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वास्तुशास्त्र एक गूढ़ एवं विस्तृत विषय है जो वर्तमान समय में सभी लोगों के लिए प्रासंगिक हो गया है। इसके सिद्धांतों का उचित ज्ञान प्राप्त कर इनका प्रयोग भवन निर्माण में किया जाए तो यथासंभव वास्तुजनित दोषों का निराकरण किया जा सकता है। विश्वकर्मा प्रकाश में कहा गया है - ‘‘वास्तुशास्त्रं प्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया’’। ‘‘वास्तु’’ शब्द का अर्थ है - बसने या वास करने योग्य। वास्तुविद्या एक अत्यंत विस्तृत एवं गूढ़ विज्ञान है। इसके अधिकांश ग्रंथ लुप्त हो चुके हैं। रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने लिखा है - ‘‘क्षिति जल पावक गगन समीरा। पंच तत्व रचित यह अधम शरीरा।।’’ जिस प्रकार मानव शरीर पांच तत्वों से निर्मित है उसी प्रकार प्रकृति भी इन्हीं पांचों तत्वों से निर्मित है। इसलिए ये पांच तत्व जीवन के अभिन्न अंग हैं। यदि मनुष्य प्रकृति के इन पांच तत्वों के अनुकूल वातावरण में वास करे तो उसका जीवन सुखी, स्वस्थ एवं आध्यात्मिक बना रहेगा।
वास्तुविद्या प्राचीनतम् विद्या है, जिसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में मिलता है। मनुष्य के जीवन को सुगम, सरल व कल्याणकारी बनाने के लिए हमारे ऋषि-मुनि सदैव चिंतित रहे हैं। इसके सिद्धांत पूर्णतः वैज्ञानिक हैं। अतः यह एक व्यावहारिक विज्ञान है जिसकी उपयोगिता स्पष्ट एवं निश्चित है।