देवी छिन्नमस्ता जयंती विशेष – महत्व, कथा एवं पूजा विधि। | Future Point

देवी छिन्नमस्ता जयंती विशेष – महत्व, कथा एवं पूजा विधि।

By: Future Point | 17-May-2019
Views : 9468देवी छिन्नमस्ता जयंती विशेष – महत्व, कथा एवं पूजा विधि।

दस महा विधाओं में देवी छिन्नमस्ता छठी महा विधा कहलायी जाती हैं, देवी छिन्नमस्ता को माँ चिंतपूर्णी के नाम से भी जाना जाता है, देवी छिन्नमस्ता के इस रूप के विषय में कई पौराणिक कथाओ में इनका उल्लेख मिलता है, ऐसा माना जाता है कि देवी छिन्नमस्ता ने अपनी सहयोगियों की भूख को शांत करने के लिए अपने सिर को काट कर उनको रक्त पान कराया था. देवी छिन्नमस्ता को देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचंड चंडिका या फिर छिन्नमस्तिस्का के नाम से भी जाना जाता है।

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देवी छिन्नमस्ता जयंती कब होती है-

हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को देवी छिन्नमस्ता जयंती मनाई जाती है, इस वर्ष 2019 में यह तिथि 17 मई को पड़ रही है, देवी छिन्नमस्ता जयंती भारत वर्ष में धूमधाम के साथ मनाई जाती है, देवी छिन्नमस्ता जयंती के दिन माता के भक्त गण माता की विशेष पूजा अर्चना करते हैं, देवी छिन्नमस्ता जयंती के दिन माता के दरबार को रंग बिरंगी रोशनियों और फूलों से सजाया जाता है तथा मंदिरों में मंत्रोच्चारण के साथ पाठ का आयोजन भी किया जाता है।

Dasha Mahavidya Puja is performed in strict accordance with all Vedic rules & rituals.


देवी छिन्नमस्ता जयंती का महत्व -

पौराणिक कथाओं के अनुसार छिन्नमस्ता माता देवी का एक बहुत ही विशेष महत्व है, ऐसा माना जाता है कि देवी छिन्नमस्ता काली का एक अद्वितीय अवतार हैं क्योंकि उन्हें जीवन हरने वाली के साथ साथ जीवन दाता भी माना जाता है, ऐसा भी माना जाता है कि जो भक्त देवी छिन्नमस्ता की पूजा करते हैं, उनको उनकी सभी कठिनाइयों से छुटकारा मिलता है, देवी छिन्नमस्ता की पूजा करने से भक्तों की आध्यात्मिक के साथ-साथ सामाजिक ऊर्जा में भी वृद्धि होती है, यह भी माना जाता है कि देवी की पूजा करने से, भक्त संतान, कर्ज और यौन समस्याओं से संबंधित विभिन्न मसलों से खुद को बचा सकते हैं. व्यक्ति अपनी सभी इच्छाओं को पूरा करने और दुश्मनों पर विजय पाने के लिए और आर्थिक समृद्धि के लिए भी देवता की पूजा करते हैं. मां की जयंती के कुछ दिन पहले से ही जोरदार तैयारियां शुरू हो जाती हैं मां के दरबार को दुल्हन की तरह सजाया जाता है.

इस मौके पर मां दुर्गा सप्तशती के पाठ का आयोजन भी किया जाता है जिसमें श्रद्धालुओं सहित सभी भक्त भाग लेते हैं. इस दिन श्रद्धालुओं को लंगर परोसा जाता है जिसमें तरह-तरह के लजीज व्यंजन शामिल होते हैं. माता चिंताओं का हरण करने वाली हैं, मां के दरबार में जो भी सच्चे मन से आता है उसकी हर मुराद पूरी होती है. मां का आशीर्वाद सभी पर इसी तरह बना रहे इसके लिए मां के दरबार में विश्व शांति व कल्याण के लिए मां की स्तुति का पाठ भी किया जाता है. मंदिर न्यास की ओर से श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए व्यापक प्रबंध किए जाते हैं. इस मौके पर हजारों श्रद्धालुओं मां की पावन पिंडी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करते हैं.

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देवी छिन्नमस्ता की कथा -

धार्मिक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माँ भगवती अपनी दो सहचरियों के संग मंदाकनी नदी में स्नान कर रही थी, स्नान करने के समय दोनों सहचरियों को बहुत तेज भूख लगी, भूख की पीड़ा से उन दोनों सहचरियों का रंग काला हो गया. तब सहचरियों ने माँ भवानी से भोजन के लिए कुछ माँगा, परन्तु माँ भवानी ने कुछ समय प्रतीक्षा करने के लिए कहा, पर भूख की पीड़ा ना सह पाने के कारण दोनों सहचरियों भोजन की हठ करने लगी. तत्पश्चात दोनों सहचरी नम्रता पूर्वक माँ भवानी से अनुरोध करने लगी कि माँ तो भूखे शिशु को अविलम्ब भोजन प्रदान करती है. नम्रता पूर्वक वचन सुनकर माँ भवानी ने अपने खडग से अपना सिर काट लिया. माँ भवानी का कटा हुआ सिर उनके बाए हाथ में आ गिरा, माँ भवानी के सिर से तीन रक्त धाराये निकली, दो धाराओ से दोनों सहचरी रक्त पान कर तृप्त हो गई, तीसरी धारा माँ भवानी स्वंय पान करने लगी. तभी से माँ भवानी के छिन्नमस्तिका के रूप से प्रख्यात हुईं ।


देवी छिन्नमस्ता की पूजा विधि -

  • देवी छिन्नमस्ता जयंती के दिन ब्रह्म मुहूर्त काल में उठ कर स्नान व ध्यान से पवित्र होने के पश्चात् हाथ में लाल पुष्प लेकर व्रत का संकल्प ले.
  • देवी छिन्नमस्ता का इस मन्त्र का जाप करते हुए ध्यान करना चाहिए प्रचण्ड चण्डिकां वक्ष्ये सर्वकाम फलप्रदाम्। यस्या: स्मरण मात्रेण सदाशिवो भवेन्नर:।।
  • गुप्त नवरात्रि की तरह ही देवी छिन्नमस्ता की पूजा करनी चाहिए.
  • गुप्त सिद्धि के लिए माँ दुर्गा के दस महाविद्याओं में माँ छिन्नमस्ता छठी महाविद्या है, माँ छिन्नमस्ता समस्त चिंता, क्लेश, दुःख, कष्ट को हर लेती है.
  • देवी छिन्नमस्ता की कृपा से विशेष सिद्धि भी पूर्ण होती है। माँ की महिमा अपरम्पार है। अतः व्रती को माँ के विभिन्न रूप तथा महाविद्याओं के प्रादुर्भाव की पूजा विधि-विधान एवं शुद्ध मन से करनी चाहिए.
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