होली धुलेंडी पर्व 2024: गुलाल बनाने की विधि और महत्व
By: Acharya Rekha Kalpdev | 23-Feb-2024
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होली धुलेंडी पर्व 2024: होलिका दहन के दूसरे दिन होली रंग उत्सव बनाया जाता है। जिसे धुलेंडी के नाम से भी जाना जाता है। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेता युग जब शुरू हुआ तो भगवान् विष्णु जी ने धूली वंदन किया था। तभी इस दिन धुलेंडी नाम से रंग उत्सव मनाया जाता है। यहाँ धूली वंदन से अभिप्राय सूर्यास्त के समय गौ धुली के समय एक दूसरे के माथे पर धुल अर्थात मिटटी का तिलक करने से है। त्रेता काल में भगवान् विष्णु जी ने इसकी शुरुआत की थी। समय के साथ यह शब्द धूली से धुलेंडी में बदल गया।
धुलेंडी का एक अन्य शाब्दिक अर्थ एक दूसरे को गुलाल लगाने से है। इस पर्व को रंगोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। होली रंग के पर्व को भारत के अलग अलग स्थानों में अलग अलग नामों से जाना जाता है, उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ क्षेत्रों में होली रंगोत्सव को फागु के नाम से सम्बोधित किया जाता है। पश्चिम बंगाल में दोली जात्रा के नाम से मनाया जाता है। वृन्दावन की फूलों की होली - यह होली एकादशी से शुरू हो जाती है। बरसाने और वृन्दावन में लट्ठमार होली खेली जाती है। इसके अलावा यहाँ बांके बिहारी मंदिर में लड्डू की होली खेली जाती है। यहाँ होली फूल, लड्डू, लट्ठमार के बाद अबीर गुलाल की होली खेली जाती है। अन्य स्थानों पर होली को रंगोत्सव, धुलेंडी और होली के नाम से बुलाया जाता है। होली का पर्व एक ऐसा पर्व है जब लोग अपने आपसी रंजिशों को भुलाकर मित्र भाव से गले लगते है। और एक दूसरे को गुलाल लगाते है।
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होली के पर्व कि विशेषता | Specialty of Holi Festival
भाग-दौड़ और तनाव की जिदंगी को भूलकर इस लोग आनंद और प्रसन्नता के साथ हर्षोउल्लास के साथ होली पर रंग खेलते है। होली के रंग खेलने से शरीर में एक नई ऊर्जा आती है, तनाव दूर भागते है, और व्यक्ति कम से कम एक दिन के लिए दुनिया के दुखों को भूलकर खुश हो जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार होली का रंगोत्सव फाल्गुन मास कि पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। होली को रंगों का पर्व, रंग वाली होली भी कहते है। पारम्परिक रूप से होली का पर्व दो दिन का पर्व है। पहला दिन होलिका दहन का दिन और दूसरा दिन होलिका रंगोत्सव का दिन। होली रंगोत्सव के दिन लोग एक दूसरे पर रंग और गुलाल फेंकते है। अपनी आयु से बड़े लोगों के चरण में गुलाल लगाकर चरण स्पर्श किये जाते है। होली के दिन लोग ढोल नगाड़े बजाकर, गीत गाकर, नाचते गाते है। लोग एक दूसरे को घर घर जाकर रंग लगाते है, और रंग उत्सव की एक दूसरे को बधाइयां देते है। इस दिन हर प्रकार की कटुता, वैमनस्य को भूलकर गले मिलते है। होली के दिनभर रंग खेलते है, नाचते गाते है। और उसके बाद सब मिलकर पकवान खाते है। सांयकाल में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनकर सायंकाल में अपने इष्ट की आरती कर, संध्या पूजन करते है।
धुलेंडी पर्व का महत्व | Importance of Dhulendi Festival
धुलेंडी के विषय में एक पौराणिक कथा प्रचलित है, कि भगवान् शिव ने अपनी तपस्या भंग करने पर कामदेव को अपनी तीसरी आँख से भस्म कर दिया था। देवी रति के विनती करने पर भगवान् शिव ने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया। इसी उपलक्ष्य में धुलेंडी पर्व मनाया जाता है। धुलेंडी का पर्व विशेष रूप से धार्मिक, आद्यात्मिक और सामाजिक महत्त्व रखता है। यह पर्व उस समय आता है जब, सर्दी का मौसम जा रहा होता है और गर्मियों का आगमन हो रहा होता है। प्रकृति मौसम में बदलाव कर अपना परिधान बदल रही होती है। इस दिन हर उम्र, हर वर्ग का व्यक्ति रंगों में डूबा रहता है, सर्दियों में शारीरिक ऊर्जा सिमटी रहती है, उत्साह और उमंग होली के रंग का लिबास पहनकर आते है, और लोग रंगों में खो जाते है।
होली रंगों का त्यौहार है। होली के पर्व से यदि रंगों को हटा दें, तो होली बेरंग और फीकी लगेगी। वैदिक काल में प्रकृति से प्राप्त वस्तुओं से ही होली खेली जाती थी। समय बदला और रंगों की प्रकृति भी बदली। आज प्राकृतिक रंग बाजार में मिलते नहीं है। इसलिए हर व्यक्ति होली खेलते समय रंगों के नुकसान से डरा सहमा होता है। होली के रंगों के रूप में सभी को प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करना चाहिए। प्राकृतिक वस्तुओं से बने रंग त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचाते है। इससे किसी प्रकार का त्वचा विकार नहीं होता है। इसलिए आज हम आपको घर में ही होली के प्राकृतिक रंग बनाने की विधि बताने जा रहे है। इन रंगों को घर में ही बना करा, होली को और अधिक सुखद बना सकती है-
गुलाल बनाने की विधि | Gulal Banane Ki Vidhi
- होली के दिन रंगों में सबसे अधिक गुलाल ही प्रयोग में आता है। गुलाल को आप चन्दन को घिस कर बना सकते है, या फिर आप गाजर के गुद्दे और चुकंदर के गुद्दे से बना सकते है। गाजर का जूस निकाल लें, जूस को पी ले और बचे गुद्दे को सुखाकर पीस कर पाउडर बना लें। इस प्रकार आपके पास दो रंग के गुलाल तैयार हो जाएंगे, दोनों को मिला देंगे तो एक गुलाबी रंग का पाउडर भी मिल जाएगा।
- लाल गुलाल बनाने के लिए लाल चन्दन को घिस कर गुलाल के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इसके अलावा लाल रंग के लिए गुलाब के फूल की पत्तियों को धूप में सूखा दें, सूखने से पहले पत्तियों पर एक बारीक़ कपड़ा ऊपर से डाल दें, इससे पत्तियों का रंग उड़ेगा नहीं। पत्त्तियाँ सूखने पर इन्हें पीस कर पाउडर बना लें। इस पाउडर को एक बॉक्स में रख लें। और होली के दिन गुलाल के रूप में प्रयोग करें।
- अनारा के छिलकों को उबलते पानी में डाल कर उबाल लें। जब दस पंद्रह मिनट यह खूब उबाल जाए तो पानी को छान लें। छानकर इस पानी को बोतल में भर लें। यह होली खेलने के लिए लाल रंग तैयार हो गया।
- इसी प्रकार पानी में हल्दी डालकर पीला रंग बनाया जा सकता है।
बेसन को पाने में गाड़ा घोलकर पीला रंग गुलाल के रूप में बनाया जा सकता है।
- बेसन में पानी कि मात्रा बढाकर गीला रंग बनाया जा सकता है।
मुल्तानी मिटटी को भिगोकर गुलाल और रंग के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
- गेंदे के फूल की पत्तियों को सुखाकर, पीस कर, गुलाल बनाया जा सकता है।
- नारंगी रंग बनाने के लिए टेसू के फूल जिसे हम सब पलास के फूल के नाम से जानते है, से बनाया जा सकता है।
- ऐसी मान्यता है कि भगवान् श्रीकृष्ण गोपियों के साथ टेसू के फूलों से बने रंग से ही होली खेलते थे।
- टेसू के फूलों को एक बड़े बर्तन में रातभर के लिए भिगो दें। उसके बाद इस पानी को उबाल लें। उबाल कर छान लें, इससे टेसू का रंग तैयार हो जाएगा। टेसू से गुलाल बनाने के लिए टेसू के फूलों को धूप में सुखाकर, पाउडर बना लें।
- इस प्रकार फूलों से पाउडर और रंग दोनों तैयार किया जा सकता है।
- प्रकृति में जितने तरह के फूल उपलब्ध है, आप सभी फूलों की पत्तियां सुखाकर गुलाल और रंग तैयार कर सकते है।
- ध्यान रखें की यह तैयारी आपको होली खेलने से कुछ दिन पहले करनी होगी। एक सप्ताह पहले आप इन रंगों और गुलाल को तैयार कर रख लें। और होली के दिन इनका खूब प्रयोग करें।
- सब्जियों और फलों को भी गुलाल बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
होली के उपाय | Holi Ke Upay
- एक लाल रंग के कपडे में होलिका दहन की राख को लेकर रखें, ११ गोमती चक्र रखें, स्फटिक श्रीयंत्र रखें और कुछ सिक्के भी रखे, फिर इन्हें बाँध कर अपनी तिजोरी में रख दें। सारे वर्ष धन वृद्धि का यह एक सरल उपाय है। इससे सारे साल धन का आगमन बना रहता है।
- जिस व्यक्ति से अपना धन वापस लेना हो, उस व्यक्ति का नाम, होलिका दहन के दिन, जलती होली के पास अनार की कलम से एक पेपर पर उस व्यक्ति का नाम लिख दें, जिससे आपको धन लेना है, नाम लिख कर उस पर हरे रंग का गुलाल भी छिड़क दें। इसके बाद इस पेपर को जलती होली में डाल दें। ऐसा करते हुए, होलिका देवी से अपना धन वापस पाने की विनती करें। डूबे धन को वापस पाने का यह एक सरल उपाय है।
- होलिका दहन के दिन एक पीले रंग का कपड़ा लें, उसमें ११ गोमती चक्र रखें, १ चांदी का सिक्का रख कर पोटली बांधें, इसे लेकर जलती होली की ११ बार परिक्रमा करें। ११ बार परिक्रमा करते हुए, लक्ष्मी मंत्र "ऊँ महालक्ष्म्यै नम:" का एक माला जाप करें। और देवी होलिका से व्यापार वृद्धि की विनती करें।
- होलिका दहन की विभूति को अगले दिन घर लाये, और परिवार के सभी लोग इस विभूति से माथे पर तिलक करें। इससे स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। और बुरी नजर भी दूर होती है। रोगों को दूर रखने का यह एक आसान उपाय है।
- घर के बच्चों से हाथ लगावाकर होलिका दहन में पान, सुपारी और जट्टा वाला नारियल अर्पित करें।
- रंग वाली होली के दिन, सुबह जल्दी उठकर स्नानदि से मुक्त होकर, सबसे पहले अपने इष्ट देव को गुलाल लगाए।
- अपने इष्ट को गुलाल चरण स्पर्श कर चरणों में लगाए, उसके बाद देव को माथे पर गुलाल का टीका लगाएं। इससे आपका दिन शुभ रहेगा।
- आपका पूजा घर ईशान कोण में होना चाहिए। ईशान कोण में पूजा घर होना वास्तु के अनुसार शुभ रहता है। इससे घर में सुख समृद्धि बनी रहती है।
- होलिका दहन के दिन आठ सुपारी लेकर अपने सिर से एंटीक्लॉक वाइज सात बार उतारकर जलती अग्नि में स्वाहा करें। आठ बार होलिका दहन की परिक्रमा करें और अपनी कामना पूर्ति के लिए देवी होलिका से प्रार्थना करें।
भारत में होली के प्रकार | Types of Holi in India
होली भारत के सभी राज्यों में अलग अलग नामों से खेली ही जाती है। बस स्थान बदलने पर होली का नाम अवश्य बदल जाता है। कुछ नामों का वर्णन हम आलेख में पूर्व में ही कर चुके है। बिहार और उत्तर प्रदेश में होली को फगुआ के नाम से जाना जाता है। कुछ स्थानों में इसे फाग भी कहते है। भारत के छतीसगढ़ राज्य में होली को होरी कहा जाता है। गोआ में शिमगो, शिमगा कहा जाता है। तमिलनाडु में कामाविलास व् कामा दाहानाम से सम्बोधित किया जाता है। वहीँ हरियाणा में होली को दुलैण्डी तथा घुलेंड़ी कहा जाता है। कर्नाटका में कामना हब्बा होली का एक नाम है। पंजाब में होली को होला मुहल्ला कहा जाता है। असम में होली का नाम फगुआ है। यहाँ यह दो दिन लगातार मनाया जाता है। मणिपुर में होली छ: दिन तक खेली जाती है। यहाँ होली को योसॉन्ग कहा जाता है। महाराष्ट्र में होली को रंग पंचमी, और फाल्गुन पूर्णिमा कहा जाता है।
- पश्चिमी बंगाल में होली के दो नाम है एक डोल जात्रा और दूसरा बसंत उत्सव।
- उत्तराखंड में होली का नाम खड़ी होली और बैठकी के नाम से पुकारा जाता है।
- जयपुर में जाकर होली का नाम शाही होली हो जाता है।
- केरल में होली को मंजुल कुली कहा जाता है।
- बरसाने की लट्ठमार होली देश और विश्व में प्रसिद्द है। यह होली यहाँ लगातार दो दिन तक खेली जाती है। इस होली को बरसाने की महिलाये और नंदगांव के पुरुष खेलते है। लठ्ठमार होली में महिलाएं पुरुषों को लाठी से मारती है। और पुरुष ढाल से अपने को बचाते है। लट्ठमार होली की शुरुआत, भगवान् श्रीकृष्ण, राधा और गोपियों में होइ थी।
- वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर और राजस्थान के पुष्कर में फूलों को एक दूसरे पर फ़ेंक कर फूलों कि होली खेली जाती है। राधा जी और कृष्ण जी के मध्य पहली बार यह होली खेली गई थी।
- लट्ठमार होली की तरह, ब्रिज की होली भी विश्व प्रसिद्ध है। ब्रिज की होली लगातार चालीस दिन तक खेली जाती है। यहाँ की होली सबसे अधिक दिनों तक खेली जाने वाली होली है। अन्य वस्तुओं के साथ साथ यहाँ गोबर और कीचड़से भी होली खेली जाती है।
- श्रीलाडली जू के मंदिर (बरसाने में) लड्डू से होली खेली जाती है। लट्ठमार होली से पहले बरसाने में लड्डुओं से होली खेली जाती है। इस होली को खेलने भी लोग बहुत दूर-दूर से आते है।
- उदयपुर के बलीचा गाँव में अंगारों से होली खेली जाती है। इस होली में रंग की जगह जलते रंगों का प्रयोग किया जाता है।
- राजस्थान के बाड़मेर और जैसलमेर जिलों में छोटे छोटे पत्थर मारकर होली खेली जाती है। पत्थर मार होली में बहुत छोटे छोटे पत्थर प्रयोग किये जाते है।
- राजस्थान के ही डूंगरपुर जिले में गाय के उपलों की राख को एक दूसरे पर फ़ेंक कर होली खेली जाती है।