फिर आपातकाल- युद्ध की स्थिति जैसी आहट | Future Point

फिर आपातकाल- युद्ध की स्थिति जैसी आहट

By: Future Point | 16-Feb-2019
Views : 11038फिर आपातकाल- युद्ध की स्थिति जैसी आहट

भारत वर्ष को आज तक के इतिहास में तीन बार आपातकाल की स्थिति से गुजरना पड़ा है। पहली बार 26 अक्तूबर 1962 को, दूसरी बार 3 दिसम्बर 1971 को और अंतिम बार 26 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की। आगे बढ़ने से पूर्व आईये जान लें कि वास्तव में आपातकाल होता क्या है?

आपातकाल से अभिप्राय एक ऐसे संवैधानिक प्रावधान से है जिसका प्रयोग देश में आंतरिक, बाहरी और आर्थिक रुप से खतरा उत्पन्न होने के समय किया जा सकता है। किसी भी देश को ऐसी स्थिति का सामना क्यों करना पड़ता है। संविधान का निर्माण करने वाले विद्वजनों ने इस प्रावधान का निर्माण यह सोच कर किया था कि यदि किसी समय कोई शत्रु देश हमारे देश पर हमला कर दे, तो ऐसे में देश को बचाने के लिए हर प्रकार के निर्णय लेने के लिए केंद्र सरकार स्वतंत्र हो, उसे किसी भी संवैधानिक औपचारिकता का सामना न करना पड़े। यह प्रावधान संविधान में देश को बाहरी शक्तियों से बचाने और मुश्किल समय से देश को बाहर लाने के लिए किया गया है। आपात स्थितियों से निपटने के लिए सारी शक्तियां केंद्र सरकार के पास होनी चाहिए। इसी विचार से संविधान में आपातकाल की घोषणा का प्रावधान रखा गया। राष्ट्रपति के द्वारा आपातकाल यदि घोषित कर दिया जाता है तो केंद्र सरकार प्रत्येक निर्णय लेने का अधिकार रखती है।

संविधान के अनुसार तीन तरह के आपातकाल हो सकते हैं-


1. पहला राष्ट्रीय स्तर पर जिसे राष्ट्रीय आपातकाल का नाम दिया गया-

यह समय देश के लिए युद्ध, बाहरी आक्रमण और देश की सुरक्षा से जुड़ी हो सकती है। इस स्थिति में केंद्र सरकार के पास असीमित अधिकार आ जाते हैं और देश के नागरीकों से सारे अधिकार छीन लिए जाते हैं। यह आपातकाल लागू करने के लिए राष्ट्रपति की सहमति आवश्यक है। यह अभी तक तीन बार लागू किया जा चुका है।

1) प्रथम बार 26 अक्तूबर 1962 से लेकर 10 जनवरी 1968 तक आपातकाल रहा। यह समय भारत पर चीन देश के आक्रमण का समय था।

2) दूसरी बार 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण किये जाने पर संकटकालीन स्थिति की घोषणा कर दी गई।

3) तीसरी बार 26 जून, 1975 को आंतरिक अव्यवस्था के नाम पर संकटकाल की घोषणा की गई। जून 1975 में घोषित संकटकाल 21 मार्च, 1977 को समाप्त कर दिया गया। इसके बाद से अभी तक कोई आपातकाल घोषित नहीं किया गया है।

2 दूसरा राज्य स्तर पर आपातकाल जिसे राष्ट्रपति शासन का नाम दिया गया। यह आपातकाल सिर्फ किसी राज्य विशेष में लागू किया जा सकता है- यह इमरर्जेंसी समय-समय पर राज्यों की व्यवस्था बनाए रखने के लिए लागू की जाती रही है। राज्य विशेष की राजनैतिक और संवैधानिक व्यवस्था के फेल होने पर यह आपातकाल लागू किया जाता है। इसकी अवधि 2 माह से लेकर अधिक से अधिक 3 साल तक की हो सकती है।

3 आर्थिक आपातकाल जो देश की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है-

यदि कभी देश की अर्थव्यवस्था संकट में फंस जाती है और वस्तुओं के मूल्यों पर नियंत्रण रखने में असफल रहती है तो इसे आर्थिक आपातकाल का नाम दिया जाता है। इस समय में सरकार दिवालिया घोषित हो जाती है।

उपरोक्त तीनों प्रकारों में से अब तक प्रथम दो अभी तक लागू हो चुकी है।

ज्योतिष के अनुसार आईये देखें कि कौन से ज्योतिषीय योग देश में आपातकाल की स्थिति का निर्माण करने का कार्य करते हैं और आने वाले वर्ष में क्या देश में आपातकाल लागू हो सकता है-

भारत देश की कुंडली वृषभ लग्न और कर्क राशि की है।


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भारत वर्ष की कुंडली वृषभ लग्न, कर्क राशि एवं पुष्य नक्षत्र की है। जन्म लग्न में राहु विराजमान है, सप्तम में केतु स्थित है। कुंडली का तीसरा भाव छः ग्रहों के प्रभाव क्षेत्र में है। भाग्येश और कर्मेश शनि तृतीय भाव में स्थित है। इस प्रकार भाग्य भाव को भावेश की दृष्टि प्राप्त होने से भाग्य भाव बली हो रहा है। पंचमेश बुध भी अपने से एकादश भाव में स्थित हैं। यह जनसंख्या की अधिकता का सूचक है। शनि-चंद्र का एक साथ होना और राशीश चंद्र का शनि के पुष्य नक्षत्र में होना, यहां के आमजन में आत्मविश्वास की कमी का द्योतक है। कुंडली के तीसरे भाव में तीनों त्रिकोणेश और सप्तमेश के अतिरिक्त सभी केंद्रेश एक साथ युति संबंध में स्थित हैं। इसके अतिरिक्त केतु मंगल की राशि में होने के प्रभावस्वरुप सूक्ष्म तकनीकी क्षेत्रों में भारत को अग्रणी रखे हुए है।

यही वजह है कि भारत के सॅाफ्टवेयर इंजीनियर्स विश्व में अपनी योग्यता की धाक जमाए हुए हैं। अष्टमेश का छठे भाव में होना विपरीत राजयोग बना रहा है। पराक्रम भाव में सूर्य, चंद्र, शनि, शुक्र और बुध का एक साथ होना पंचग्रही योग निर्मित कर रहा है। भारत देश की स्वतंत्रता के समय बुध की महादशा थी। उस समय की कुंडली में लग्न में राहु, द्वितीय कुटुंब भाव में मंगल, तृतीय पराक्रम भाव में सूर्य, चंद्र, बुध, शुक्र, शनि ये पांच ग्रह बैठकर पंचग्रही योग बना रहे हैं। इसके अतिरिक्त छठे ऋण, रोग और शत्रु भाव में गुरु और सातवें पत्नी, व्यवसाय, स्त्री भाव में केतु बैठे हुए हैं। उस समय आश्लेषा नक्षत्र था और बुध की महादशा चल रही थी।

द्वितीय मारकेश और पराक्रम के कारक ग्रह मंगल का दूसरे भाव में होने के कारण, भारत देश के अपने पडोसियों से संबंध सदैव तनावपूर्ण रहे हैं। भारत देश का तीसरा भाव अत्यंत पीड़ित है। यह भारत की सीमाओं पर तनाव दर्शाता है।

इस समय भारत की कुंडली में चंद्र की महादशा में गुरु की अंतर्दशा चल रही है। अगस्त 2018 से गुरु की यह अंतर्दशा प्रारम्भ हुई है, जो दिसम्बर 2019 तक रहेगी। वृषभ लग्न के लिए अंतर्दशानाथ गुरु आयेश और अष्टमेश होते है, और विपरीत राजयोग बनाते हुए छठे भाव में स्थित है। अतः इस अवधि में भारत की आर्थिक स्थिति में सुधार होंगे। साथ ही कुछ गंभीर बीमारियों के बड़ी तादाद में फैलने के योग बनते हैं।

प्रथम बार आपातकाल होने के समय (26 अक्तूबर 1962)

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शनि में राहु की दशा चल रही थी। आपातकाल के समय मंगल राहु के साथ कर्क राशि में नीचस्थ थे, केतु-शनि की नवम भाव में युति हो रही थी, अर्थात चार सबसे बड़े ग्रहों का प्रभाव एक दूसरे पर प्रत्यक्ष था, मंगल-राहु और केतु-शनि समसप्तक योग में थे। जन्म राशि अत्यंत पीड़ित थे।

दूसरी बार आपातकाल होने के समय

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बुध में शुक्र की दशा थी। शनि-चंद्र लग्न में, राहु-मंगल लग्न भाव को दृष्टि दे रहे थे। मंगल शनि की राशि में थे, राहु भी शनि की राशि में थे। गुरु लग्न भाव को देख रहे थे, अतः युद्ध पर जल्द ही विजय प्राप्त कर ली गई। जन्म लग्न और जन्म राशि दोनों इस समय बुरी तरह पीड़ित थे।

तीसरी बार आपातकाल जैसी स्थिति होने का समय

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भारत की कुंडली में बुध में राहु की दशा थी। आपातकाल के दौरान लग्न राहु/केतु अक्ष में था, जन्म राशि कर्क पर राहु, मंगल और गुरु का प्रभाव था। गोचर में दूसरे भाव में सूर्य-शनि की युति हो रही थी।

6 फरवरी से 20 मार्च 2019 के मध्य की अवधि में फिर से एक बार वही योग बन रहे है। इस समय में देश में आंतरिक कलह, गृह युद्ध, आतंकवादी हमलों की स्थिति बन सकती है। सांप्रदायिक दंगे देश की कानून व्यवस्था को हानि पहुंचा सकते हैं। इसके बाद 30 अक्तूबर 2019 से लेकर 6 जनवरी 2021 में भी यही ग्रह स्थिति बन रही है। इस अवधि में एक बार फिर से कर्क राशि पर राहु-केतु का प्रभाव, कर्क राशि को द्वादशेश मंगल की दृष्टि, अंतर्दशानाथ गुरु की राशि में शनि और जन्मराशीश चंद्र स्वयं शनि की राशि में सूर्य के साथ है। यह योग बाहरी आक्रमण और आंतरिक कलह दोनों की स्थिति दर्शा रहा है। पड़ोसी देश सीमा क्षेत्रों पर युद्ध का दबाव बनाकर आक्रमण की स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं। सावधानी रखने से स्थिति को टाला जा सकता है।