ह्रदय रोग के लिए कुंडली के ये योग होते हैं जिम्मेदार, इन उपायों से करें बचाव ।
By: Future Point | 20-May-2019
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आज पूरे संसार में लाखों लोग ह्रदय रोग से पीड़ित हैं और लगभग इतने ही लोग प्रति वर्ष ह्रदय रोग की वजह से म्रत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, इसकी सबसे बड़ी वजह है वातावरण में प्रदूषण, अनियमित जीवन शैली और अशुद्ध खान पान ह्रदय रोग के प्रमुख कारण हैं, परन्तु नियमित जीवन शैली जीने वाले और शुद्ध व शाकाहारी भोजन करने वाले और नियमित रूप से व्यायाम करने वाले अनेक व्यक्ति भी ह्रदय रोग से पीड़ित हो जाते हैं, ऐसे में इसका एक मात्र कारण है व्यक्ति की कुंडली में ह्रदय रोग से सम्बंधित घातक योगों का विद्धमान होना है।
कुंडली में बनने वाले कौन से योग डालते हैं ह्रदय पर दुष्प्रभाव –
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में चौथा भाव ह्रदय का स्थान कहलाता है, मंगल एवं बृहस्पति ह्रदय की गति विधियों और रुकावटों को विशेष रूप से प्रभावित करते हैं।
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में आत्म कारक ग्रह सूर्य, मन का कारक चंद्रमा, मंगल, बृहस्पति और चतुर्थ भाव ह्रदय रोग के प्रमुख कारक तत्व होते हैं।
- यदि जातक की कुंडली के चतुर्थ भाव में राहु केतु की दृष्टि हो तो ऐसे जातकों को जीवन पर्यन्त ह्रदय रोग से सावधान रहना चाहिए।
- यदि जातक की कुंडली के चतुर्थ भाव में सूर्य व चंद्र नीच के मंगल से होकर बैठे हों तो ऐसे जातकों को ह्रदय रोग की प्रबल संभावनाएं बनी रहती हैं।
- यदि जातक की कुंडली के चतुर्थ भाव में गुरु, मंगल व शनि की युति हो तो ऐसे जातकों में आम तौर पर ह्रदय रोग के लक्षण पाये जाते हैं।
- यदि जातक की कुंडली के चतुर्थ भाव में राहु हो अथवा उस पर सूर्य या चन्द्र की दृष्टि हो और अगर लग्नेश निर्बल हो तो जातक ह्रदय रोग से अवश्य पीड़ित होता है।
- जिस जातक की कुंडली में सिंह राशि पीड़ित होती है अथवा उस पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है तो जातक को हृदय रोग घेर सकते हैं और इसके साथ ही कुंडली के चतुर्थ और पंचम भाव के पीड़ित होने अथवा उन पर नैसर्गिक पाप ग्रहों अथवा त्रिक भाव के स्वामी ग्रह का प्रभाव होने पर भी हृदय से जुड़ी परेशानियां आ सकती हैं।
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य को हृदय का कारक माना जाता है यदि आपकी जन्म कुंडली में सूर्य का संबंध मंगल, शनि अथवा राहु-केतु के अक्ष में होने पर जातक को हृदय संबंधी विकार होते हैं। सूर्य अगर किसी नीच राशि में स्थित हो तो भी हृदय रोग हो सकते हैं। अगर सूर्य आपकी कुंडली में षष्ठम, अष्टम और द्वादश भावों के स्वामियों से संबंध बना रहा है तो हृदय विकार होने की पूरी संभावना रहती है। इसके अलावा सूर्य के पाप कर्तरी योग में होने पर भी हृदय से जुड़े रोग होते हैं। पाप कर्तरी योग कुंडली में तब बनता है जब किसी भाव के दोनों ओर पाप ग्रह स्थित हों।
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ह्रदय रोग से बचाव के लिए ज्योतिष शास्त्र अनुसार कुछ उपाय -
- सूर्योदय के समय प्रति रविवार के दिन एक सौ आठ बार गायत्री मंत्र का जाप करना हृदय रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है। ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुवरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।
सोमवार के दिन रात्रि के समय आराम दायक स्थिति में बैठकर चंद्र के इस मन्त्र का जाप एक सौ आठ बार करना चाहिए ऊं सोम सोमाय नमःऐसा करने से ह्रदय रोग में लाभ मिलता है।
मंगलवार के दिन सुबह पूजा के समय मंगल के इस मंत्र का जाप एक सौ आठ बार करना चाहिए, ऊं अं अंगारकार नमः ।।
ह्रदय रोग से पीड़ित व्यक्ति को पन्ना, सफेद मोती और पीला पुखराज धारण करना चाहिए।
हृदय को स्वस्थ रखने के लिए आपकी कुंडली में सूर्य का अनुकूल अवस्था में होना बहुत ही आवश्यक है यदि आपकी कुंडली में सूर्य की स्थिति अनुकूल नहीं है तो आपको प्रति दिन तांबे के पात्र में जल भरकर सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए और इसके अलावा आदित्य हृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए।
हृदय रोगों से मुक्ति पाने के लिए सूर्य देव के बीज मंत्र का नियमित पाठ करना भी बहुत ही लाभकारी होता है अतः सूर्य के इस बीज मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः ।
अपने ह्रदय के स्वस्थियक लाभ के लिए श्वेतार्क वृक्ष को अवश्य लगाएँ और उसको प्रति दिन जल से सिंचित करें इससे आपको निश्चित रूप से लाभ मिलेगा, क्यों कि यह वृक्ष हृदय रोगों को दूर करता है।