भैरवाष्टमी के दिन होती है शिव के भैरव स्वरूप की पूजा, जानें इसका महत्व और पूजा विधि
By: Future Point | 10-Nov-2022
Views : 2592
इस वर्ष 16 नवम्बर, 2022 के दिन भैरवाष्टमी मनाई जाएगी। भैरवाष्टमी मन्त्र-तंत्र साधना के लिए अति उत्तम मानी जाती है। इस दिन व्रत और पूजा अर्चना करने से शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। इस दिन भैरव बाबा की विशेष पूजा अर्चना करने से सभी तरह के पाप समाप्त होते हैं। भैरवाष्टमी के दिन श्री कालभैरव जी का दर्शन-पूजन शुभ फल देने वाला होता है। इस दिन जो भी व्यक्ति पूरी श्रद्धा के साथ इस व्रत को करता है और पूरे विधि-विधान से पूजा करता है उसके सभी कष्ट मिट जाते हैं। इस दिन महाकाल भैरव स्त्रोत्र और चालीसा का पाठ करना चाहिए। काल भैरव महाराज की पूजा और उपासना से भक्तों के सभी संकट दूर हो जाते हैं। जो भी काल भैरव की पूजा-अर्चना करता है उसे शुभ परिणाम अति शीघ्र मिलते हैं।
भगवान शिव के क्रोध से हुआ जन्म -
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव की वेशभूषा और उनके गणों का उपहास उड़ाया, तब उस समय भगवान भोलेनाथ के क्रोध से विशालकाय दंडधारी प्रचंडकाय काया प्रकट हुई और ब्रह्मा जी का वध करने के लिए आगे बढ़ने लगी। पुराणों के अनुसार, इस काया ने ब्रह्मा जी के एक शीश को अपने नाखून से काट दिया। तभी भगवान शिव ने बीचबचाव करते हुए उसे शांत किया और फिर तब से ही ब्रह्मा जी के चार शीष ही बचे। ऐसी मान्यता है कि जिस दिन काल भैरव की विशाल काया का प्रकट हुआ था, वह दिन मार्गशीर्ष मास की कृष्णाष्टमी का दिन था। भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न इस काया का नाम भैरव पड़ा।
भैरव बाबा को प्रसन्न करने के लिए इस तरह करें पूजा-अर्चना -
भैरव अष्टमी के दिन प्रात:काल उठकर नित्य क्रिया से निवृत होकर स्नानादि कर स्वच्छ होना चाहिए। इसके बाद पितरों का तर्पण व श्राद्ध करके कालभैरव की पूजा करनी चाहिए। इस दिन लोग पूजा-उपवास करते हैं, और कालभैरव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, मध्यरात्रि में धूप, दीप, गंध, काले तिल, उड़द, सरसों तेल आदि से पूजा कर भैरव जी की आरती करनी चाहिए। इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ रात्रि जागरण का भी बहुत अधिक महत्व है। धार्मिक मान्यतानुसार, भैरव की सवारी काला कुत्ता होता है। इसलिए व्रत समाप्त होने पर सबसे पहले काले कुत्ते को भोग लगाना चाहिए। यह भी मान्यता है कि इस दिन कुत्ते को भोजन करवाने से भैरव बाबा प्रसन्न होते हैं।
काल भी इनसे खाता है भय -
भैरव महाराज से काल भी डरता है इसलिए इन्हें काल भैरव कहा गया। इन्हीं से भय का नाश होता है, हिंदू देवताओं में भैरव जी का बहुत ही महत्व है इन्हें दिशाओं का रक्षक और काशी का संरक्षक कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से शत्रुओं का नाश हो जाता है। काल भैरव की पूजा से भय का नाश होता है और इन्हीं में त्रिशक्ति समाहित हैं। यह कई रुपों में विराजमान हैं बटुक भैरव और काल भैरव के नाम से पूजे जाते हैं। इन्हें रुद्र, उन्मत्त, क्रोध, कपाली, भीषण और संहारक भी कहा जाता है। भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है और नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है।
मृत्यु तुल्य कष्टों से मिलती है मुक्ति -
भैरव जी की आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय प्राप्त होती है। व्यक्ति में साहस का संचार होता है, इनकी पूजा से मनुष्य भयमुक्त होता है। विशेषकर शनि, राहु, केतु और मंगल जैसे ग्रहों और मारकेश ग्रहों के कोप से पीड़ित लोगों को इसदिन भैरव साधना खासतौर पर करनी चाहिए। भैरव के जप, पाठ और हवन अनुष्ठान से मृत्यु तुल्य कष्ट भी समाप्त हो जाते हैं। भैरव साधना और आराधना से पूर्व अनैतिक कृत्य आदि से दूर रहना चाहिए पवित्र होकर ही सात्विक आराधना की जाती है तभी फलदायक होती है। भैरव तंत्र में भैरव पद या भैरवी पद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव ने देवी के समक्ष अनेक विधियों का उल्लेख किया जिनके माध्यम से उक्त अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है।
भैरव जी शिव और दुर्गा के भक्त हैं व इनका चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक माना गया है न की डर उत्पन्न करने वाला इनका कार्य है सुरक्षा करना तथा कमजोरों को साहस देना व समाज को उचित मार्ग देना, काशी में स्थित कालभैरव मंदिर सर्वश्रेष्ठ स्थान पाता है। इसके अलावा शक्तिपीठों के पास स्थित भैरवनाथ के मंदिरों का विशेष महत्व माना गया है मान्यता है कि इन्हें स्वयं भगवान शिव ने स्थापित किया था।