नवग्रहों में सूर्य को राजा का स्थान दिया गया है। सूर्य ग्रह उच्च पद, सरकारी क्षेत्र, पिता, उच्चाधिकारी, प्रशासनिक कार्य, आत्मा, आत्मबल, आत्मविश्वास और सत्ता के कारक ग्रह है। सूर्य की शुभता प्राप्त किए बिना इन विषयों में अनुकूलता प्राप्त करना संभव नहीं है। यही वजह है जिसके कारण विभिन्न पुराणों में मकर संक्रांति के पर्व पर दान-धर्म कार्य करने के लिए विशेष रुप से कहा गया है। पौराणिक महत्व के अनुसार मकर संक्रांति पर घी एवं काले, तिलों व कम्बल का दान करने से व्यक्ति को धन-धान्य की जीवन में कभी कमी नहीं रहती है।
ऐसे व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते है। साथ ही ऐसा व्यक्ति जीवन सुख-शांति के साथ व्यतीत करता है। इसके अतिरिक्त अन्य धर्म ग्रंथ में यह कहा गया है कि मकर संक्रांति के दिन शनि ग्रह के दोषों का निवारण और शनि शांति करने के लिए सफेद तिलों से बनी वस्तुओं से देवताओं को भोग लगाना चाहिए और काले तिल से पित्तरों का तर्पण करने से पित्तरों की आत्मा को शांति मिलती है। भगवान आशुतोष को प्रसन्न करने से भी शनि देव जल्द प्रसन्न होते है, इसके लिए शुद्ध जल से शिवलिंग का अभिषेक करने से इस दिन बहुत शुभ फल प्राप्त होते है।
सूर्य ग्रह और शनि ग्रह दोनों की शुभता प्राप्ति के लिए इस दिन ब्राह्मणों को नया पंचांग दान में दिया जाता है। मकर संक्रांति पर्व शनि और सूर्य ग्रह से संबंधित पर्व होने के कारण इस दिन की अधिकतर क्रियाओं में गुड़ और तिल का प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिए। जहां तक संभव हो इस दिन प्रात: नित्यक्रियाओं से निवृत होने के बाद स्नान के जल में थोड़ा से तिल मिलाकर स्नान करना चाहिए, उबटन बनाते समय भी उसमें तिल शामिल करने चाहिए। पूजा-पाठ में हवन में तिल और तिल युक्त जल का प्रयोग करना चाहिए।
तिल मिलाकर ही देवताओं का प्रसाद तैयार करना चाहिए। इस प्रकार जो व्यक्ति इस दिन तिल का प्रयोग करता है, उसके सभी पापों का क्षय होता है और पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस दिन के विषय में मान्यता है कि इस दिन बेटी और दामाद को बुलाकार आदर सत्कार कर वस्त्र दान करने चाहिए। किसी गरीब या पुजारी को धन, वस्त्र और अन्न का दान तिल और गुड़ के साथ करना चाहिए। इस दिन तिल से बनी वस्तुओं का सेवन करने का प्रचलन है, तिल से बने लड्डू, मिठाई और अन्य खाद्यवस्तुएं बनाकर अपने मित्रों, संबंधियों और निकट व्यक्तियों को उपहार स्वरुप दिए जाते है। इसके अतिरिक्त इनका स्वयं भी परिवार सहित सेवन किया जाता है।
इस दिन के महत्त्व के विषय में यह कहा जाता है कि इस दिन दान करते समय विनीत भाव से अपने अहंकार का भी दान कर देना चाहिए। जो व्यक्ति किसी कारणवश ऐसा ना कर पायें, उन्हें ईश्वर को स्मरण, नमन और चिंतन करते समय स्वयं को ईश्वर को समर्पित कर देना चाहिए। प्रत्येक शुभ अवसर की तरह इस दिन करोड़ों लाखों लोग दान-धर्म कार्य करते है, परन्तु सब की आस्था और विश्वास एक जैसा नहीं होने के कारण सबको मिलने वाले फलों की प्राप्ति एक समान नहीं होती है।
कोई भी शुभ कार्य इस भावना के साथ नहीं करना चाहिए, कि इसके बदले हमें पुण्य या शुभ फलों की प्राप्ति होगी। कोई भी धर्म कार्य तभी फलदायक होता है जब उसमें निश्वार्थ भाव जुड़ा होता है। अन्यथा किए गए कार्य के फल क्षय हो जाते है। साथ ही कोई भी दान इस भावना के साथ भी नहीं करना चाहिए, कि हमने इतना अधिक दान कर दिया। दान की गई वस्तुओं के व्ययों का भार या दबाव महसूस नहीं करना चाहिए, ना ही इसकी चर्चा करनी चाहिए।
यह भाव तो मन में आना ही नहीं चाहिए कि हम इतने दानी है, इस अंहकार भाव के साथ किया गया दान निष्फल हो जाता है। दान सदैव अपनी मेहनत और ईमानदारी की कमाई से ही करना चाहिए, और गलत तरीकों से धन अर्जित कर दान कभी नहीं करना चाहिए।