जानिए, कुंडली में विवाह के योग किस प्रकार बनते हैं
By: Future Point | 15-Oct-2019
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आज के डिजिटल (digital) दौर में तकनीक की लहरों पर सवार युवा वैज्ञानिकता, आधुनिकता और खुद को अतिविकसित होने का तर्क चाहे जो भी दें, लेकिन ज्योतिष विज्ञान को वे नकार नहीं सकते। सच तो यह है कि ज्योतिषीय दृष्टिकोण अपनाकर ही वैवाहिक जीवन में प्रेम, सौहार्द्र, संस्कार और संवेदनशीलता के सुखद भावों के संचार की उम्मीद की जा सकती है।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करने वाले ग्रहों की दिशा और दशा के अनुसार विवाह योग बनते-बगड़ते हैं। जन्म तिथि, समय व जन्म स्थान पर आधारित कुंडलियों का मिलान कर ग्रहों की इन स्थितियों और वर वधू के वैवाहिक जीवन के बारे में जाना जा सकता है। समय रहते इनका उचित समाधान कर उनके सुखद वैवाहिक जीवन की कामना की जा सकती है।
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Kundli मे विवाह के योग-
कुंडली में ग्रहों की इन स्थितियों से विवाह के योग बनते हैं:
- Jyotish Shastra के अनुसार बेहतर विवाह योग के लिए कुंडली के दूसरे, पांचवें, सातवें, आठवें और बारहवें घरों में बनी ग्रहों की स्थिति पर ध्यान दिया जाता है। इनमें मंगल, शनि, सूर्य, राहू और केतु ग्रहों की स्थिति का विशेष तौर पर आंकलन किया जाता है। इस आधार पर ही विवाह के उपयुक्त समय का भी निर्धारण होता है।
- पुरुष के लिए विवाह का कारक ग्रह जहां शुक्र है, वहीं स्त्री के लिए विवाह का कारक ग्रह बृहस्पति होता है। ये दूसरे ग्रहों के प्रभाव में आकर ही विवाह की अनुकूल या प्रतिकूल स्थितियां पैदा करते हैं।
- विवाह तय होने, वैवाहिक जीवन की मधुरता और पति-पत्नी की चारित्रिक विशेषताओं का आकलन करने, संतान-सुख मिलने तथा तलाक की नौबत आने तक की बातों का विश्लेषण काफी जटिलता लिए होता है, वैसे कोई भी व्यक्ति चाहे तो अपनी कुंडली के सातवें घर को देखकर अपने विवाह के साथ-साथ जीवनसाथी संबंधी संभावनाएं जान सकता है, इस स्थान का कारक ग्रह शुक्र है, लेकिन यहां शनि की स्थिति मजबूत बनने और बृहस्पति के कमजोर पड़ जाने के कारण कुशल विवाह योग प्रभावित हो जाता है, सूर्य के प्रभाव में आने से तलाक जैसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं, तो मंगल के आने से मांगलिक योग बन जाता है।
- स्त्री की कुंडली (kundli) का आठवां घर उसके भाग्य को दर्शाता है, तो स्त्री व पुरुष की कुंडली का बारहवां घर शैया-सुख अर्थात् सुखद यौन-संबंध के बारे में बताता है। इसी के अनुसार दो लोगों के बीच एक-दूसरे के प्रति आकर्षण बनता है और उनमें प्रेम की भावना जागृत होती है।
- विवाह तय होने, वैवाहिक जीवन की मधुरता और पति-पत्नी की चारित्रिक विशेषताओं का आकलन करने, संतान-सुख मिलने तथा तलाक की नौबत आने तक की बातों का विश्लेषण काफी जटिलता लिए होता है। कोई भी व्यक्ति चाहे तो अपनी कुंडली के सातवें घर को देखकर अपने विवाह के साथ-साथ जीवन साथी संबंधी संभावनाएं जान सकता है। इस स्थान का कारक ग्रह शुक्र है, लेकिन यहां शनि की स्थिति मजबूत बनने और बृहस्पति के कमजोर पड़ जाने के कारण कुशल विवाह योग प्रभावित हो जाता है। सूर्य के प्रभाव में आने से तलाक जैसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं, तो मंगल के आने से मांगलिक योग बन जाता है।
- कुंडली (kundali) के पहले, चौथे, सातवें और बारहवें घर में मंगल के होने से मंगल दोष बनता है। यह विवाह में विलंब, विवाह के बाद दांपत्य में कलह, दंपति के स्वास्थ्य में गिरावट, दंपति के संबंध-विच्छेद यानी तलाक, या फिर जीवनसाथी की मृत्यु तक की आशंकाओं को भी जन्म देता है,। मंगल योग के प्रभाव वाले व्यक्तियों का विवाह 27, 29, 31, 33, 35 या 37 वर्ष की उम्र में ही संभव हो पाता है।
- सातवें स्थान पर बुध की शक्ति कम हो जाती है। राहु ( Rahu) और केतु (Ketu) के आने से जीवन साथी से अलगाव की स्थितियां पैदा हो जाती हैं। राहु के सातवें घर में होने की स्थिति में पति-पत्नी के बीच नहीं चाहते हुए भी दूरी बढ़ने लगती है। दोनों में से किसी एक के मन में विरक्ति के भाव या वैसी अप्रत्याशित परिस्थितियां पैदा होने से अलगाव सुनिश्चित हो जाता है। यह कहें कि पत्नी अगर पति से दूर भागती है, तो पति मजबूरन पत्नी से दूरी बनाए रहता है। दोनों की कुंडली (kundli) के सातवें घर में राहु या केतु के होने की स्थिति में विवाह के सालभर के भीतर ही तलाक की नौबत आ जाती है।
- इसी तरह से केतु के होने की स्थिति में दंपत्ति आजीवन अलग-अलग जीवन व्यतीत करने को विवश होते हैं। पति-पत्नी न तो एक-दूसरे को पसंद करते हैं, और न ही वे वैचारिक स्तर पर मधुरता कायम कर पाते हैं। हालांकि धार्मिक अनुष्ठानों से ग्रहों की स्थिति को सही करवाया जा सकता है जिससे केतु के दुष्प्रभाव को नष्ट किया जा सकता है।
- सातवें घर का स्वामी कुंडली के सातवें घर में ही होने पर ऐसा व्यक्ति सफल वैवाहिक जीवन व्यतीत करता है। उसकी उन्नति की राह में कोई बाधा नहीं आती है और पति-पत्नी के आपसी संबंध मधुर बने रहते हैं।
- ज्योतिष (Jyotish) की भाषा में विवाह की स्थिति सप्तमेश यानि लग्नेश की महाअंतर्दशा या सिर्फ अंतर्दशा के बनने पर आती है, यानी कि सातवें घर की ग्रहीय स्थिति के साथ बृहस्पति अर्थात गुरु की महादशा और शुक्र की अंतर्दशा से विवाह योग की संभावना प्रबल हो जाती है। और सरल भाषा में कहें तो सातवें या उससे संबंध रखने वाले ग्रह की महादशा या अंतर्दशा में विवाह योग बन पाता है। जिस किसी की कुंडली में बृहस्पति सातवें घर में होता है, उसके शीघ्र विवाह होने की संभावन बनती है। संभव है उनका विवाह 21-22 वर्ष की उम्र में ही हो जाए।
- इसी तरह से कुंडली के सातवें घर में शुक्र के होने की स्थिति में व्यक्ति का विवाह (vivah) युवावस्था में ही संभव होता है। दूसरी तरफ बेमेल विवाह के योग कुंडली में चंद्रमा के उच्च स्थिति में होने के कारण बन सकते हैं। विवाह में देरी का मुख्य कारण मंगल का छठे घर में होना है।
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शीघ्र विवाह के ज्योतिषीय उपाय
कुंडली में ग्रहों की अशुभ स्थिति के कारण विवाह में देरी होती है। इनके निवारण के लिए आप निम्न उपाय कर सकते हैं:
- किसी योग्य ज्योतिषी की सलाह से सप्तमेश का रत्न (Gemstone) धारण करें।`
- सूर्य को अर्घ्य दें तथा सूर्य मंत्र का जाप करें।
- यदि कालसर्प दोष (Kaal Sarp Dosh) हो तो कालसर्प दोष निवारण पूजा (Kaal Sarp Dosh Nivaran Puja) करवाएं।
- पीपल के पेड़ पर मीठा जल चढ़ाएं और घी का दीपक जलाएं। साथ ही इच्छा प्राप्ति की कमना करें।
- सूर्य या चंद्रमा के साथ राहु के होने पर ग्रह दोष बनता है। ग्रह दोष शांत करने के लिए शांति पूजा करवाएं।
- शिवजी को रोज़ दूध चढ़ाएं।
- घर में वास्तु दोष हो तो उसे दूर करें।
- दक्षिण या पूर्व दिशा की ओर सिर रखकर सोएं।
- दुर्गा सप्तशती के अर्गला स्रोत के 24वें मंत्र का नित्य जाप करें।
इन ज्योतिषीय उपायों से आपके विवाह में आ रहीं बाधाएं दूर होंगी और शीघ्र विवाह के योग बनेंगे। लेकिन ये उपाय कुछ विशेष ज्योतिषीय नियमों के तहत किए जाते हैं। जातक की कुंडली में ग्रहों की स्थिति से तय होता है कि उसके लिए कौन सा उपाय कारगर होगा। इसलिए किसी भी उपाय को करने से पहले हमारे विशेषज्ञ ज्योतिषी से परामर्श ज़रूर लें।