Gauri Teej 2024: कब है गौरी तीज व्रत? जानें तारीख, मुहूर्त, और पूजा विधि
By: Acharya Rekha Kalpdev | 01-Feb-2024
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गौरी तीज व्रत 2024: इस संसार में माता पार्वती जी और भगवान् शिव की जोड़ी सबसे उत्तम जोड़ी मानी जाती है। प्रत्येक दम्पति यह कामना करता है कि, उसका और उसके जीवन साथी का साथ आजीवन का रहें, जन्मजन्मांतर का रहे। इस कामना के साथ विवाहित और अविवाहित स्त्रियां इस दिन व्रत करती है, कि उसे एक अच्छा जीवन साथी मिले, जो विवाहित है, वो कामना करती है की दोनों का साथ बना रहे। इस विचार पर, कामना पर भगवान् शिव और पार्वती जी के आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए गौरी तीज, वरद चतुर्थी माघ माह व्रत का पालन किया जाता है।
2024 में गौरी तीज व्रत कब है? गौरी तीज व्रत 2024 की तारीख और समय
प्रत्येक चंद्र माह की तृतीय तिथि देवी गौरी को समर्पित है। किसी भी मास की तृतीय तिथि की शुभता पाने के लिए देवी गौरी का दर्शन, पूजन किया जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन व्रत कर माता गौरी का पूजन करना अतिशुभ माना गया है। इस दिन को गौरी तीज व्रत के नाम से जाना जाता हैं।
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गौरी तीज व्रत पूजा मुहूर्त 2024
इस वर्ष 2024 में यह व्रत 12 फरवरी, सोमवार, 2024 के दिन किया जाता है। गौरी तीज व्रत संध्या काल में प्रदोष काल तक रखा जाता है। सूर्यास्त काल 12 फरवरी, सोमवार, 2024, को 18:08 का है। और चंद्र दर्शन 08:46 सायंकाल का है। इस मध्य काल में पूजन, दर्शन कार्य व्रती को करने चाहिए। पूजन कार्य करने के लिए यह समय शुभ है।
माता गौरी को उनके गौरे रंग के कारण गौरी नाम से सम्बोधित किया जाता है। माता गौरी देवी पार्वती जी का ही एक रूप है। माता पार्वती भगवान् शिव की अर्धांगिनी है। भगवान् शिव और पार्वती जी की जोड़ी को अखंड जोड़ी कहा गया है। इसलिए प्रत्येक दम्पति की यह कामना रहती है की उसका वैवाहिक जीवन भगवान् शिव और देवी पार्वती जी के जैसा हो, अनंत जोड़ी रहे। अनेकोनेक जन्मों तक एक दूसरे का साथ बना रहे। प्रत्येक जीवनसाथी यही चाहता है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि को सौभाग्यवती स्त्रियां अपने अखंड सौभाग्य के लिए देवी गौरी से प्रार्थना करती है। इस व्रत को करने से स्त्रियों को सौभाग्य, धन, धान्य, वैभव, संतान और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। गौरी तीज व्रत माघ माह में आता है। हम सभी जानते है कि सभी माह में माघ माह का धार्मिक महत्त्व बहुत अधिक है। माघ माह आध्यात्मिक और धार्मिक पक्ष से अपना ख़ास महत्व रखता है।
2024 में गौरी तीज व्रत का महात्म्य
व्रत, मंत्र सिद्धि, दान, धर्म का माह इसे कहा जा सकता है। गौरी तीज, व्रत सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला व्रत है। यह व्रत सुखद जीवन और सुख समृद्धि प्राप्ति के लिए भी किया जाता है। एक अच्छे भविष्य की कामना, सफलता और उन्नति हेतु भी वरद चतुर्थी व्रत किया जाता है। इस व्रत का महत्त्व विवाहित स्त्रियों के द्वारा किये जाने वाले तीज व्रत के समान कहा गया है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को सौभाग्य और पारिवारिक कुशलता के लिए गौरी तृतीया का व्रत किया जाता है।
पुराणों के अनुसार हिमालय राज की पुत्री देवी सती ने भगवान् शिव को पति रूप में पाने के लिए इस व्रत का पालन किया था। देवी सती की साधना और तपस्या से भगवान् शिव प्रसन्न हुए और उनसे विवाह किया। इस व्रत को करने से स्त्रियों को धन धान्य, सुख वैभव, आज्ञाकारी पुत्र और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। लम्बी आयु और आरोग्य की प्राप्ति भी गौरी तीज व्रत को करने से प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन प्रत्येक स्त्री और पुरुष दोनों को नमक सेवन से बचना चाहिए, और यथासम्भव सामर्थ्यानुसार इस दिन नमक का दान करना चाहिए। इसके साथ ही इस दिन गुड़ का दान भी करना पुण्यकारी कहा गया है।
ऐसा माना जाता है कि इस तिथि के दिन जो भी दान किया जाता है, वह कई गुना होकर वापस प्राप्त होता है। माघ मास में तिल और गुड़ का दान करना पुण्यकारी माना गया है। शास्त्रों के अनुसार माघ मास कि तृतीय तिथि के व्रत का जो स्त्री पालन करती है, उसे इस संसार के सारे सुख प्राप्त होते है। यह व्रत न केवल सौभाग्य ही देता है बल्कि इस व्रत का पालन करने से जीवन कि बाधाओं से मुक्ति भी मिलती है। माता गौरी सभी कि कामनाओं को पूर्ण करती है। ऐसी मान्यता है कि जो स्त्री श्रद्धा और विश्वास के साथ, नियम सहित इस व्रत को करती है, उसकी जोड़ी भगवान् शिव और पार्वती कि जोड़ी के समान आनद और सुख से रहती है।
जिन कन्याओं का विवाह नहीं हुआ है, और वे विवाह योग्य है, उन्हें, उत्तम वैवाहिक जीवन कि कामना के लिए इस व्रत का पालन करना चाहिए। भगवान् भोलेनाथ कि कृपा और देवी गौरी कि कृपा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। शास्त्रों के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष कि तृतीया तिथि को भगवान् शिव और देवी सती का विवाह हुआ था। इस व्रत के माहात्म्य के विषय में यहाँ तक कहा गया है कि यदि कोई विधवा स्त्री भी इस व्रत का पालन करती है तो वह भी इस व्रत के प्रताप से दूसरे लोक में जाकर अपने पति के साथ सुख से रहती है।
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पुराणों के अनुसार किस-किस स्त्री ने इस व्रत का पालन किया?
देवराज इंद्र कि पति ने अपने पति कि लम्बी आयु और संतान सुख पाने के लिए इस व्रत का पालन किया था। व्रत के शुभ प्रभाव से देवी इंद्राणी को कुछ समय के पश्चात एक पुत्र संतान कि प्राप्ति हुई थी। जिसका नाम देवराज इंद्र और इंद्राणी ने जयंत रखा। शास्त्रों में यह भी वर्णिंत है कि इस व्रत का पालन देवी अरुंधति ने भी किया। देवी अरुंधति के द्वारा किये गए व्रत पालन से आज उनका प्रताप कलयुग में भी है। आज भी देवी अरुंधति अपने पति वशिष्ठ के साथ यश सहित है।
गौरी तीज का व्रत जिस भी देवी ने किया, उसे सुख और सौभाग्य कि प्राप्ति हुई है। इसका एक उदाहरण चंद्र देव कि 27 पत्नियों में से रोहिणी ने अपने पति का स्नेह पाने के लिए और शेष 26 पत्नियों से अधिक स्नेह पाने के लिए इस व्रत का पालन किया था। इसी व्रत कि शुभता से रोहिणी को चंद्र देव अन्य रानियों की तुलना में सबसे अधिक स्नेह करते थे।
गौरी तीज व्रत क्या है महत्व और पौराणिक कथा?
माता गौरी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए वरद तीज व्रत का पालन किया जाता है। प्रजापति दक्ष पुत्री देवी सती से भगवान् शिव से विवाह कि कामना से व्रत और साधना की थी। महाराज प्रजापति दक्ष कि पुत्री देवी सती जब विवाह योग्य हुई तो महाराजा प्रजापति ने अपनी पुत्री के विवाह कि सलाह लेने के लिए ब्रह्मा जी के पास गए, ब्रह्मा जी ने कन्या सती के लिए योग्य वर के रूप में भगवान् शिव का चयन किया। ब्रह्मा जी ने बताया कि कन्या सती के लिए इससे अच्छा कोई अन्य वर नहीं है। महाराजा प्रजापति को ब्रह्मा जी कि यह सलाह सही नहीं लगी। उन्हें अपनी पुत्री के लिए विष्णु जी पसंद थे, भगवान शिव के लिए उनकी सोच बहुत अच्छी नहीं थी। भगवान् शिव का रहन सहन और जीवनयापन प्रजापति भगवान् को पसंद नहीं थी। इसलिए वो भगवान् शिव को वे अपनी पुत्री के योग्य नहीं मानते थे।
अपनी पुत्री सती का विवाह आयोजन करने के लिए महाराजा प्रजापति दक्ष ने स्वयंवर का आयोजन किया और उसमें भगवान शिव को नहीं बुलाया। स्वयंवर कि सभा में अनेक राजा बैठे हुए थे, वहां भगवान् शिव नहीं थे। देवी सती ने राजाओं से भरी इस सभा में वरमाला किसी राजा के गले में न डालते हुए, सभा में रखी भगवान् शिव कि प्रतिमा के गले में डाल दी। स्वयं के प्रति इतना स्नेह देख कर, भगवान् शिव सभा में उपस्थित हुए और देवी सती से विवाह कर लिया। देवी सती ने भगवान् शिव से विवाह कि कामना से अनेक वर्षों तक इस व्रत का पालन किया था। जिसके फलस्वरूप भगवान् शिव उन्हें पति रूप में प्राप्त हुए, जो स्त्री यह व्रत करती है, उसे भगवान् शिव जैसा पति प्राप्त होता है।
गौरी तीज व्रत पूजा विधि
इस दिन व्रती को सुबह सूर्योदय से पहले उठना चाहिए। स्नानादि कार्य कर, लाल रंग के स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। सबसे पहले गणपति भगवान् का दीपक, दूब, पान, मोदक, रोली, मेवा और दक्षिणा से पूजन करना चाहिए। उसके बाद माता गौरी और भगवान् शिव कि एक साथ पूजा करनी चाहिए। दोनों को फूल माला पहनानी चाहिए। दोनों का धूप, दीप, फूल और नैवेद्य से पूजन करना चाहिए। माता को श्रृंगार कि वस्तुएं अर्पित करनी चाहिए। माता को सोलह श्रृंगार से सजाना चाहिए और उनसे अपने सुहाग की लम्बी आयु की प्रार्थना करनी चाहिए। सम्मुख लाल रंग के आसान पर बैठना चाहिए। हाथ में जल, अक्षत और फूल लेकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। तत्पश्चात माता के गले में फूलों कि माला अर्पित करनी चाहिए। धूप, दीप, और फूल से माता का पूजन करना चाहिए। पूजन करने के बाद व्रत कि कथा सुनी जाती है।
गौरी तीज व्रत के लाभ
गौरी तीज व्रत अखंड सौभाग्य, संतान और सुखों के प्राप्ति के लिए किया जाता हैं। जीवन साथी के हृदय में अपना स्थान सदैव के लिए सुरक्षित करने के लिए किया जाता है। यह व्रत सभी सांसारिक सुखों को देने वाला व्रत है।