नवम नवरात्रि की देवी - देवी सिद्धिदात्री पूजन विधि, मन्त्र, प्रार्थना, भोग
By: Acharya Rekha Kalpdev | 03-Apr-2024
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प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
नवरात्रि के नौ दिनों में देवी शक्ति के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्र के नवें दिन देवी सिद्धिदात्री का दर्शन पूजन किया जाता है। नवरात्र के नौ दिन निम्न नौ दिनों की पूजा की जाती है-
नवरात्रि दिवस - देवी नाम
- प्रथम - शैलपुत्री
- द्वितीय - ब्रह्मचारिणी
- तृतीय - चन्द्रघंटा
- चतुर्थ - कूष्माण्डा
- पंचम - स्कंदमाता
- षष्ठ - कात्यायनी
- सप्तम - कालरात्रि
- अष्टम - महागौरी
- नवम - सिद्धिदात्री
देवी नवरात्र में देवी शक्ति के नौ रूपों का अलग अलग शक्ति के रूप में पूजन किया जाता है। माता भगवती के नौ रूपों को समर्पित नवरात्र भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाले होते है। नवरात्र के नवें दिन देवी सिद्धिदात्री के पूजन के लिए समर्पित है। देवी सिद्धिदात्री अपने नाम के अनुसार फल देती है। जो भक्त देवी सिद्धिदात्री का नवरात्रि के नवें दिन दर्शन पूजन करता है, उसके सभी काम सिद्ध होते है। माता के आशीर्वाद और शुभता से साधक के सभी काम पूर्ण होते हैं। देवी सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सिद्धि देती है, सब काम सिद्ध होते है, विचारित काम सिद्ध होते है। मन में भाव आते ही बिना प्रयास के ही कार्य सिद्ध हो जाना ही, देवी सिद्धिदात्री का आशीर्वाद है। वाकसिद्धि हो जाना है, देवी सिद्धिदात्री की कृपा है। देवी सिद्धिदात्री अपने साधक की सभी कामनाओं को पूर्ण करती है।
माँ सिद्धिदात्री का पूजा मन्त्र कौन सा है?
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्र्यै नम:
नवम नवरात्रि में कौन से रंग के वस्त्र पहने?
नवम नवरात्रि में गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए।
नवम नवरात्रि में कन्या पूजन और देवी सिद्धिदात्री का दर्शन पूजन किया जाता है। देवी सिद्धिदात्री की आराधना और साधना करने से नवरात्र पर्व सम्पूर्ण होता है। नौ देवियों में देवी सिद्धिदात्री नवम देवी है। देवी सिद्धिदात्री के पूजन के साथ ही नवरात्र सम्पन्न होते है। चैत्र नवरात्री की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवम तिथि तक जो साधक अखंड जोत के साथ देवी के नौ रूपों कि पूजा अर्चना करता है, उसके सारे काम सफल होते है। देवी कृपा प्राप्ति के लिए नौ देवियों के लिए व्रत, उपवास, भोग, आराधना और उपासना करने का विधि विधान है। नवरात्र के नौ दिनों में देवी कवच का पाठ और दुर्गा सप्तसती का पाठ नित्य करने से साधक को विशेष फलों कि प्राप्ति होती है।
देवी सिद्धिदात्री का स्वरुप कैसा है?
देवी सिद्धिदात्री चार भुजाधारी है। देवी के दाएं हाथों में गदा, चक्र है बाएं हाथों में कमल का फूल और शंख धारण किया हुआ है। नवरात्र नवदेवियों की आराधना के दिन है। सम्पूर्ण नवरात्र में नौ देवियों का दर्शन पूजन करने वाले साधक का कोई कार्य अधूरा नहीं रहता है। देवी आराधना से न केवल यह जन्म सुधरता है, बल्कि नौ देवी पूजन का पुण्य कई जन्मों के लिए प्राप्त होता है। नवरात्र कि नौ देवियां जन्म जन्म के पापों का क्षय करती है और अक्षय पुण्य प्रदान करती है।
नवरात्र के नौ दिनों में प्रतिदिन देवी पूजन के समय में हवन यज्ञ करना अतिशुभ रहता है। फिर भी जो साधक प्रतिदिन ऐसा न कर पाए उन्हें नवरात्रि के नवम दिन राम नवमी के दिन नौ देवियों को भोग लगाते हुए हवन अवश्य करना चाहिए। साथ में इस दिन राम जी की जयंती होने के कारण राम जी का भी स्मरण करते हुए, राम जी को भी भोग लगाना चाहिए। हवन यज्ञ करने के साथ साथ नौ कन्याओं का भोजन करते हुए, उन्हें हलवा, पूरी का भोग लगकर, सुन्दर सुन्दर उपहार उन्हें दान करने चाहिए। कन्या पूजन में नौ कन्याओं के साथ साथ एक बालक की भी पूजा कि जाती है। जो भैरव जी के प्रतीक होते है।
धर्म शास्त्रों में देवी सिद्धिदात्री के पूजन का उल्लेख मिलता है। त्रेता युग में भगवान् राम जी देवी सिद्धिदात्री का पूजन किया था, उसके बाद ही भगवान् राम ने सीता को लंका से वापस लाने के लिए लंका पर चढ़ाई की थी। नौ दिन देवी आराधना करने के बाद नौ देवियों का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद भगवान् राम ने दसवें दिन रावण को मरने के लिए लंका पर चढ़ाई की थी। ऐसा माना जाता है कि भगवान् शिव जी को अर्द्धनारीश्वर स्वरुप देवी कृपा से ही प्राप्त हुआ था। नौ देवियों में भी देवी सिद्धिदात्री के स्वरुप का दर्शन पूजन भगवान् शिव ने किया था। देव, दानव, किन्नर, यज्ञ आदि को भी सिद्धियां देवी सिद्धिदात्री की कृपा से ही प्राप्त होती है।
मार्कंड़य पुराण के अनुसार अष्टसिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी सिद्धिदात्री है। अष्टसिद्धियों की दाता होने के कारण हिन् इनका नाम देवी सिद्धिदात्री पड़ा। अष्टसिद्धियाँ - अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशत्व और वशित्व है ये सभी सिद्धियां अष्टसिद्धियाँ कहलाती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी सिद्धियों का वर्णन मिलता है, जो इन अष्ट सिद्धियों से अलग है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित सिद्धियां दस है- जो इस प्रकार है
सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, परकायप्रवेशन, वाक् सिद्धि , कल्पवृक्षतत्व, सृष्टि, संहारकरणसामर्थ्य , अमरत्व, सर्वन्यायकत्व। अष्टसिद्धि और दससिद्धि सभी को मिलाकर कुल अष्टदश (18) सिद्धियां पुराणों में बताई गई है। देवी सिद्धिदात्री इन सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी है।
देवी सिद्धिदात्री क्योंकि सभी कामनाओं को बिना कहे पूर्ण करने वाली देवी है। सिद्धिदात्री देवी की कृपा पाने के बाद ऐसी कोई कामना नहीं है जो अधूरी रह जाएँ। संसार की सभी कामनाओं, इच्छाओं और सिद्धियों को देने वाली देवी माता सिद्धिदात्री ही है। साधक देवी सिद्धिदात्री की आराधना करने के बाद किसी और वस्तु की आवश्यकता शेष नहीं रह जाती है।
नवरात्रि के नवम दिन देवी आराधना कैसे करें?
नवरात्र के नवम दिन देवी आराधना करने के लिए देवी पूजन से पहले स्नान कर शुद्ध हो लें और स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। अष्टम दिन की पूजा के फूल देवी की चौकी से हटा दें। पूजन चौकी से दीपक का तेल बदल दे, और बत्ती भी बदल दें। देवी का प्रिय रंग लाल है। देवी के लिए हवन यज्ञ करें। देवी को लाल रंग की चुनरी भेंट करें। साथ में ही लाल फूल, लाल सिन्दूर, लाल चूड़ियां और श्रृंगार भी देवी को अर्पित करें। देवी सिद्धिदात्री को धूप, दीप और फूल अर्पित करें। देवी को हलवा और पूरी का भोग लगाएं। देवी के सम्मुख कवच पथ, स्तोत्र, मन्त्र का जाप करें। प्रार्थना करें।
देवी सिद्धिदात्री उपासना मंत्र
मंत्र - ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥
प्रार्थना
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र
कंचनाभा शंख चक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
कवच
ओंकारपातु शीर्षो मां ऐं बीजं मां हृदयो।
हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं मां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै मां सर्व वदनो॥
माँ सिद्धिदात्री जी की आरती
जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता। तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि। तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम। जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है। तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो। तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥
तू सब काज उसके करती है पूरे। कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया। रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली। जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा। महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता। भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥