किसी ने शयाम कहा, किसी ने केशव कहा, कोई कृष्ण कहें, कोई गोपाल सबके प्यारे, सबके लाडले रासबिहारी, मायापति, माधव। मुरली धामी तो बन गये मुरलीधारी, उठायो गोवर्धन तो कहलाये गिरिधारी एक ऊर्जा, एक श्री हरि जिनके नाम पुकारे जन अनेक।
श्री विष्णु जी के 8वें अवतार भगवान श्रीकृष्ण जी ने जितनी लीलाएं की, उतनी लीलाएं, किसी अन्य अवतार ने नहीं की। भारत के अलग अलग राज्यों में इन्हें अलग अलग नामों से पुकारा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की जन्म नगरी मथुरा में इन्हें, गोविन्द, गोपाल, कान्हा, कृष्ण कहा जाता है तो , राजस्थान में इनके नाम बदल जाते है, वहां कोई इन्हें ठाकुरजी और कोई भाव से श्रीनाथजी कहता है। मराठी नगरी महाराष्ट्र में विठ्ठल जी महाराज कहलाये जाते है, उड़ीसा में श्री जगन्नाथ का सम्बोधन है, और बंगाल में गोपालजी के नाम से जाने जाते हैं।
भारत के दक्षिण में गए तो लोगों के ह्रदय में वेंकेटेश बन विराजित हुए, गुजरात में द्वारकाधीश बन विराजित हुए, त्रिपुरा और असम में कृष्ण नाम पाया, यूं तो कण कण में भगवान् श्री कृष्ण जी विराजित है, पर करोड़ों अणुओं की तरह उनके नाम और उनकी शक्ति भी असीमित है, अनंत है, अगोचर है। जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता, जिसे मन्त्रों से भी बांधा नहीं जा सकता, जिसे शक्ति से रोका नहीं जा सकता, जिसे स्नेह से ह्रदय स्थल में जन्मजन्मांतर के लिए अपना बनाकर रखा जरूर जा सकता है।
ऐसे राधावल्लभ भगवान् श्री कृष्ण को समझना और उनके गुणों को समझना, जानना, उनसे परिचित होना, सरल कार्य नहीं है। भगवान श्री कृष्ण के विषय में कहा जाता है की भगवान् श्री कृष्ण टेढ़े है, उनकी मुरली टेढ़ी, उनकी छवि भी टेढ़ी, उनकी भृकुटि टेडी, उनकी नजरे टेडी, उनकी चितवन टेडी, उनकी मुस्कान भी टेडी, उनकी चाल भी टेडी , ऐसे टेड़े व्यक्ति का ह्रदय एक दम सरल है, सहज है, जिसे निश्चल स्नेह से अपना बनाया जा सकता है।
ऐसे मोरमुकुटधारी भगवान गोपाल जी को 16 कलाओं और 64 गुणों वाला कहा गया है। भगवान श्रीकृष्ण की 16 कलाएं कौन कौन सी थी। भगवान श्रीकृष्ण जी सोलह कला संपन्न है, इसलिए चंद्र के समान मनमोहक है।
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