इस साल कब है सावन शिवरात्रि, जानें पूजा का समय और विधि एवं उपाय | Future Point

इस साल कब है सावन शिवरात्रि, जानें पूजा का समय और विधि एवं उपाय

By: Future Point | 18-Jul-2022
Views : 2176इस साल कब है सावन शिवरात्रि, जानें पूजा का समय और विधि एवं उपाय

कृष्‍ण पक्ष की चतुदर्शी को मासिक शिवरात्रि या मास शिवरात्रि आती है। इस दिन भक्‍त भगवान शिव की पूजा करते हैं और उपवास रखते हैं। एक साल में आमतौर पर 12 शिवरात्रियां होती हैं। श्रावण के महीने में जो शिवरात्रि आती है, उसे सावन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। श्रावण के पूरे महीने में ही शिव पूजा या शिव की आराधना की जाती है और इस महीने में आने वाली शिवरात्रि को बहुत शुभ माना जाता है। हालांकि, जो सबसे ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण शिवरात्रि है, वो फरवरी या मार्च के महीने में आती है और उसे महाशिवरात्रि कहते हैं।

सावन शिवरात्रि कब है

साल 2022 में श्रावण शिवरात्रि 26 जुलाई को पड़ रही है। निशिता काल पूजा का समय रात 27 जुलाई को रात 12 बजकर 7 मिनट से लेकर 12 बजकर 49 मिनट तक है। यह समयावधि 42 मिनट की रहेगी। 27 जुलाई को शिवरात्रि पारण समय सुबह 5 बजकर 40 मिनट से लेकर दोपहर के 3 बजकर 51 मिनट तक है।

पूजन का समय

रात्रि पहले प्रहर की पूजा : शाम 7:16 से 9:52 तक

रात्रि दूसरे प्रहर की पूजा :  27 जुलाई को 09:52 अपराह्न से 12:28 पूर्वाह्न

रात्रि तीसरे प्रहर की पूजा : 27 जुलाई को रात 12:28 से 3:04 तक

रात्रि चौथे प्रहर की पूजा : 27 जुलाई को 3.04 से 5:40 तक

चतुदर्शी तिथि का आरंभ : 26 जुलाई को शाम 6 बजकर 46 मिनट पर

चतुदर्शी तिथि का समापन : 27 जुलाई को रात 9 बजकर 11 मिनट तक

सावन शिवरात्रि की पूजा कैसे करें

सावन की शिवरात्रि पर निम्‍न तरीके से पूजा-अर्चना करें :

  • सुबह जल्‍दी उठें और नहाकर साफ कपड़े पहन लें।
  • अब शहद, दूध, दही, घी और गन्‍ने का जूस या चीनी मंदिर में स्‍थापित शिवलिंग पर अर्पित करें।
  • अब 'ऊं नमं: शिवाय' मंत्र का जाप करें और शिवलिंग पर बेल पत्र, फल और फूल आदि चढ़ाएं।
  • इसके बाद शिव चालीसा का पाट करें और अंत में भगवान शिव की आरती करें।

सावन का महत्‍व

सावन का महीना भगवान शिव की पूजा, उपासना और आराधना के लिए होता है। श्रावण माह से कुछ दिनों पहले चातुर्मास शुरू हो जाता है जिसमें भगवान विष्‍णु सावन, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक यानि चार महीनों के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। संसार के पालनहार के निद्रा में जाने पर संसार के पालन का कार्य भगवान शिव करते हैं। इसलिए सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा की जाती है।

सावन शिवरात्रि का महत्‍व

इस शुभ दिन पर भगवान शिव का आशीर्वाद, शांति, सुख पाने के लिए महारुद्र अभिषेक किया जाता है। माना जाता है कि शिवरात्रि ब्रह्मांड की दो मजबूत शक्‍तियों यानि शिवजी और मां पार्चती के मिलने का प्रतीक है। इस दिन से कई पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं। किवदंती है कि शिवरात्रि पर भगवान शिव ने अपनी पत्‍नी के रूप में देवी पार्वती को स्‍वीकार किया था। शिवरात्रि पर देवी पार्वती ने शिवजी के लिए व्रत भी रखा था।

भगवान शिव को प्रसन्‍न करने के उपाय

सावन के महीने में या शिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव को प्रसन्‍न करने के लिए निम्‍न उपाय कर सकते हैं :

  • बुरे कर्मों से मुक्‍ति पाने के लिए शिव पूजा के समय शंकर भगवान को तिल का तेल अर्पित करें।
  • जिन अ‍विवाहित लड़कियों को मनचाहा वर या अच्‍छा पति चाहिए, वो सावन में भगवान शिव को चना दाल चढ़ाएं।
  • अगर आप जीवन में शांति की कामना करते हैं, तो शिवजी को धतूरे का फूल या फल अर्पित करें।
  • कानूनी मामलों में जीत, शत्रुओं को परास्‍त करने के लिए शिवरात्रि पर शिवलिंग पर भांग चढ़ाएं। इससे आपकी कामना अवश्‍य पूरी होगी।

कांवड़ यात्रा कब शुरू हो रही है

सावन के महीने में भगवान शिव के भक्‍त कांवड़ यात्रा पर जाते हैं। साल 2022 में कांवड़ यात्रा सावन के महीने की शुरुआत यानि 14 जुलाई से ही शुरू हो रही है। हरिद्वार में 26 जुलाई तक यह आयोजन चलेगा। जल अभिषेकम सावन शिवरात्रि पर है जो 18 जुलाई को पड़ता है और जल का समय 19 जुलाई को दोपहर 12 बजकर 41 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 55 मिनट तक रहेगा।

क्‍या है कांवड़ यात्रा

हिंदू धर्म में कांवड़ यात्रा को बहुत ही शुभ तीर्थयात्रा माना जाता है और हर साल भगवान शिव के भक्‍त इस यात्रा पर जाते हैं। इसे जल यात्रा भी कहते हैं क्‍योंकि इसमें कांवड़ों में पानी भरकर श्रद्धालु मंदिर जाते हैं। इसमें कांवडिये अपने शहर से तीर्थस्‍थान जहां गंगा का पवित्र जल हो, उसे भरकर अपने यहां के शिव मंदिर में चढ़ाते हैं। प्रमुख रूप से हरिद्धार जाकर कांवड़ में गंगाजल भरा जाता है।

कांवड़ यात्रा का महत्‍व

कांवड़ यात्रा का अपना एक अलग धार्मिक महत्व है। भगवान शिव की इस तरह पूजा कर के कांवडिये एक आध्‍यात्मिक यात्रा पर निकलते हैं और धार्मिक मंत्रों का जाप करते हुए अपने मन को शांत करते हैं। तनाव और नकारात्‍मक स्थितियों से दूर होकर ईश्‍वर की आराधना में लीन रहने का यह एक आध्‍यात्मिक तरीका है। कहते हैं कि दिमाग तभी काम करता है, जब वो रिलैक्‍स होता है। गंगा नदी से पवित्र जल लेना अपने साथ रचनात्‍मक और सकारात्‍मक चीजों को लेकर आने का प्रतीक है। माना जाता है कि कांवड़ यात्रा पूरी तरह से भक्‍त को भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है और उसकी सभी कामनाएं पूरी होती हैं।

कांवड़ यात्रा के नियम

  • जो भी श्रद्धालु कांवड़ यात्रा पर जाता है, उसे किसी भी तरह के नशे से दूर रहना होता है। पूरी यात्रा के दौरान तामसिक भोजन और मांस-मदिरा को त्‍यागना होता है।
  • स्‍नान करने के बाद ही कांवड़ को हाथ लगा सकते हैं।
  • यात्रा के दौरान चमड़े की किसी भी चीज का प्रयोग और स्‍पर्श वर्जित है। इस समय श्रद्धालु वाहन, चारपाई का भी प्रयोग नहीं कर सकते हैं। यात्रा करते समय पेड़ के नीचे कांवड़ नहीं रखना चाहिए।
  • यात्रा के समय कांवडियों को बम-बम भोले या शिव का जयकारा लगाना होगा।
  • कांवड़ को सिर के ऊपर ले जाना भी वर्जित है।

जो श्रद्धालु पूरी श्रद्धा और भक्‍ति से अपनी कांवड़ यात्रा को पूरा करता है, भगवान शिव उसकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं और उसे सुख एवं समृद्धि प्रदान करते हैं।