भगवान शंकर के अवतार आदि गुरु शंकराचार्य जयंती- 9 मई 2019
By: Future Point | 08-May-2019
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वैशाख मास की शुक्ल पंचमी के दिन आदि गुरु शंकराचार्य जयंती मनाई जाती है, इस वर्ष 2019 में आदि गुरु शंकराचार्य जयंती 9 मई गुरुवार के दिन मनाई जायेगी. हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार शंकराचार्य जी को भगवान् शंकर जी का अवतार माना जाता है, आदि गुरु शंकराचार्य जी अद्वैत वेदांत के संस्थापक और हिन्दू धर्म प्रचारक थे ।
आदि शंकराचार्य जी जीवन पर्यन्त सनातन धर्म के जीर्णोद्धार में लगे रहे उनके प्रयासो ने हिन्दू धर्म को नई चेतना प्रदान की. शंकराचार्य जी सिर्फ 32वर्ष की उम्र जीकर बहुत कुछ कर गए, अनगिनत रचनाएँ भी कर दीं, आदि शंकराचार्य जी ने ईशावाश्योपनिषद्, केनोपनिषद्, कठोपनिषद्, प्रश्नोपनिषद्, मण्डूकोपनिषद्, मांडूक्योपनिषद्, एतरेयोपनिषद्, तैत्तिरियोपनिषद्, ब्रह्मदारण्यकोपनिषद् और छान्दोग्योपनिषद् पर भाष्य लिखे. आदि शंकराचार्य जी ने छोटे से जीवन में भारत की पैदल यात्रा की और भारत की चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की ।
दक्षिण के श्रृंगेरी में शंकराचार्य पीठ, पूर्व के उड़ीसा जगन्नाथ पुरी में गोवर्धन पीठ, पश्चिम के द्वारिका में शारदा मठ एवं उत्तर में बद्रिका श्रम ज्योति पीठ की स्थापना की, इसके अलावा आदि शंकराचार्य जी ने बारह ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की, शंकराचार्य जी ने जीवन मृत्यु के रहस्य को समझाया और सभी प्राणियों को ब्रह्म के होने से संसार को अवगत कराया और कहा कि ब्रह्म ही सत्य है जो कि सबमे बसा हुआ है बाकि सब माया व भ्रम है, आदि शंकराचार्य जी को एक महान हिन्दू दार्शनिक एवं धर्म गुरु के रूप में माना जाता है इसलिए संसार के लोग शंकराचार्य जी को जगद् गुरु कहने लगे।
आदि गुरु शंकराचार्य जी का जीवन परिचय –
आदि शंकराचार्य जी का जन्म 788 ईसा पूर्व केरल के एक नंबदूरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था, आदि शंकराचार्य जी बचपन से ही बहुत प्रतिभाशाली थे और उन्हें भगवान शिव जी का अवतार माना जाता है, आदि शंकराचार्य जी के पिता जी का नाम श्री शिवा गुरु एवं माता का नाम अर्याम्बा देवी था. शंकराचार्य जी ने मात्र तीन वर्ष की उम्र में ही मलयालम भाषा का ज्ञान प्राप्त कर लिया था और 7 वर्ष की उम्र में वेदों का ज्ञान प्राप्त कर उन्होंने 8 वर्ष की उम्र में ही घर छोड़ दिया था और मोक्ष प्राप्ति के लिये गुरु की खोज शुरू कर दी थी ।
आदि शंकराचार्य जी ने 12 वर्ष की उम्र में शास्त्रों का अध्ययन कर लिया था. आदि शंकराचार्य जी का रुझान कविताओं की तरफ भी था उन्होंने भक्ति मय और ध्यान करने वाले गाने व मन्त्र भी लिखे। आदि शंकराचार्य जी की मात्र 32 वर्ष की उम्र में ही केदारनाथ में मृत्यु हो गई थी. प्राचीन भारतीय सनातन परंपरा के विकास और धर्म के प्रचार- प्रसार का श्रेय आदि शंकराचार्य जी को जाता है, शंकराचार्य जी ने चार मठों की स्थापना की थी जो कि आज भी सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करने में कार्यरत है।
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आदि गुरु शंकराचार्य जी की जन्म कथा -
शिवगुरु नामक एक ब्राह्मण के विवाह के कई वर्षों बाद भी जब उनकी कोई संतान नहीं हुई, तो उन्होंने अपनी पत्नी अर्याम्बा देवी सहित संतान प्राप्ति की इच्छा को पूर्ण करने के लिए लंबे समय तक भगवान शिव जी की आराधना की उनकी श्रद्धा व पूर्ण कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव जी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा, तब शिवगुरु ने भगवान शिव जी से एक दीर्घायु सर्वज्ञ पुत्र की इच्छा व्यक्त की ।
तब भगवान शिव ने कहा कि ‘वत्स, दीर्घायु पुत्र सर्वज्ञ नहीं होगा और सर्वज्ञ पुत्र दीर्घायु नहीं होगा अत: यह दोनों बातें संभव नहीं हैं तब शिवगुरु ने सर्वज्ञ पुत्र की प्राप्ति की प्रार्थना की और भगवान शंकर ने उन्हें सर्वज्ञ पुत्र की प्राप्ति का वरदान दिया तथा कहा कि मैं स्वयं पुत्र रूप में तुम्हारे यहाँ जन्म लूंगा. इस प्रकार उस ब्राह्मण दंपती को संतान रूप में पुत्र रत्न की प्राप्त हुई और जब बालक का जन्म हुआ तो उसका नाम शंकर रखा गया शंकराचार्य जी के महान कार्यों के कारण वह आदि गुरू शंकराचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए.
आदि गुरु शंकराचार्य जयंती का महत्व -
आदि गुरु शंकराचार्य जयन्ती के दिन शंकराचार्य मठों में पूजन हवन किया जाता है और पूरे देश में सनातन धर्म के महत्व पर विशेष कार्यक्रम किए जाते हैं. मान्यता है कि आदि शंकराचार्य जंयती के अवसर पर अद्वैत सिद्धांत का किया जाता है एवं इस अवसर पर देश भर में शोभायात्राएं निकली जाती हैं तथा जयन्ती महोत्सव होता है जिसमें बडी संख्या में श्रद्वालु भाग लेते हैं तथा यात्रा करते समय रास्ते भर गुरु वन्दना और भजन-कीर्तनों का दौर रहता है. इस अवसर पर अनेक समारोह आयोजित किए जाते हैं जिसमें वैदिक विद्वानों द्वारा वेदों का सस्वर गान प्रस्तुत किया जाता है और समारोह में शंकराचार्य विरचित गुरु अष्टक का पाठ भी किया जाता है.