चातुर्मास क्या हैं और चतुर्मास में क्या करें? क्या न करें?
By: Future Point | 12-Jul-2019
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चतुर्मास को चातुर्मास, चतुर्मास्य आदि कई नामों से जाना जाता है। आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष से चतुर्मास्य प्रारम्भ होता है। इस प्रकार यह इस वर्ष 15 जुलाई 2019 से प्रारम्भ हो रहा है। धर्मशास्त्रों में आषाढ़ मास और चतुर्मास दोनों को ही बहुत शुभ माना गया है। इस समयावधि में विशेष रुप से व्रत, देव दर्शन और ध्यान आदि क्रियाएं की जाती है। धार्मिक प्रवचनों में भाग लिया जाता है। सरल शब्दों में यह जुलाई से लेकर नवम्बर/ अक्तूबर माह के मध्य की अवधि होती है। जिसे चातुर्मास कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ चार माह है। चातुर्मास के अंतर्गत उपवास, शास्त्र स्मरण, ध्यान और धार्मिक दर्शन आदि कार्य किए जाते है। यह समय विशेष रुप से संतों, भक्तों और साधओं के लिए एक खास समय होता है। ऐसा माना जाता है कि इन चार माह में भगवान विष्णु चातुर्मास के दौरान गहरी ध्यान निद्रा में होते है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार इन चार माहों को चातुर्मास्य के नाम से भी जाना जाता है। मुख्यत: यह समय वर्षाकाल का समय होता है।
वर्षाकाल की अवधि में अधिक गमन नहीं करना चाहिए। यात्राएं भी कम से कम ही करनी चाहिए। पूर्ण रुप से चार माहों में भगवान के सम्मुख स्वयं को समर्पित कर देना चाहिए। संत, महात्मा और पुजारी इस अवधि में चातुर्मास व्रत का विशेष रुप से पालन करते है। चातुर्मास व्रत का पालन करने वाले व्यक्तियों को ब्रह्मचारी व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए। नशीले पदार्थों के सेवन का भी त्याग करना चाहिए। भूमि पर शयन करना चाहिए और भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। यह भी माना जाता है कि इस दौरान विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना विशेष शुभता देता है। चार महीने का चातुर्मास हर प्रकार से शुभ माना गया है।
चातुर्मास में व्रत, पूजा और अनुष्ठान आदि कार्य किए जाते है। अनुष्ठानों के दौरान सात्विक जीवन नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए। जहां तक संभव हो भोजन में नमक के प्रयोग से बचना व्रत की शुभता को बढ़ाता है। व्रती को गेहूं, मूंग दाल और जई जैसे खाद्य पदार्थों को खाने से बचना चाहिए। ईमानदारी के रास्ते पर चलना चाहिए और बुरे वचन कहने से बचना चाहिए। ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए, जिस से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचें।
व्रत करने वाले व्यक्ति को व्रत के नियमों का सख्ती से पालन करना चाहिए। प्रात: जल्दी उठना चाहिए, स्नान आदि कार्य कर ईष्ट देव का पूजन करना चाहिए। किसी नदी या सरोवर में स्नान करना अतिशुभ माना गया है। स्नान के लिए मिट्टी, तिल और कुश का प्रयोग अतिशुभता देता है। इस अवधि में किए गए व्रतों में भगवान विष्णु का ध्यान, भक्ति और पूजन करना चाहिए। नियमित मंत्र जाप करना व्रत के शुभ फलों को बढ़ाता है। व्रत के दिन विष्णु पूजन करने से पूर्व लाल वस्त्र में कलश बांधकर स्थापित करें और उस पर भगवान विष्णु जी की मूर्ति रखें। विष्णु जी का धूप, दीप और फूल से पूजन करें। इस प्रकार पूजन व्रत करने से व्रती को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वर्षाकाल होने के कारण इस अवधि में सूक्ष्म जीव बहुतायत में होते हैं, इसलिए इन जीवों को किसी प्रकार का कष्ट ना पहुंचें इस बात को ध्यान में रखते हुए चातुर्मास में यात्राओं की मनाही होती है। सिर्फ व्रत यात्रा एक ऐसा तीर्थ है जिसकी यात्रा इस अवधि में की जा सकती है। ऐसा माना जाता है कि सभी देवी-देवता इस अवधि में एक स्थान पर एकत्रित रहते हैं और चार माह एक स्थान पर निवास करते है।
चातुर्मास के चार माह और देवी/देवता
चातुर्मास मास का पहला महीना श्रावण है, जो भगवान शिव को समर्पित है। विशेष रूप से सोमवार को, लोग तेजी से निरीक्षण करते हैं और नए काम शुरू करते हैं। कुछ लोग इस महीने में हरी पत्तेदार सब्जियों से परहेज करते हैं। दूसरा महीना भाद्रपद का है। यह पूरी तरह से त्योहारों से भरा महीना है। भगवान गणेश के आगमन का शानदार त्योहार यानि गणेश चतुर्थी और भगवान कृष्ण के जन्म का जश्न मनाने वाला खूबसूरत त्योहार - जन्माष्टमी इसी महीने में आती है। कुछ लोग इन महीनों के दौरान दही से बचते हैं। तीसरा महीना अश्विन का है। इस माह में नवरात्रि के रंगोत्सव और उसके बाद दुर्गा पूजा और दशहरा मनाया जाता है। इस महीने में आमतौर पर लोग दूध से परहेज करते हैं। चौथा और आखिरी महीना कार्तिक का है, जो रोशनी के त्योहार के अंत का प्रतीक है - दिवाली। कुछ लोग इस महीने के दौरान दालों से बचते हैं।
चातुर्मास में क्या खाएं और क्या ना खाएं?
चातुर्मास का प्रथम माह श्रावण मास है, यह माह पूर्णत: भगवान शिव को समर्पित है। इस माह में लोग नए कार्य शुरु नहीं करते है। इसके अतिरिक्त इस माह में हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन भी करने से बचा जाता है। दूसरा मह भाद्रपद माह है, यह माह भगवान श्रीकृष्ण का माह है। इस माह में भगवान श्रीकॄष्ण का जन्मोत्सव हर्षोल्लास से मनाया जाता है। और दही खाने से परहेज किया जाता है। तीसरा माह आश्विन माह है, इस मह में नवरात्रे आते है और यह माह देवी दुर्गा को समर्पित माह है। इस माह में दूध पीने से परहेज किया जाता है। चतुर्थ माह कार्तिक माह है, जो भगवान देवी लक्ष्मी को समर्पित माह है, इस माह में दालों का सेवन करने से बचा जाता है। चातुर्मास में विभिन्न संकल्प लिए जाते है। मांसाहार भोजन का पूर्णत: त्याग किया जाता है। पौराणिक ग्रंथों का पाठ किया जाता है। प्याज, लहसुन और तामसिक भोजन का भी त्याग किया जाता है।
कौन सी बातों का ध्यान रखें ?
इस मौसम में पानी के दूषित होने की संभावना अधिक होती है, जलजनित बीमारियाँ प्रचलित हो जाती हैं और चूंकि बरसात के मौसम में जमीन के कीड़े पैदा हो जाते हैं और कई अध्ययन बताते हैं कि हरी पत्तेदार सब्जियाँ इस मौसम में बैक्टीरिया के संक्रमण से ग्रसित होती हैं जैसे कि पालक, सलाद पत्ता गोभी आदि। उड़द की दाल से परहेज करते हुए, मसूर दाल की सलाह दी जाती है क्योंकि वे प्रोटीन में उच्च हैं और यह मानसून के अंत में पाचन के साथ अच्छी तरह से नहीं जाता है। भारत के कुछ हिस्सों में, प्याज, लहसुन, बैंगन को पाचन में हस्तक्षेप को रोकने के लिए भी परहेज किया जाता है। अगर आप चातुर्मास व्रत का पालन नहीं करते हैं, तो भी स्वस्थ रहने के लिए आप निम्न बातों का ध्यान रख सकते हैं-
1 पकाने से पहले सभी हरी पत्तेदार सब्जियों को अच्छी तरह से धो लें।
2 कीटाणुओं और जीवाणुओं को मारने के लिए उच्च तापमान पर दूध उबालें।
3 दूध का सेवन करते समय, अधिक पानी मिलाकर इसे प्रयोग करें।
4 छाछ और दही का सेवन करते समय उसी समय डोसा या इटली खाएं।
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