जानें कौन सा ग्रह किस रोग को देता है आमंत्रण
By: Future Point | 21-Mar-2018
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सभी ग्रह किसी न किसी रोग का प्रतिनिधित्व करते हैं। सूर्यादि नवग्रह आपके पूर्वजन्म के किये हुए कर्मों के अनुसार आपको रोग प्रदान करते हैं। यदि आप अच्छे कर्म किये हैं तो निरोगीकाया का स्वामी होंगे और बुरे कर्म किये होंगे तो आपको कोई न कोई बीमारी लगी रहेगी। हमारे शास्त्रों में कहा भी गया है- पूर्व जन्मकृतं पापं व्याधिरूपेण जायते अर्थात पूर्व जन्म के पापकर्म ही व्याधि रूप में भोगना पड़ता है। हर बीमारी का संबंध किसी न किसी ग्रह से है जो आपकी कुंडली में नकारात्मक फल देते हैं। सूर्य आदि नवग्रह मनुष्य के शरीर के अंग, धातु एवं दोषों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जब ग्रह 6, 8, 12 में हो, नीच/अस्त या शत्रु राशि में हों तो अनिष्ट प्रभावकारी हो जाते हैं। तब वह शरीर के अंग धातु एवं दोष आदि में विकार या रोग देते हैं। उन ग्रहों को अकारक, बाधक व मारक ग्रह कहते हैं। इन ग्रहों की दशान्तरदशा में शारीरिक कष्ट होने की अधिक संभावना बनी रहती है। यहाँ सभी बीमारियों का जिक्र नहीं करूंगा केवल सामान्य रोग जो आजकल बहुत से लोगों को हो रहे हैं उन्हीं का जिक्र करूंगा।
हमारे बुजुर्गों ने कहा भी है पहला सुख निरोगी काया यह कहावत काफी हद तक सच कही गयी है। क्योंकि आपके पास लाख धन-सम्पति हो परंतु शरीर ठीक न हो तो संसारिक सभी वस्तुएं बेकार लगती है। अर्थात व्यक्ति का शरीर यदि स्वस्थ है और भले ही वह धन से इतना अमीर नहीं भी है तो भी सुखी है। स्वस्थ शरीर से ही संसारिक सभी वस्तुओं का आनन्द लिया जाता है। जन्मकुण्डली कुछ ऐसे ग्रहों की दशा आ जाती है जो जातक को बीमार कर देती है। सूर्यादि नवग्रहों से होने वाली बीमारियों का वर्णन नीचे कर रहा हूं।
सूर्य से होने वाले रोग
पित्त विकार, तीव्र ज्वर, शरीर में जलन होना, नेत्र संबंधी रोग, हड्डियों से संबंधित रोग, सिर में पीड़ा, रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी, न्यूरोलॉजी से सम्बन्धी रोग।
चन्द्रमा से होने वाले रोग
हृ्रदय एवं फेफड़े सम्बन्धी रोग, अनिद्रा, जलोदर, सोते हुए चलने की बीमारी होना, मन में थकावट व व्याकुलता, अस्थमा, रक्तविकार, किडनी संबंधित रोग, कफ रोग, मूत्रविकार, मुख सम्बन्धी रोग, नासिका संबंधी रोग, मानसिक रोग, अरूचि होना, ठंड से बुखार होना इत्यादि।
मंगल से होने वाले रोग
विष संबंधी रोग, जलन होना, रक्त का अभाव होना, व्रण, खुजली, रक्त सम्बन्धी रोग, गर्दन एवं कण्ठ से सम्बन्धित रोग, रक्तचाप, ट्यूमर, कैंसर, पाइल्स, अल्सर, दस्त, दुर्घटना में रक्तस्राव, कटना, फोड़े-फुन्सी, ज्वर, अग्निदाह, चोट इत्यादि।
बुध से होने वाले रोग
त्वचा से संबंधित रोग, मानसिक असंतुलन, स्मरण शक्ति क्षीण होना, त्रिदोष, संक्रमित रोग, दाद, नाक से संबंधित रोग, खाज-खुजली, मूच्र्छा, चेचक, वाणी दोष, कण्ठ रोग, स्नायु रोग, इत्यादि।
गुरु ग्रह से होने वाले रोग
लीवर, किडनी, कर्ण सम्बन्धी रोग, मधुमेह, पीलिया, याददाश्त में कमी, स्थूलता, टाईफाइड, पेट का फोड़ा, हार्निया, छूआछूत संबंधित रोग, चर्बी बढ़ना इत्यादि।
शुक्र से होने वाले रोग
जननेन्द्रिय सम्बन्धित रोग, मूत्र सम्बन्धित एवं गुप्त रोग, नपुंसकता, मादक द्रव्यों के सेवन से उत्पन्न रोग, मूत्र रोग, सूजन होना, पथरी, प्रमेह, वीर्य की कमी होना, कामान्ध होना, स्वप्न दोष इत्यादि।
शनि ग्रह से होने वाले रोग
असाध्य रोग, कुष्ठ रोग, शारीरिक कमजोरी, दर्द, घुटनों या पैरों में होने वाला दर्द, दांतों अथवा त्वचा सम्बन्धित रोग, अस्थिभ्रंश, मांसपेशियों से सम्बन्धित रोग, लकवा, खांसी, दमा, मानसिक थकान, पोलियो, कैंसर, स्नायुविकार इत्यादि।
नोट - शनि यदि रोग का कारक बनता हो, तो इतनी आसानी से मुक्ति नहीं मिलती है, क्योंकि शनि किसी भी रोग से जातक को लम्बे समय तक पीड़ित रखता है और राहु जब किसी रोग का जनक होता है, तो बहुत समय तक उस रोग की जांच नहीं हो पाती है। डॉक्टर यह समझ ही नहीं पाता है कि जातक को बीमारी क्या है और ऐसे में रोग अपेक्षाकृत अधिक अवधि तक रहती है।
राहु से होने वाले रोग
घबराहट, कोढ़, मानसिक उत्तेजना, जहर देना, पेट में कीडे़ होना, चेचक, ऊंचाई से गिरना, पागलपन, तेज दर्द, किसी प्रकार कारियेक्शन, पशुओं या जानवरों से शारीरिक कष्ट, असाध्य रोग इत्यादि।
केतु से होने वाले रोग
चेचक, जलोदर, विष रोग, सफेद कोढ़, चर्म रोग, श्रमशक्ति की कमी, सुस्ती, अकर्मण्यता, शरीर में चोट, घाव, एलर्जी, आकस्मिक रोग या परेशानी, कुत्ते का काटना इत्यादि।