क्या कुंडली से मृत्यु की भविष्यवाणी की जा सकती है? क्या कहती है ज्योतिष विद्या
By: Acharya Rekha Kalpdev | 19-Apr-2024
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यह सत्य है कि जन्मकुंडली से जीवन की प्रत्येक घटना का फलादेश किया जा सकता है। जन्म कुंडली को पूर्व जन्म, वर्तमान जन्म और भविष्यत जन्म कि घटनाओं का लेखा-जोखा लिखा होता है। पूर्व जन्म और भविष्य के जन्म कि जानकारी बहुत अधिक प्राप्त न भी हो पाए परन्तु वर्तमान जन्म कि प्रत्येक छोटी से लेकर बड़ी घटना तक कि जानकारी जन्मपत्री में दी होती है। वैदिक ज्योतिष सौ प्रतिशत वैज्ञानिक विद्या है। इसके फलादेश भी सटीक और अचूक होते है। निश्चित रूप से Kundli के आधार पर किसी कि मृत्यु का फलादेश किया जा सकता है, मृत्यु कि तिथि के साथ साथ, मृत्यु का समय भी बताया जा सकता है।
मृत्यु को जीवन चक्र में बदलाव का समय कहा गया है। आत्मा के शरीर बदलने की प्रक्रिया ही मृत्यु कहलाती है। इस प्रक्रिया में आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश कर एक नई जीवन यात्रा शुरू करती है। वेदों में आयु वृद्धि के अनेक उपाय और अनेक औषधियों का वर्णन किया गया है। वैदिक ज्योतिष कि विंशोतरी दशा के वर्ष भी 120 है, जो मानव कि आयु 120 वर्ष होने का संकेत देते है। संभव है वैदिक काल में मनुष्य कि आयु इतनी रही हो।
वैदिक काल के ऋषि मुनियों ने आयु के वर्ष, मृत्यु कि तिथि और मृत्यु के कारण का अनुमान लगाने कि अनेक विधियां और ज्योतिष पद्वतियां बताई है। हर घटना को कुंडली से पकड़ा जा सकता है, बशर्ते की ज्योतिषी अनुभवी हो। यदि कुंडली सटीक हो और ज्योतिषी भी ज्ञानी और अनुभवी हो तो निश्चित रूप से मृत्यु का फलादेश कुंडली से किया जा सकता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्रों में मृत्यु कि भविष्यवाणी करना वर्जित कहा गया है, गंभीर रोग या अकाल मृत्यु के योग होने पर संकेत के द्वारा ही सावधान करने के लिए कहा गया है।
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जैसे की किसी जातक कि कुंडली से हम उसकी बुजुर्ग और अस्वस्थ माता कि कुंडली का फलादेश करने के लिए निम्न नियमों को लगाएंगे-
वैदिक ज्योतिष में भाव, भावेश और कारक के आधार पर किसी भी घटना का फलादेश किया जाता है। हम जानते है की चौथा भाव माता का भाव है, इसलिए चातुर्थ भाव, चतुर्थेश, और कारक चन्द्रमा का विचार किया जाता है। मृत्यु के लिए त्रिक भाव (6,8,12), त्रिक भावों के स्वामी (6 भावेश, 8 भावेश, 12 भावेश), मारक भाव (2,7), मारकेश (2भावेश, 7वां भावेश) और अशुभ ग्रह हो सकते है।
माता का मृत्यु भाव 11वां, 11वें भाव का भावेश और मृत्यु कारक ग्रह शनि होता है। चतुर्थ भाव पर 11वें भाव का स्वामी गोचर करें और केतु या राहु दोनों में से किसी एक का गोचर जन्म चंद्र पर हो रहा हो तो वह समय माता के जीवन के लिए अशुभ समय हो सकता है। या 4थे भाव का स्वामी 11वें भाव पर गोचर कर रहा हो और उसी समय केतु या राहु का गोचर चतुर्थ भाव पर हो रहा हो तो यह समय भी माता के लिए कष्टकारी हो सकता है।
उदाहरण के लिए इंदिरा गाँधी की मृत्यु के समय राजीव गाँधी जी की कुंडली में निम्न ग्रह गोचर था -
राजीव गाँधी जी
जन्मविवरण - 20-08-1944 , 09:53 प्रात:, मुंबई
माता - इंदिरा गाँधी
मृत्यु तिथि - 31-10-1984, दिल्ली
कन्या लग्न, सिंह राशि कि कुंडली, चतुर्थेश धनु राशि के स्वामी गुरु है, चतुर्थ भाव का स्वामी गुरु व्यय भाव में चार ग्रहों कि युति में है। चतुर्थ भाव पर शनि, मंगल कि अशुभ दृष्टि है। चतुर्थेश गुरु कि भी दृष्टि है, परन्तु गुरु यहाँ अस्त है। और चतुर्थेश गुरु पर भी शनि की तीसरी दृष्टि का प्रभाव है। माता के भाव से अष्टम भाव एकादश भाव पर राहु विराजमान है जो आयु में कमी का सूचक है, और चतुर्थ भाव, चतुर्थेश और कारक चंद्र सभी यहाँ बहुत बुरी तरह पीड़ित है।
राजीव गाँधी कि माता इंदिरा गाँधी कि मृत्यु 31 अक्टूबर 1984 को दिल्ली में हुई।
इस दिन का ग्रह गोचर राजीव गाँधी जी की कुंडली पर लगाने पर हम पाते है कि मृत्यु के दिन चतुर्थ भाव पर, 11 भाव का स्वामी (माता कि मृत्यु भाव का स्वामी) चन्द्रमा गोचर कर रहा था, इसके अलावा चतुर्थ भाव पर गुरु और मंगल भी गोचर कर रहे हैं। 11वें भाव को केतु अपनी अष्टम दृष्टि से पीड़ित कर रहे हैं। चतुर्थ भाव से मारक भाव पंचम भाव और दशम भाव दोनों के स्वामियों कि युति जातक के मारक भाव द्वितीय भाव पर हो रही है। शनि इनकी माता के लिए मारकेश है और मृत्यु के दिन गोचर में अपनी तीसरी दृष्टि से चतुर्थ भाव को पीड़ित कर रहे हैं।
आइये अब इंदिरा गाँधी कि मृत्यु का फलादेश उनकी स्वयं कि कुंडली से करते है -
जन्म
मृत्यु
इंदिरा जी की कुंडली कर्क लग्न और जन्म राशि मकर है। शनि मारक भाव, सातवें भाव में स्थित है, और आठवें भाव (मृत्यु भाव) का स्वामी लग्न भाव में स्थित है। 30 अक्टूबर 1984, दिल्ली में इनकी मृत्यु हुई। मृत्यु के दिन इनकी आयु 66 वर्ष कि पूरी हो चुकी थी, 67 वर्ष पूरे होने में 19 दिन शेष थे। दूसरे और सातवें भाव के स्वामी मृत्यु तो नहीं देते परन्तु मृत्यु के समान कष्ट देने का कार्य करता है। इंदिरा गाँधी जी के आयु भाव पर केतु कि नवम दृष्टि और मंगल कि सप्तम दृष्टि आ रही है। इस प्रकार मृत्यु भाव पीड़ित है, लग्न भाव और मृत्यु भाव दोनों पीड़ित है। शनि आयुकारक ग्रह है, और काल भी कहा गया है। कर्क लग्न के लिए सूर्य और शनि दोनों मारकेश ग्रह होते है। शनि मारकेश भी है यहाँ और आयु भाव के स्वामी भी है। मृत्यु के दिन इनकी कुंडली में शनि महादशा में राहु कि अन्तर्दशा थी, और राहु का ही प्रत्यंतर था। कुंडली में राहु और केतु दोनों ग्रह नीच के है। जिसमें से केतु द्वादश भाव पर है और राहु द्वादश भाव पर दृष्टि संबंध बनाये हुए है। राहु कुंडली में मृत्यु भाग में है। कुंडली में शुक्र चन्द्रमा से 64वें नवांश में है। राहु 67वे भाव में 7वें घर को सक्रिय कर रहा है। और लग्न पर 22वें द्रेष्कोण का स्वामी गोचर करें तो वह समय जीवन के लिए अशुभ हो सकता है।
मृत्यु के दिन शनि तुला राशि और राहु वृषभ राशि में गोचर कर रहे थे। योगकारक ग्रह मंगल मारक भाव द्वितीय में है। इंदिरा गाँधी जी की मृत्यु गोली लगने से हुई। गोली से मृत्यु का कारक ग्रह मंगल है। इनकी कुंडली में मंगल योगकारक होकर मारक भाव में स्थित है। और पंचमेश सूर्य के साथ राशिपरिवर्तन में है। सूर्य और मंगल का राशिपरिवर्तन होने से यहाँ सूर्य मंगल का कार्य कर रहे हैं और मंगल सूर्य का फल दे रहा है। मृत्यु के दिन भी सूर्य चतुर्थ भाव पर गोचरस्थ था।
ग्रह और मृत्यु कि स्थिति -
सूर्य - ज्वर और पक्षाघात से मृत्यु देता है। आठवें भाव में सूर्य हो तो बिजली (करंट) से मृत्यु देता है।
चंद्र - जल से होने वाले विकार, पेचिश और शरीर का पानी ख़त्म होने से मृत्यु के योग बनाता है।
मंगल - रक्त बहने, रक्त दूषित होने से, गोली लगने, गर्भपात और चन्द्रमा से आठवें मंगल हो तो बन्दूक कि गोली से मृत्यु होती है।
बुध - दिमागी बुखार और स्नायु रोग से मृत्यु होती है।
गुरु - लिवर रोग, फेफड़ों के रोग, ह्रदय परेशानी, और मोटापे से होने वाले रोगों के कारण मृत्यु होती है।
शुक्र - मधुमेह रोग, यौन रोग, टीबी जैसे रोग।
शनि - गठिया बुखार, अवसाद से आत्महत्या और दम घुटने आदि मृत्यु का कारण बनता है। अष्टम में शनि लोहे कि शस्त्र से मृत्यु के योग बनाता है।
6,8,12 भाव के स्वामियों का लग्न भाव पर स्थित होना, लग्न भाव पर वक्री ग्रह कि स्थिति लगातार स्वास्थ्य में कमी के योग बनाता है। शनि ग्रह मृत्यु का कारक ग्रह है। चंद्र से शनि जब 10वें या 12वें भाव पर गोचर करता है तो वह ढाई साल का समय मृत्यु का समय कहा जाता है। इसी समय में राहु भी लग्न भाव पर गोचर कर रहा हो तो योग और भी ख़राब कहा जा सकता है।