जन्म कुंडली से जाने, (मिसकैरेज) यानी गर्भपात की समस्या के बारे में
By: Future Point | 14-Sep-2022
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ज्योतिष विज्ञान आपके जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान तथा आपके अंदर उत्पन्न प्रश्नो का निराकरण करता आया है और करता रहेगा।
वैदिक ज्योतिषशास्त्र में रोग और उसके प्रभाव का अध्ययन मूल रूप से किया जाता है कि मनुष्य को कब और किस प्रकार की बीमारी से जूझना पड़ सकता है तथा कब उसे मुक्ति मिलेगी अथवा मिल पाएगी या नहीं, रोगों की प्रकृति जातक की अवस्थाएँ जैसे – बाल अवस्था युवा अवस्था, या वृद्ध अवस्था में उसकी गंभीरता आदि ज्योतिषशास्त्र से संबन्धित प्रिय प्रश्न बने रहते हैं।
इसलिए यदि कोई व्यक्ति जीवन के किसी भी पड़ाव में किसी रोग से ग्रसित हो जाए जहां पर कोई भी उपचार व्यर्थ ही सिद्ध हो रहा हो तो ऐसे में उसे भटकने के बजाय अपनी जन्मकुंडली के ग्रह दशाओं तथा योगों का अध्ययन कर उससे मार्ग निर्देशन जरूर प्राप्त करना चाहिए। ज्योतिषशास्त्र की सूक्ष्मता मनुष्यों में भी दो वर्ग जो नर और नारी के श्रेणीकरण पर आधारित है।
यानि स्त्री रोगों के लिए अलग से काफी काम हुआ है तथा इससे किसी स्त्री विशेष को किस तरह से कोई रोग पीड़ित करेगा इस पर प्रकाश डाला जा सकता है।
पंचम भाव संतान का है यही वह स्थान है जहाँ से हम गर्भ से सम्बंधित विचार करते हैं, इसी कारण इस भाव का अधिक ही महत्त्व है। इस भाव का कारक ग्रह गुरु है तथा संतान का कारक भी गुरु ग्रह है।
अतः यदि पंचम भाव तथा उस भाव का स्वामी तथा इस भाव एवं संतान का कारक ग्रह गुरु अशुभ स्थिति में हो तथा पांचवें भाव पर पाप ग्रहों की स्थिति व दृष्टि हो तो गर्वपात होने की समस्या अधिक होती है।
हिस्टिरिया (मिर्गी), बेहोशी में पड़ जाना, शारीरिक अशक्तता, स्त्री को ही होने वाले रोग ल्यूकोरिया ( स्त्री गुप्त रोग ) आदि ज्यादातर ग्रहीय समस्याओं की उपज हैं।
अनुभव में यही देखने को मिलता है कि स्त्रियों के ज्यादातर रोग, चंद्रमा के पीड़ित होने से होते हैं, साथ ही लग्न, लग्नेश और लग्न के कारक भी पीड़ित होते हैं, तथा चंद्रमा पर क्रूर व पाप ग्रहों की दृष्टि भी होती है। मंगल, शनि की युति-दृष्टि, छठे भाव की कमजोरी से जन्म लेते हैं।
ऐसे में स्त्री विशेष की जन्म कुंडली का गहन परीक्षण करने के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है, और इस समस्या का निदान किया जा सकता है।
स्त्रियां संवेदनशील अधिक होती हैं, जिसका मुख्य कारण चंद्रमा है जो कि स्त्री कारक ग्रह है। लेकिन जिस भी स्त्री का योग कारक चंद्रमा पाप प्रभाव और अशुभ दृष्टि से युक्त होता है, तथा बलहीन हो, षष्ठ, अष्टम, अथवा द्वादश भाव में मौज़ूद हो, तो ऐसे में उसकी संवेदनशीलता का स्तर भी नकारात्मक रूप से प्रभावित होने लग जाता है। यानि कमजोर या पीड़ित चंद्र की अवस्था मानसिक उन्माद पैदा करती है।
जन्मकुंडली के अनुसार यदि चंद्रमा क्रूर व पापी ग्रहों जैसे शनि, मंगल, राहु, केतु आदि से पीड़ित हो तो स्त्री को मासिक धर्म सम्बन्धी बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
ऐसे ग्रहीय संयोग मानसिक उत्ताप, चिंता, अवसाद, चिड़चिड़ापन, क्रोध आदि लक्षण को खुलकर सामने लाते हैं। यदि स्त्री की कुण्डली में शनि और मंगल का सम्बंध उपस्थित होने के साथ ही उन पर क्रूर व पापी ग्रहों की दृष्टि भी पड़ रही हो, तो अवश्य ही गंभीर रक्त विकार उत्पन्न होता है।
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किन ग्रहों के खराब प्रभाव से होता है संतान की उत्पति में विघ्न -
जन्मकुंडली के पंचम पर पाप ग्रहों की स्थिति या पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसी परिस्थितियों में संतान उत्पति में विघ्न हो सकता है। उदाहरण के तौर पर यदि पंचम स्थान पर अशुभ मंगल की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसे में संतान को हानि पहुंच सकती है।
यहां तक बच्चे के लिये प्राणघातक योग भी बन जाता है अन्यथा बाधा तो पहुंचती ही है। संतान उत्पति का कारक घर पंचम है यदि इस पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ती है तो इससे नकारात्मक योग बनता है। इससे संतान होने में बाधा होती है।
गर्भपात होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं| कभी कभी संतान मृत पैदा होती है या फिर पैदा होने के कुछ समय बाद उसकी मौत हो जाती है तो जिसका कारण ज्योतिषशास्त्र में यही पाप ग्रह होते हैं।
स्त्री की जन्मकुण्डली में सबसे महत्वपूर्ण बात यही है, यदि पंचम भाव पर पाप व क्रूर ग्रहों की दृष्टि या युति हो या पंचम भाव सूर्य, शनि, राहु, केतु अथवा मंगल का प्रभाव मौज़ूद हो तो ऐसी स्थिति में उस स्त्री को गर्भ धारण में समस्या उत्पन्न होती है किंतु इससे भी बड़ी बाधा तब उत्पन्न होती है जबकि गर्भ धारण के बाद गर्भपात का भय बन जाय ऐसा तब होता है जब सूर्य की युति एवं शनि, राहु, केतु की पांचवें भाव पर दृष्टि हो तो । यदि आपके जन्मकुंडली मे ऐसा योग है या आप इस परिस्थिति से गुजर रहे हों तो आप फ्यूचर पॉइंट में अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाकर आप संतान उत्पत्ति से संबन्धित परेशानियों से बच सकते हैं।
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जन्मकुंडली में पांचवें भाव का स्वामी और कारक ग्रह कमजोर हो तथा ग्यारहवें भाव में मंगल स्थित हो तो ऐसी स्थिति में गर्भपात होने की समस्या बनी रहती है।
जन्मकुंडली के पांचवें भाव में शनि राहु या सूर्य राहु की युति बन रही हो तो भी गर्भपात होने की संभावनाएं अधिक होती हैं।
कुंडली के ग्यारहवें भाव में सूर्य राहु या सूर्य मंगल की युति हो तो गर्भपात होने का डर निरंतर बना रहता है।
जन्मकुंडली के पांचवें भाव में शनि राहु की युति संतान होने में बाधा करने वाली होती है।
कुंडली के पांचवें भाव में राहु, ग्यारहवें भाव में सूर्य और दूसरे भाव में मंगल हो तो गर्भपात होने की समस्या बनी रहती है।
बृहस्पति ग्रह का नीच, अस्त व कमजोर स्थिति में होना संतान बाधा का कारण बनता है।
जब पांचवें भाव में सूर्य शनि की युति हो तथा राहु व केतु की पांचवें भाव पर दृष्टि हो तो ऐसी स्थिति में गर्भपात की समस्या रहती है।
पांचवें भाव का स्वामी और पांचवें भाव का कारक ग्रह कमजोर होने पर संतान बाधा होती है।
राहु मंगल की पांचवें भाव पर दृष्टि हो, ऐसी स्थिति में गर्भपात का डर निरंतर बना रहता है।
कुंडली का पांचवां भाव पापक्रान्त हो और पांचवें भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तथा पाप युत भी हो तो गर्भपात की समस्याएं अधिक रहती हैं।
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