जाने स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान और उपाय ज्योतिषी अरुण बंसल द्वारा
By: Future Point | 24-Jan-2019
Views : 8619
किसी विद्वान ने सच ही कहा है कि - "पहला सुख निरोगी काया"। एक स्वस्थ शरीर में ही एक स्वस्थ मन का वास होता है। स्वास्थ्य सारे सुखों पर भारी होती है। क्योंकि यदि आप स्वस्थ है तभी आप जीवन के अन्य सुखों का भोग कर सकते हैं। किसी व्यक्ति के पास चाहे अपार धन संपत्ति हों, जीवन के सभी सुख हों, लेकिन यदि व्यक्ति के पास सेहत का सुख नहीं है तो बाकि सभी सुख धरे के धरे रह जाते है। जन्मपत्री का पहला भाव जिसे लग्न भाव के नाम से भी जाना जाता है। इस भाव, भावेश और कारक का सुस्थिर होना, स्वास्थ्य सुख को उत्तम बनाता है।
इसके विपरीत लग्न भाव, लग्नेश का त्रिक भावों में जाना स्वास्थ्य में कमी का कारण बनता है। कालपुरुष कुंडली के विभिन्न भाव शरीर के विभिन्न अंगों के सूचक है। जैसे - पहला भाव संपूर्ण शरीर भी है और मुख भी है। छठा भाव रोग भाव है। इस भाव के स्वामी का अष्टम भाव में जाना रोगों को दीर्घकालीन बनाता है। प्रथम भाव में जाना शरीर में कोई ना कोई रोग लगे रहने की संभावनाएं बनाता है। आय भाव में रोग भावेश का स्थित होना भी रोगों को बढ़ाता है। इसी तरह से यदि लग्न भाव का स्वामी, षष्ठ या अष्टम भाव में हो तो व्यक्ति अधिकतर रोगग्रस्त रहता है। ऐसा क्यों होता, हम जिस वातावरण में रहते हैं उसका वास्तुसम्मत होना अनिवार्य है।
वास्तु से स्वास्थ्य सुख
वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि घर के दक्षिण और पश्चिम भाग जिसे नैऋत्य कोण के नाम से भी जाना जाता है। इस दिशा को वास्तु अनुरुप रखने पर गंभीर रोग नियंत्रण में रहते हैं। अन्यथा असामायिक दुर्घट्नाएं, अकाल मृत्यु, गंभीर रोग और मानसिक पीड़ाएं कष्ट का कारण बनती है। ईशान कोण में सीढ़ियां, शौचालय या रसोई होना परिवार के सदस्यों को कोई न कोई रोग देता है। यह परिवार के सदस्यों के रोग बढ़ाता है और नेगिटिव एनर्जी में बढ़ोतरी करता है। सोते समय दक्षिण दिशा में पैर होना, सेहत के लिए प्रतिकूल सिद्ध होता है। यह भी माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति ईशान कोण में शयन करता है तो हेल्थ ईशू रहते है। वास्तु शास्त्र के अनुसार बीम के नीचे सोने से बचना चाहिए। यह स्वास्थ्य के विपरीत होता है।
तुलसी रस का सेवन
तुलसी के औषधिय गुणों की विवेचना आयुर्वेद शास्त्र में की गई है। इस पौधों को देवी का स्थान दिया गया है। आज विज्ञान ने भी स्वीकार कर लिया है कि, यह पौधा औषधी गुणों से भरपूर है। इस योग की विशेषता है कि तुलसी पत्र के सेवन या इसके रस का सेवन करने से आत्मशक्ति बढ़ती है। सकारात्मक ऊर्जा में यह वॄद्धि करता है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है। दक्षिणी भाग में इस पौधों को लगाने से बचना चाहिए। रोग ग्रस्त होने पर नित्य प्रात: तुलसी रस का सेवन करना चाहिए।
जीवनशैली को अनुशसित रखें
स्वस्थ रहने का सबसे बड़ा साधन व्यायाम करना और अपनी फिटनेस का ध्यान रखना है। स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए और यथासंभव कसरत/व्यायाम भी करना चाहिए। अपने रोज के कार्यों की तालिका बनाए और इसमें सभी कार्यों को स्थान दें। सोना, खाना, काम करना सभी क्रियाएं अपना अपना महत्व रखती है। इसलिए सभी को समय देना चाहिए।
योगा से स्वस्थ रहें
योगा एक चमत्कारिक औषधी का कार्य करती है। इससे ना केवल सेहत अच्छी रहती है, बल्कि व्यक्ति सकारात्मक होकर ऊर्जावान भी रहता है। नियमित रुप से योगा करने पर कुछ ही समयावधि में व्यक्ति के व्यक्तित्व में बदलाव आता है। अधिक ना हो पाये तो आप प्रात: उठकर सैर के लिए जायें या दौड़ लगाएं। इससे शरीर सुंदर, आकर्षक और बलिष्ठ बनता है। इसके लिए आप जिम का सहारा भी ले सकते हैं। उपरोक्त सभी कार्य करने के बाद भी यदि आपको रोगों का बार बार सामना करना पड़ता है या सेहत कमजोर रहती है, तो ज्योतिष के निम्न उपाय करने से लाभ मिल सकता हैं-
- रविवार के दिन आटे का पेड़ा और लोटा पानी लेकर रोगी व्यक्ति के सिर से घूमाकर पानी को पौधे में डालें और पेड़े को ले जाकर गाय को खिला दें। यह उपाय लगातार तीन दिन करना होगा।
- अमावस्या तिथि के दिन मेहंदी और पानी मिलाकर दीपक बनाकर, सुखायें और ५वें दिन बहते जल में प्रवाहित कर दें।
- चौमुखी बत्ती से युक्त सरसों के तेल का दीप जलाकर उसमें ७ दाने उड़द, एक चुटकी सिंदूर, २ बूंद दही डालें, एक नींबूं को दो भागों में काटकर भैरों जी का पूजन करें, तत्पश्चात इन सब वस्तुओं को चौराहे पर जला दें।
- रोग निवारण के लिए भैरव स्तोत्र का नित्य पाठ करना लाभदायक सिद्ध होता है।
- परिवार में यदि कोई गंभीर रोग से पीड़ित है तो स्वयं रोगी को या फिर परिवार के सदस्य को रोगी के लिए महामृत्युजंय मंत्र का जाप करना चाहिए। यह जाप रुद्राक्ष माला पर किया जाए तो अधिक शुभ फल देता है।
- किसी सूखे कुंए में नींबूं दो भागों में काट कर डाल दें। ऐसा करते समय कि यह ध्यान रखें कि सीधे वापस आ जाएं। मुड़कर ना देखें।
- यथासंभव पशुओं और पक्षियों की सेवा करना, दान-पानी डालने से रोग दूर होते है।
- उपाय शनिवार के दिन शुरु करें- पीपल के वृक्ष को प्रात: स्नानादि क्रियाओं के बाद जल दें और उसी पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलायें। यह उपाय लगातार ७ दिन करना है।
- एक गोमती चक्र में छिद्र कर उसे एक धागे में पिरोकर हांड़ी में बांध दें। इसके बाद इस हांड़ी को रोगी व्यक्ति के पलंग के पाये से बांध दें। कुछ ही समय में आपको मनोनूकुल फल प्राप्त होने लगेंगे।
- रोगी व्यक्ति प्रात: काल में सूर्योदय को जल दें।
- साथ ही सूर्य मंत्र का जाप करें।
- संध्या काल में प्रार्थना करें। घर के मंदिर में धूप, दीप और फूल अर्पित करें। आरती भी करें।
Have some queries in your mind regarding certain areas of life? Then, why continue to remain in doubt. Talk To Astrologer now for expert guidance and smart solutions!
Read Other Articles: