7 वजहों से आपको कुंडली मिलान नहीं करवाना चाहिए | Future Point

7 वजहों से आपको कुंडली मिलान नहीं करवाना चाहिए

By: Future Point | 21-Jan-2019
Views : 103697 वजहों से आपको कुंडली मिलान नहीं करवाना चाहिए

हिन्दू धर्म में 16 संस्कारों को मान्यता दी गई है। इन्हीं 16 संस्कारों में से 15वां और सबसे महत्वपूर्ण संस्कार विवाह संस्कार है। अन्य सभी संस्कारों की तुलना में विवाह संस्कार को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है। विवाह योग्य आयु में कदम रखते ही माता-पिता अपने विवाह योग्य पुत्र या पुत्री के विवाह के लिए भावी वर या वधु की तलाश करना शुरु कर देते है। इस तलाश का सबसे प्रथम और महत्वपूर्ण कार्य कुंड्ली मिलान होता है।

भावी वर-वधु विवाह पश्चात एक नए जीवन में प्रवेश कर रहे होते है, विवाह मात्र पति-पत्नी के मध्य का संबंध ना होकर दो परिवारों का भी बंधन होता है। धर्म शास्त्रो में इसे सात जन्मों का बंधन भी स्वीकार किया गया है। भविष्य में विवाह सूत्र में बंधने वाले लड़के और लड़की का वैवाहिक जीवन सुखमय हो इसके लिए विवाह के समय अनेकों अनेक रीति रिवाजों का पालन किया जाता है, साथ ही दोनों की कुंड्लियों का मिलान भी किया जाता है।

परम्परागत रुप से यह माना जाता है कि कुंडली मिलान में 36 में से यदि कम से कम 18 गुण भी मिल जाए तो वैवाहिक जीवन सफल माना जाता है। जिसके साथ कुंडली मिलान हो जाए उसे बेहतर जीवन साथी मान लिया जाता है। फिर भी हम अपने आसपास देखते है कि कुंड्ली मिलान करा कर किए गए विवाह भी असफल हो जाते हैं। कई बार तो 36 में से 32 और कभी कभी 36 के 36 गुण मिल रहे होते हैं और वैवाहिक जीवन चंद महिने नहीं चलता। ऐसे में मन में ऐसे विचार अवश्य आते है तो कुंड्ली मिलान के बाद भी विवाह सफल नहीं होता है तो कुंड्ली मिलान की सार्थकता क्या रह जाती है। शादी की सफलता का मापदंड कुंडली मिलान को मानना चाहिए या नहीं?

    • कुंड्ली मिलान भावी विवाह की सफलता की गारंटी नहीं है। किसी भी योग्य ज्योतिषी से विवाह हेतु कुंडली मिलान कराते समय भावी वर-वधु दोनों की कुंडलियों में स्थिति ग्रह स्थिति का भी विचार अवश्य करना चाहिए।
    • कुंडली में बन रहे शुभ-अशुभ योग विवाह की सफलता और असफलता पर प्रभाव डालते है।
    • जन्म कुंडली में मांगलिक दोष, कालसर्प दोष, संतानहीनता और निर्धनता जैसे योग भी वैवाहिक जीवन को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्षरुप से प्रभावित करते है। जिसके फलस्वरुप आपसी रिश्ते प्रभावित होते है।
    • दोनों का भाग्य एक दूसरे से कितना प्रभावित हो रहा है, ससुराल पक्ष से रिश्ते कैसे रहेंगे, धन-दौलत, व्यवसाय आदि की स्थिति कैसी रहेगी और सबसे महत्वपूर्ण विवाह भाव, भावेश, कारक और शयन भाव पर ग्रहों के प्रभाव के अनुरुप वैवाहिक जीवन की सफलता और असफलता सुनिश्चित कर सकता है।

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  • दोनों जन्म कुंडलियों में ग्रहों की स्थिति का विचार करने के साथ साथ विवाह के तुरंत बाद आने वाली ग्रहों की दशा-अंतर्द्शा भी देखनी चाहिए। यह दशा-अंतर्दशा दोनों के विवाह का भविष्य निर्धारित कर सकती है।
  • दशा के बाद ग्रह गोचर को भी अनदेखा नहीं करना चाहिए। मंद गति ग्रहों का गोचर वैवाहिक जीवन की शुभता को अत्यधिक प्रभावित करता है। जन्मचंद्र सप्तम भाव में हों तो शनि साढ़ेसाती की अवधि में विवाह करना वैवाहिक जीवन की असफलता का मुख्य कारण बन सकता है।
  • वर-वधु दोनों की कुंडलियों का परस्पर विश्लेषण करने पर यह जान सकते हैं कि भावी वर-वधु एक दूसरे के लिए भाग्यवर्द्ध रहेंगे या नहीं। ग्रह स्थिति एक-दूसरे के लिए अनुकूल हो तो दोनों के संबंध माधुर्य से परिपूर्ण होते हैं। हम अक्सर ऐसे उदाहरण प्रतिदिन देखते है कि गुण मिलान तो बहुत अच्छा था परन्तु वैवाहिक जीवन अधिक सुखद नहीं रहा।

यह सर्वसम्मत है कि वैवाहिक जीवन को सफल या असफल बनाने में मांगलिक योग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह योग दोनों की कुंड्लियों में हो तो वैवाहिक जीवन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है, परन्तु यदि दोनों में से भी एक कुंडली में यह योग हो तो आपस में तालमेल में कमी की स्थिति बनी रहती है।


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