कोरोना के कहर से विश्व के सभी देशों ने अपनाया सनातन धर्म का दाह संस्कार
By: Future Point | 15-Apr-2020
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विश्व के प्रत्येक देश में आज कोरोना का कहर एक भयानक महामारी का रूप लेता जा रहा है, और प्रत्येक देश में यह अपने पाँव पसारता जा रहा है, विश्व में कुल 195 देश हैं जिनमे से 100 से अधिक देश कोरोनावायरस से प्रभावित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यह एक अंतराष्ट्रीय महामारी के रूप में फैलता जा रहा है। चीन से शुरू हुई यह महामारी अब महाआपदा का स्वरूप ले चुकी है। चीन में जब यह वायरस ने महामारी के रूप में परिवर्तित हुआ तब चीनी राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने तुरंत इस बीमारी से मरने वालों का दाह संस्कार अर्थात शव को खुले स्थान में अग्नि की उपस्थिती में अन्त्येष्टि करने का निर्देश दे दिया|
शव को दफनाने की प्रक्रिया पर रोक लगा दी है जिससे यह वायरस और न फैले। जिस प्रक्रिया को चीन आज इस विपदा के आने पर अपना रहा है, उसे सनातन धर्म शताब्दियों से अपनाता आ रहा है। और अब तो राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने ये शख्त निर्देश दिए हैं कि कोरोना से पीड़ित मरने वालों के शव को अग्नि में ही जलाया जाये| जिससे कि ये विषाणु दूसरों तक न फैले। चीन सहित अब बहुत से देशों ने इस पद्धति को अपनाना शुरू कर दिया है जो कि भारतीय सनातन धर्म की प्राचीन सभ्यता की ही देंन है। जिसके अंतर्गत शव को अंतिम दर्शन के बाद अग्नि मे समर्पित कर दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि चिता की ये अग्नि शव की शुद्धिकरण करती है। जिसे सनातनियों द्वारा हजारो वर्षो से शव के अंतिम संस्कार के रूप मे अपनाया गया है।
विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋगवेद में भी दाह संस्कार के बारे में वर्णन है। ऋगवेद की कई ऋचाएँ हैं, जिसमें शव के दाह संस्कार को ही मान्यता दी गयी है बताती हैं। यही नहीं महाभारत में अन्त्येष्टि कर्म का कई बार वर्णन आता है। गरुण पुराण में अंतिम संस्कार के बारे में विस्तार से बताया गया है। आदिपर्व में पाण्डु का दाह संस्कार, स्त्रीपर्व में द्रोण का दाह संस्कार, अनुशासनपर्व में भीष्म का दाह संस्कार, मौसलपर्व में वासुदेव का, स्त्रीपर्व में अन्य योद्धाओं का तथा आश्रमवासिकपर्व में कुन्ती, धृतराष्ट्र एवं गान्धारी का दाह संस्कार वर्णित है। यही नहीं रामायण में भी महाराज दशरथ की चिता चन्दन की लकड़ियों से बनी थी और उसमें अगुरु एवं अन्य सुगन्धित पदार्थ थे|
कौसल्या तथा अन्य स्त्रियाँ शवयात्रा में सम्मिलित हुई थीं। सनातन धर्म की परंपरा के अनुसार प्रत्येक मनुष्य को अपने सम्पूर्ण जीवन मे 16 संस्कारों को पूर्ण करना होता है। जिसे जन्म से लेकर मृत्यु तक उम्र के हर पड़ाव पर निभाया जाता है। इसमे 16वें संस्कार या दाह संस्कार को व्यक्ति का द्विज निभाता है। जिसमें मरने के बाद शव को मुखाग्नि (चिता को आग) देना और अस्थि विसर्जन से लेकर 11 से 17 दिन तक चलने वाले प्रत्येक कर्मकांड विधि-विधान, पूजा पाठ आदि में सम्मिलित होना है।
सनातन धर्म का अन्त्योष्टि संस्कार-
''वांसासि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोSपराणि |
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानि देहि ''||
भगवन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए कहा था कि आत्मा अजर-अमर है। आत्मा का न तो नाश होता है और न ही ये जीवित होती है। आत्मा तो ऊर्जा का ही एक रूप है जो एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती रहती है। जिस प्रकार से मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है ठीक उसी प्रकार जीवात्मा भी पुराने शरीर को त्याग कर नए शरीर मे प्रवेश करती है।
सनातन धर्म मे मृत्यु के बाद शव को 24 घंटे के भीतर जलाए जाने कि परंपरा है क्योंकि ये विज्ञान द्वारा भी सिद्ध हुआ है कि मृत्यु के उपरांत शव मे बहुत से हानिकारक किटाणु और जीवाणु उत्पन्न होते हैं जो कि पर्यावरण और मानव के स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। कई बार क्या होता है कि मरने वाला व्यक्ति किसी संक्रामक रोग से पीड़ित होता है। जिससे कि मृत्यु के उपरांत उसके शरीर का विघटन बहुत तेज़ी से होने के कारण उसके शरीर की समस्त क्रिया शिथिल पड़ जाती है और शरीर में सड़न पैदा होने लगती है।
जो कि आस-पास के लोगों के लिए या खास करके पदयात्रा में शामिल होने वाले लोगों के लिए भयावह हो सकती है। इसलिए मृत्यु होने के 24 घंटे तक के भीतर समस्त क्रिया कलापों जैसे शव को स्नान कराना नए वस्त्र धारण कराना अंतिम दर्शन के बाद अग्नि में प्रज्वलित करना सम्मिलित है। वेदों में वर्णित है कि हमारा शरीर पाँच तत्वों से मिल कर बना है जो कि पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश है। सनातन धर्म में जो विधान अंतिम संस्कार के रूप में वर्णित है उसका एक मात्र यही उद्देश्य है कि जिन तत्वों से ये शरीर निर्मित हुआ है इसे उन्हीं पंचतत्वों में वीलीन कर दिया जाये। इसी कारण व्यक्ति को जलाया जाता है यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हुई है वह स्वयं किसी संक्रामक रोग से ग्रसित हो, तो इस कारण शव को जालना ही सबसे उपयुक्त है क्योंकि जिस तापमान में शव को जलाया जाता है उस ताप में किसी भी किटाणु या विषाणु का बचना नामुनकिन है।
विश्व के कई देशों में शव को दफनाने की परम्परा है, शव को दफनाने से कई प्रकार ही समस्या होती है। पहली तो बढ़ती आबादी के साथ रोज मृत्यु को प्राप्त होने वालों को दफनाने के लिए इतनी जमीन नहीं बची है। अगर आप अमेरिका में सभी कब्रिस्तानों को जोड़ेंगे तो यह एक मिलियन एकड़ जमीन होगी। दूसरी दफनाने का पर्यावरण पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वहीं इसमें खर्च भी अधिक आता है। इस समय दुनिया के कई देश इंसानों के मरने के बाद उनकी लाशों के अंतिम संस्कार के लिए नए रास्ते ढूंढ रहे हैं। क्योंकि आबादी बढ़ने के साथ बाकी दूसरे कामों के लिए जमीन कम होने लगी है। इन कामों में अंतिम संस्कार भी एक प्रमुख है। दाह संस्कार की दर पूरे विश्व में अब बढ़ता जा रही है।
सनातन धर्म के सिद्धान्त-
सनातन धर्म के अंतर्गत ऐसे बहुत से विधि विधान सम्मिलित है जो कि किसी निश्चित उद्देश्य को ध्यान में रखकर तब के समय के बुद्धिजीवियों द्वारा बनाए गए हैं। जिसमे वेद, पुराण, धर्म,ज्योतिष, आयुर्वेद इत्यादि सभी का मिश्रण है। हमारी सनातन धर्म की परंपरा में दोनों हाथ जोड़ कर लोगों का अभिवादन किया जाता है जो कि दूसरे के शरीर में व्याप्त किसी रोग या अन्य किसी किटाणु को हमारे शरीर में प्रवेश नही होने देता। इसके साथ ही चप्पल जूतों का घर या मंदिर में प्रवेश वर्जित है जो कि बाहर से आने वाली बीमारियों को घर के भीतर प्रवेश नही होने देता।
सही मायने मे बात कि जाये तो सनातन धर्म में न जाने ऐसे कितने ही रहस्य हैं जो कि सनातन संस्कृति के आधार स्तम्भ हैं जिसे आज नही तो कल पूरी दुनिया स्वीकार करने हेतु बाध्य हो जाएगी। भारत वर्ष की परंपरा, संस्कृति और सभ्यता की एक-एक पद्धति को अब विश्व अपनाते जा रहा है। एक-एक पद्धति में वैज्ञानिक कारण व्याप्त है चाहे तो योग हो या अन्त्येष्टि। किसी भी प्रकार की बीमारी हो मानसिक या शारीरिक, भारत की वैदिक जीवन में सभी का उत्तर छिपा है, जरूरत है तो बस अपनाने की।