’ अगर विद्या रूपी ज्ञान है तो हमारे पास धन कमाने के अनेक अवसर मिलते हैं, अतः विद्या रूपी धन सबसे महत्वपूर्ण धन है। अतः इसे प्राप्त करने के अवसर नहीं खोना चाहिए।
हमारे ऋषियों ने विद्या के क्षेत्र में अनेक शास्त्रों की रचना की है, उन्हीं में एक ज्योतिष शास्त्र है जिसके द्वारा हम संतान के विद्या के योगों को समझ सकते हैं, क्योंकि कई बार जातक की कुंडली में वकील बनने के योग नहीं हैं और हम उसे वकील बनने के लिए मजबूर करते हैं जिससे वह असफल हो जाता है। अतः कुंडली के द्वारा यह जानना अति आवश्यक है कि संतान की कुंडली में विद्या प्राप्ति के योग हैं या नहीं। अगर हैं तो कौन से क्षेत्र में हैं। इस आलेख के माध्यम से हम ज्योतिष शास्त्र में विद्या योग जानने का प्रयास करते हैं जिससे सफलतापूर्वक विद्या क्षेत्र का चयन करके उच्चतम मान-सम्मान, प्रतिष्ठा पा सकें।
सबसे पहले विद्या योग जानने के लिए जन्मकुंडली में पंचम भाव का विशेष महत्व है क्योंकि त्रिकोण स्थान है। विद्या ही मानव प्रगति की आधारशिला है अतः पंचम भाव का महत्त्व अत्यधिक बढ़ जाता है।
विद्या भाव - पंचम भाव, चतुर्थ भाव
नवम भाव - उच्च शिक्षा, धर्म विद्या
अष्टम भाव - गूढ़ विद्या भाव
विद्या देने वाले ग्रह
सूर्य - स्वास्थ्य
चंद्र - मन, बुद्धि
बुध - बुद्धि, विवेक, विद्या, वाणी
गुरु - ज्ञान, धर्म
श्लोक अनुसार
‘‘वदन्ति विद्या जननी सुखानि सुगन्धगोवन्धु मनो गुणानि।
महीपयानक्षिति मनिदराणि चतुर्थ भाव प्रभवानि तज्ज्ञा ।।’’
उपरोक्त श्लोक से स्पष्ट होता है कि निम्न भावों से एवं ग्रहों से विद्या योग का पूर्ण अध्ययन किया जा सकता है।
अध्ययन करने से पहले भाव के स्वामी, भावेश एवं भाव कारक ग्रह एवं विद्या कारक ग्रह राशि का पूर्ण अध्ययन करना जरूरी है, क्योंकि ज्योतिष शास्त्र नव ग्रह, द्वादश राशि, द्वादश भाव एवं 27 नक्षत्रों पर निर्भर है। अतः उनका गूढ़ अध्ययन करना अति आवश्यक है।
निम्न श्लोक से स्पष्ट होता है कि जातक विद्वान, धर्म सेवा में रत रहने वाला होता है।
श्लोक-
रूपातो विद्वान धर्म वाज्जीवसौम्यौ धर्म स्थाने दानवाचार्य युक्तौ।
विद्यावाग्मी सासितौ धर्म पातौ राजश्रीमाज्जीव शुक्रज्ञचन्द्राः।।
यदि नवम भाव में बुध और गुरु के साथ शुक्र संयुक्त हो तो जातक विख्यात विद्वान, धार्मिक वृत्ति का होता है।
यदि बुध और गुरु के साथ शनि संयुक्त हो तो जातक विद्यानुरागी श्रेष्ठ वक्ता होता है।
यदि नवम भाव में चंद्रमा, बुध, गुरु, शुक्र संयुक्त हो तो जातक अनेक शास्त्रों का ज्ञाता होता है और राजकीय सम्मान से सम्मानित होता है।
यदि नवमस्थ बृहस्पति बुध और सूर्य से देखा जा रहा हो तो उच्च विद्याओं का ज्ञाता एवं धर्मनिष्ठ, मान-सम्मान पाने वाला होता है और ऐसा जातक अपने विद्वत्ता के द्वारा नाम और यश को प्राप्त करता है।
कर्क, वृश्चिक, मीन में चंद्र हो तो जातक वकालत की पढ़ाई करता है।
श्लोक-
धनस्थे काष्यानां सर सरचना चारुपटुताऽधिकारी दंडानां प्रवर वसुधापालसदने।।
यदि जन्म समय में द्वितीय भाव में गुरु हो तो न्यायाधीश, कास्य, दंड अधिकारी की पढ़ाई करता है।
यदि बुध, मंगल परस्पर सातवें भाव में हो तो मनुष्य इन्जीनियर होता है।
यदि द्वितीय, तृतीय भाव में बुध, सूर्य, चंद्र हो तो जातक गणितज्ञ एवं सी.ए की सफलतापूर्वक पढ़ाई करता है और गणित के द्वारा करियर बनाता है।
गुरु नवम भाव में हो तो व्यक्ति शैक्षणिक क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त करता है और उच्च शिक्षा का योग बनता है।
बुध का संबंध सूर्य के साथ हो और चंद्र भी बुध से संबंध स्थापित कर रहा हो तो जातक लेखन विद्या की ओर अग्रसर होता है, मान-सम्मान प्राप्त करता है और सफल साहित्यकार होता है।
बुध, शुक्र एवं चंद्र तीनों एकादश भाव में हों और सूर्य दशम भाव, गुरु लग्न में हो तो जातक अवश्य ही लेखन विद्या से विश्व में ख्याति प्राप्त करता है।
नवम भाव में राहु हो तो व्यक्ति को प्रखर बुद्धिमान एवं विद्वान बनाता है।
शुक्र पंचम, छठे या द्वादश भाव में हो तो जातक विख्यात ज्योतिषी होता है और गहरी विद्याओं का शोध करता है।
पंचम भाव में मंगल हो तो व्यक्ति मेडिकल शिक्षा, चिकित्सा के क्षेत्र में विद्वान होता है।
सूर्य लग्न में, मंगल दशम भाव में हो तो उच्चतम श्रेणी की पढ़ाई करते हुए मान-सम्मान प्राप्त करता है।
भाग्य स्थान में गुरु-शुक्र का संबंध होने से संगीत का विद्वान होता है।
यदि शनि केंद्र में या त्रिकोण में होकर शुभ ग्रह से दृष्ट हो या एकादश भाव में हो तो जातक वकालत की पढ़ाई करता है और सफल वकील होता है।
वृश्चिक-मकर राशि का शनि केंद्र 1, 4, 7, 10 या 1, 2, 3, 9, 11 भाव में हो या स्वराशि का हो या नवम भाव में गुरु-चंद्र परस्पर दृष्ट हो तो वकील होगा।
शुक्र-बुध 2, 5, 9, 11 भाव में हो तो वेदान्ती होता है और वेद शास्त्रों का ज्ञाता होता है।
यदि 5-11 में बहुत सारे ग्रह हों तो जातक विद्वान होता है, सफल इन्जीनियर होता है।
लग्न में या मिथुन राशि में शुक्र हो तो जातक शास्त्रों की पढ़ाई करके शास्त्री होता है।
कुछ महत्वपूर्ण विद्या के योग
यदि योगकारक ग्रह अपनी राशि के होकर केंद्र या त्रिकोण भाव में स्थित हों तो जातक अनेक विद्याओं को प्राप्त करता है और सफल विद्वान होता है।
द्वितीय भावेश शुभ ग्रह से युक्त होकर केंद्र या त्रिकोण अथवा किसी भी शुभ स्थान में स्थित हो तो जातक विद्वान एवं वाक्पटुता से युक्त होता है।
गुरु की स्थिति यदि केंद्र में अथवा त्रिकोण भावों में हो और शुक्र अपनी उच्च राशि में स्थित हो, द्वितीय भाव का स्वामी यदि बुध हो (लग्न वृष, सिंह हो) तो दोनों स्थितियों में जातक गणितज्ञ होता है।
द्वितीय भाव में यदि मंगल हो, बुध से युक्त या दृष्ट हो अथवा केंद्र में बुध स्थित हो तो जातक गणितज्ञ होता है।
द्वितीय भाव का स्वामी सूर्य या मंगल हो और गुरु शुक्र की पूर्ण दृष्टि हो तो सफल प्रोफेसर होता है।
यदि द्वितीय भाव का स्वामी गुरु पूर्ण बलवान हो, सूर्य और शुक्र से दृष्ट हो तो जातक व्याकरण का विद्वान होता है।
यदि शनि को बुध-शुक्र देख रहा हो और गुरु केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो तो जातक वेद का ज्ञाता होता है।
गुरु केंद्र में, शुक्र द्वितीय भाव में, बुध के नवांश में हो तो जातक शास्त्रों का ज्ञाता होता है।
द्वितीय भाव में बुध तथा गुरु युक्त हो और उन पर शनि की पूर्ण दृष्टि हो तो जातक वकील या डॉक्टर होता है।
यदि चतुर्थ भाव में बुध हो तो जातक अनेक विद्याओं से युक्त होता है।
पंचम भाव में बुध हो तो जातक मंत्र शास्त्रों का पूर्ण विद्वान होता है।